अब गांजा नहीं ड्रग्स गोलियों पर जोर, तमिलनाडु के सामने अलग तरह की चुनौती
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गांजा आंध्र प्रदेश और ओडिशा से आता है, जबकि गोलियां स्थानीय प्रयोगशालाओं, तस्करी की गई खेपों या डायवर्टेड फार्मा आपूर्ति से आती हैं, जिससे तमिलनाडु को अपनी फोरेंसिक विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। फोटो- iStock

अब गांजा नहीं ड्रग्स गोलियों पर जोर, तमिलनाडु के सामने अलग तरह की चुनौती

गांजा को पछाड़कर घातक नशीली गोलियां युवाओं की पसंदीदा दवा बन गई हैं। तमिलनाडु पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि टैबलेट जब्ती में नाटकीय वृद्धि हुई है।


नशे के खिलाफ तमिलनाडु की लड़ाई एक नए खतरे का सामना कर रही है। जहां नारकोटिक्स इंटेलिजेंस ब्यूरो (NIB) - CID गांजा तस्करी पर नकेल कस रहा है, वहीं अब एक और गहरी और खतरनाक लत युवाओं को नशीली गोलियों की अपनी चपेट में ले रही है। Enforcement Bureau CID के आंकड़ों के अनुसार, नशीली गोलियों की जब्ती में भारी वृद्धि दर्ज की गई है—2022 में 62,750 से बढ़कर 2024 में 1,41,760 तक, और 2025 के पहले दो महीनों में ही 24,215 गोलियां जब्त की गईं।

इन गोलियों की उत्पत्ति क्या है, और ये तमिलनाडु की युवा पीढ़ी के बीच इतनी लोकप्रिय क्यों हो रही हैं? इस सवाल का जवाब राज्य की नशा संस्कृति में एक चिंताजनक बदलाव की ओर इशारा करता है, जिसका असर स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था दोनों पर गहरा पड़ सकता है।

गांजा की जगह गोलियां

कभी तमिलनाडु के अवैध नशा व्यापार की रीढ़ रहे गांजा के खिलाफ राज्य की वर्षों की कार्रवाई रंग लाई है। 2022 में गांजा की जब्ती 28,383 किलोग्राम थी, जो 2024 में घटकर 21,424 किलोग्राम हो गई, और 2025 की शुरुआत में केवल 3,767.3 किलोग्राम ही पकड़ा गया।NIB-CID प्रमुख एसपी ए. मयिलवगनन ने इसका श्रेय राज्य में स्थानीय गांजा की खेती का पूर्ण रूप से न होना और आंध्र प्रदेश व ओडिशा से आने वाली तस्करी पर सख्त सीमा जांच को दिया। “अब गांजा का धंधा मुनाफे वाला नहीं रहा,” उन्होंने कहा। पहले इसे ₹2,000–4,000 प्रति किलो खरीदा और ₹20,000 में बेचा जाता था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।

तेज़ी से बढ़ता टैबलेट ट्रैफिकिंग का ट्रेंड

गांजा की पृष्ठभूमि में जाने के साथ-साथ बाजार में अब टैबलेट की बाढ़ आ गई है। NIB-CID के डेटा के मुताबिक, टैबलेट की जब्ती 2022 में 62,750 थी जो 2023 में घटकर 39,910 रह गई, संभवतः सप्लाई में अस्थायी रुकावट के कारण। लेकिन 2024 में ये आंकड़ा 255% उछलकर 1,41,760 तक जा पहुंचा।

2025 की शुरुआती जानकारी से पता चलता है कि ये रुझान बरकरार है और इस साल करीब 1,45,000 टैबलेट जब्त होने का अनुमान है। NDPS कानून के तहत दर्ज मामलों की संख्या 2022 में 10,665 से बढ़कर 2024 में 11,025 हो गई, जबकि गिरफ्तारियां 14,394 से बढ़कर 17,903 तक जा पहुंचीं, जो दिखाता है कि अब टैबलेट ट्रैफिकिंग आम होती जा रही है।

नशीली गोलियों की खतरनाक किस्में और उनका असर

Tramadol, Tridol और Nitrazepam जैसी गोलियों ने राज्य के युवा वर्ग में एक खतरनाक लत को जन्म दिया है। Tramadol और Tridol दोनों ओपिऑइड पेनकिलर्स हैं, जिन्हें पीसकर सूंघा जाता है या इंजेक्शन के जरिए लिया जाता है। ये अवैध फार्मेसियों से सस्ते में प्राप्त की जाती हैं और ₹100–200 प्रति गोली के हिसाब से बेची जाती हैं।

Nitrazepam, एक बेंजोडायजेपीन जो एंग्जायटी के लिए दी जाती है, युवाओं को खासकर छात्रों को इसकी शांत प्रभावों के कारण आकर्षित करती है। लेकिन शराब के साथ मिलाने पर यह कोमा या लत का कारण बन सकती है।

गोलियों की ओर झुकाव क्यों?

