अब मुख्तारी नहीं,   संभ्रांत परिवार का लड़का बन गया पूर्वांचल का डॉन
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अब 'मुख्तारी' नहीं, संभ्रांत परिवार का लड़का बन गया पूर्वांचल का डॉन

कहानी गाजीपुर के मुख़्तार अंसारी की. जिसने पूर्वांचल में अपना दबदबा बनाया.दुनिया के लिए अपराधी लेकिन कुछ लोग उसे रॉबिन हुड का भी दर्जा देते हैं.


उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के उस बाहुबली की कहानी जो एक पढ़े लिखे संभ्रांत परिवार से ताल्लुक रखता था लेकिन कॉलेज के दिनों में उसकी संगत उसे जुर्म की दुनिया में धकेल के ले गयी. मारपीट से हत्या तक के मामलों में नाम आने के बाद इस बाहुबली ने रेलवे टेंडर माफिया की भूमिका की भी निभाई और फिर राजनीती का रुख किया. आज ये बाहुबली दुनिया में नहीं है लेकिन नाम अब भी जिंदा है. लोकसभा चुनाव 2024 में इस बाहुबली का भाई लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी है, देखना है कि बाहुबली के भाई होने का लाभ वोटों के रूप में अब भी मिल पाता है या नहीं. बात कर रहे हैं गाजीपुर के मुख़्तार अंसारी की, जिसे पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन कहा गया और जिसने आम जनता के बीच अपनी छवि रोबिन हुड के तौर पर बनायी. मुख़्तार अंसारी की मौत दिल का दौड़ा पड़ने से 28 मार्च 2024 की रात को हुई थी. मुखता बाँदा जेल में बंद था.

दादा और नाना देश की आज़ादी की लड़ाई में रहे शामिल

मुख़्तार अंसारी की तरफ से ये दावा किया गया कि देश की आज़ादी की लड़ाई में उनके परिवार का अहम योगदान रहा. उनके दादा मुख़्तार अहमद अंसारी ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के साथ मिलकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी. इतना ही नहीं मुख़्तार के नाना देश की सेना में ब्रिगेडियर रहे. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भी आज़ादी की लड़ाई का हिस्सा रहे. इतना ही नहीं जब देश का बंटवारा हुआ तो उन्हें पाकिस्तान जाने का प्रस्ताव भी मिला लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया और भारत में ही रहना मजूर किया. इसके अलावा देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख़्तार अंसारी के चाचा लगते हैं. ऐसे परिवार से आने वाला कोई व्यक्ति अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन जायेगा ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा था.

अब बात करते हैं मुख़्तार अंसारी के अपराध के सफर की शुरुआत

मुख़्तार अंसारी बेहद पढ़े लिखे और इज्जतदार परिवार से था. वो भी पढ रहा था. पूर्वांचल में उस समय विकास कार्य जोरों पर था. विकास कार्यों के लिए अलग अलग ठेके दिए जा रहे थे. ठेके हासिल करने के लिए माफिया का जन्म हुआ. उस समय गाजीपुर में मकनु सिंह और साहिब सिंह गैंग का दबदबा था. मुख्तार कॉलेज में था. वो अपने दोस्त साधू सिंह के साथ मकनु गैंग में शामिल हो गया. 1988 में पहली बार मुख़्तार का नाम किसी आपराधिक मामले से जुड़ा. मुख्तार अंसारी पर मंडी परिषद के ठेके के मामले में एक ठेकेदार सच्चिदानंद की हत्या का आरोप लगा. इसी दौरान मुख़्तार पर पुलिस से बचने के प्रयास में सिपाही की हत्या करने का आरोप भी लगा. लेकिन पुलिस को पुख्ता सबूत नहीं मिला. अब मुख़्तार का नाम अपराध की दुनिया में फ़ैल चुका था. वो अपराध की दुनिया में घुसता चला गया. उन दिनों ये इलाका दो गैंग में बंट गया था. एक था मुख्तार अंसारी का गैंग और दूसरा ब्रजेश सिंह का गैंग. ब्रजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह की जोड़ी थी और मुख़्तार अंसारी इनका जनि दुश्मन. ठेकों को लेकर अक्सर इन दोनो गैंग में लड़ाई चलती रहती. खून खराबा आम बात एबीएन चुकी थी. 2001 में ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर जानलेवा हमला किया था लेकिन मुख़्तार अंसारी बच गया. इसी मामले में ब्रिजेश सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार किया और वो 12 साल तक जेल में रहा .

मऊ सीट से 5 बार रहा विधायक

मुख़्तार अंसारी ने 90 के दशक में राजनीती में कदम रखा. अब तक वो पुर्वांचाल में अपराध का बहुत बड़ा नाम बन चूका था. उसने गाजीपुर, मऊ, बनारस आदि इलाकों में दबदबा कायम कर लिया था. उसने जमीं कब्ज़ा, रेलवे ठेकेदारी, खनन माफिया आदि जैसे कामों से काफी पैसा कमाया. इसी पैसे से उसने गरीबों की मदद भी की. अब वो राजनीती के लिए अपनी जमीं भी तैयार कर चुका था. मुख़्तार ने मऊ से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत गया. उसने पूर्वांचल के इलाके में इस कदर दबदबा बना लिया था कि मायावती हो या मुलायम दोनों ही मुख़्तार के प्रति नर्म रिख रखते. एक समय में मुख़्तार अंसारी का प्रभाव वाराणसी, गाजीपुर, बल‍िया, जौनपुर और मऊ में जोरो पर था. गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट पर अंसारी परिवार का कब्जा था। 1985 से अनसारी परिवार ही इस सीट पर जीतता आ रहा था लेकिन 2002 में भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने ये सीट अंसारी परिवार से छीन ली.

कृष्णानन्द राय की हत्या

अपने परिवार की दबदबे वाली सीट हारने के बाद से मुख़्तार अंसारी का चैन मानों खत्म हो गया था. वो हर हाल में हार का बदला लेना चाहता था. उसने कृष्णानन्द राय की हत्या की साजिश रची. बताया जाता है कि कृष्णानन्द राय बुलेट प्रूफ गाडी में चलता था. इसलिए मुख़्तार अंसारी ने सेना की लाइट मशीन गन खरीदने की साजिश रची. लेकिन उसे गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि जिस पुलिस अधिकारी ने मुख़्तार को गिरफ्तार किया, मुलायम सरकार की गाज उस पर गिरी. इसके बाद मुख़्तार अंसारी ने फिर से कृष्णानंद राय की हत्या की साजिश रची और 2005 में एके-47 की गोलियों से विधायक कृष्णानंद की हत्या कर दी गयी. इसी मामले के बाद से मुख़्तार अंसारी के उलटे दिन भी शुरू हो गए. 2007 में अंसारी परिवार ने बसपा का दामन थाम ल‍िया. लेकिन जब मायावती पर अपराध मुक्त प्रदेश के नारे का दबाव पड़ने लगा तो उन्होंने 2010 में अंसारी भाइयों मुख़्तार और अफजल अंसारी दोनों को ही पार्टी से बहर कर दिया. हालाँकि अफजल अंसारी ने कौमी एकता दल के नाम से नयी पार्टी बनवाई. लगभग 6 साल बाद 21 जून 2016 को कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में करा दिया गया. लेकिन समाजवादी पार्टी संसदीय बोर्ड ने इस विलय को रद्द कर दिया. ज‍िसके बाद कौमी एकता दल का बसपा में व‍िलय हो गया.

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