
बस्तर में शांति की ओर कदम: माओवादियों को मुख्यधारा से जोड़ने की पहल रंग लाई
Maoist insurgency decline: सरकार द्वारा माओवादियों को मुख्यधारा में लौटने और समाज में पुनः स्थापित होने का जो विकल्प दिया जा रहा है, वह एक मानवतावादी पहल है.
Bastar Maoist Surrender: छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में हाल ही में हुए घटनाक्रमों ने देश में दशकों से चल रहे नक्सलवाद के खिलाफ संघर्ष में एक ऐतिहासिक मोड़ ला दिया है. शुक्रवार को बस्तर में 200 से अधिक माओवादी कैडरों ने आत्मसमर्पण किया, जिसमें संगठन के शीर्ष नेता रूपेश और रनीता जैसे नाम भी शामिल हैं. यह सिर्फ संख्या में जीत नहीं है, बल्कि रणनीतिक और प्रतीकात्मक विजय भी है, जो क्षेत्र के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव का संकेत देती है.
ऑपरेशन 'ब्लैक फॉरेस्ट' और आत्मसमर्पण की लहर
हाल ही में हुए ऑपरेशन 'ब्लैक फॉरेस्ट' में सुरक्षा बलों ने 31 माओवादियों को ढेर कर भारी मात्रा में हथियारों का जखीरा जब्त किया. इसके बाद आत्मसमर्पण की यह लहर और तेज हो गई. गृह मंत्री अमित शाह ने इसे देश के 'रेड कॉरिडोर' को नक्सल प्रभाव से मुक्त कराने की दिशा में एक ऐतिहासिक दिन बताया है.
कभी आतंक के अड्डे, अब नक्सल मुक्त क्षेत्र
अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर जैसे इलाके, जिनकी घनी जंगलों वाली भौगोलिक स्थिति लंबे समय से माओवादी गुरिल्लाओं के लिए सुरक्षित पनाहगाह रही है, अब नक्सलवाद से मुक्त घोषित कर दिए गए हैं. गृह मंत्री शाह ने एक्स पर लिखा कि अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर, जो कभी नक्सल आतंक के गढ़ थे, अब मुक्त हो चुके हैं. दक्षिण बस्तर में जो थोड़ी बहुत नक्सली मौजूदगी बची है, उसे भी जल्द ही समाप्त कर दिया जाएगा.
माओवादियों के आत्मसमर्पण की वजह?
विशेषज्ञों के अनुसार, आत्मसमर्पण की यह अचानक आई लहर केंद्र सरकार की दोहरी नीति का परिणाम है —
1. सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई और दबाव
2. मुख्यधारा में लौटने वालों को पुनर्वास का भरोसा
अमित शाह ने स्पष्ट संदेश दिया था कि जो आत्मसमर्पण करेंगे, उन्हें अवसर मिलेगा. जो हथियार उठाएंगे, उन्हें परिणाम भुगतना होगा. यह नीति माओवादियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित कर रही है.
माओवादी संगठन के अंदर भी असंतोष
रिपोर्ट्स बताती हैं कि माओवादी संगठन के अंदर आपसी मतभेद, नेतृत्व में असंतोष और संघर्ष की दिशा को लेकर मोहभंग जैसी स्थितियों ने भी इस आत्मसमर्पण को बढ़ावा दिया है. यहां तक कि वरिष्ठ माओवादी नेता रूपेश, जिन्हें हाल ही में ऊंचे पद पर पदोन्नति दी गई थी, उन्होंने भी हथियार डालने का फैसला किया.
सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाइयों ने तोड़े माओवादी नेटवर्क
लगातार चल रहे सुरक्षा अभियानों ने माओवादी नेटवर्क को बुरी तरह प्रभावित किया है. जंगलों में चल रहे कड़ी निगरानी और ऑपरेशनों के चलते माओवादियों के लिए संगठित रूप से काम करना कठिन होता जा रहा है. इस दबाव के कारण कई माओवादियों ने सशस्त्र संघर्ष छोड़कर आत्मसमर्पण का रास्ता अपनाना शुरू किया है.
मुख्यधारा में वापसी की राह
सरकार द्वारा माओवादियों को मुख्यधारा में लौटने और समाज में पुनः स्थापित होने का जो विकल्प दिया जा रहा है, वह एक मानवतावादी पहल है. आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को पुनर्वास, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक पुनर्स्थापन की योजनाओं का लाभ मिलेगा.