आसान तस्करी: गांजा की तुलना में गोलियां छोटी पैकिंग में होती हैं, जिन्हें आसानी से वाहनों, बैग या पार्सल में छुपाया जा सकता है।

कम सामाजिक कलंक: गोली लेना आज के युवाओं में 'ट्रेंडी' और 'कूल' माना जाता है। ये ‘सुरक्षित’ मानी जाती हैं, इसलिए इनका उपयोग खुलेआम होता है।

तनाव से राहत: पढ़ाई और नौकरी की प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न तनाव में राहत पाने के लिए युवा गोलियों की ओर झुक रहे हैं।

चेन्नई, कोयंबटूर और मदुरै जैसे शहरों में 16–25 आयु वर्ग के युवाओं में ये गोलियां अत्यंत लोकप्रिय हो चुकी हैं। पुलिस के अनुसार, ये गोलियां बिना डॉक्टर की पर्ची के फार्मेसियों से ली जाती हैं, ऑनलाइन मंगाई जाती हैं या आस-पास के राज्यों से तस्करी की जाती हैं। कुछ गोलियां गुप्त लैब में बनाई जाती हैं, जिनकी संरचना अनजान और बेहद खतरनाक होती है।

तमिलनाडु पुलिस के अनुसार, इस साल लगभग 1.45 लाख नशीली गोलियां जब्त की जा सकती हैं। उपयोगकर्ताओं का वर्ग बहुत विस्तृत है। कम आय वर्ग के 18 साल के युवाओं से लेकर प्रोफेशनल्स तक। उदाहरण के लिए, 2024 में शूलाइमेडु की एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर शर्मिला को गांजा और टैबलेट बेचते हुए गिरफ्तार किया गया।

माइग्रेंट छात्र भी एक बड़े लक्ष्य हैं। ड्रग सिंडिकेट अक्सर बिचौलियों के ज़रिए कॉलेज कैंपस में नशा फैला रहे हैं। Tramadol जैसे सिंथेटिक ओपिऑइड से सांस रुकने की समस्या हो सकती है, वहीं मेथामफेटामिन्स से दिल की बीमारियां और मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

जागरूकता और सख्त कार्रवाई

राज्य सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए व्यापक जनजागरूकता अभियान शुरू किया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 2022 में ‘ड्रग फ्री तमिलनाडु’ अभियान की शुरुआत की थी। 2024 में 1.86 लाख कार्यक्रमों के माध्यम से 56.5 लाख लोगों तक यह अभियान पहुंचा। 30 लाख से अधिक छात्रों ने ड्रग्स से दूर रहने की शपथ ली, जिसे वर्ल्ड रिकॉर्ड्स यूनियन ने मान्यता दी।

Enforcement Bureau CID, जिसमें NIB और Prohibition यूनिट का विलय किया गया है, ने हाल के महीनों में छापों की संख्या बढ़ा दी है। अप्रैल 2025 में ₹6 करोड़ की कीमत की 2 किलो कोकीन जब्ती इसका प्रमाण है। इसके अलावा, राज्य सरकार ने भारतीय औषधि नियंत्रक को पत्र लिखकर पर्ची वाली दवाओं पर नियंत्रण कड़ा करने की मांग की है।

तकनीक का सहारा जरूरी

बस अड्डों पर पार्सल स्कैनर और ड्रग-सूंघने वाले कुत्तों का उपयोग इस अभियान में सहायक हो सकता है। लेकिन जब तक पर्ची के बिना दवाएं बेचना बंद नहीं होगा, तब तक यह खतरा बना रहेगा।तमिलनाडु में नशीली गोलियों का चलन एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। जहां एक ओर कानून प्रवर्तन एजेंसियां अपने प्रयासों में जुटी हैं, वहीं दूसरी ओर युवाओं में इस नई आदत को रोकने के लिए समाज और परिवार को भी सतर्क होना होगा। सिर्फ पुलिसिया कार्रवाई से नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक जागरूकता और सहयोग से ही इस नई लत को काबू में किया जा सकता है।

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