
कीलाड़ी के बाद अब नागपट्टिनम में खुदाई क्यों चाहता है तमिलनाडु?
नागपट्टिनम की प्रस्तावित खुदाई सिर्फ एक पुरातात्विक परियोजना नहीं है, बल्कि यह द्रविड़ क्षेत्र में धार्मिक समरसता, व्यापारिक समृद्धि और सांस्कृतिक सह-अस्तित्व की ऐतिहासिक पुष्टि है। यह दिखाता है कि कैसे चोल राजाओं ने विभिन्न परंपराओं को साथ लेकर चलने का मार्ग अपनाया और तमिलनाडु आज उस गौरवशाली बहुधार्मिक अतीत को फिर से सामने लाना चाहता है।
तमिलनाडु के कीलाड़ी खुदाई स्थल की प्रमुख खोजों से यह धारणा मजबूत हुई कि संगम युग के लोग संगठित धर्मों का पालन नहीं करते थे। अब तमिलनाडु सरकार एक कदम आगे बढ़ते हुए नागपट्टिनम में खुदाई की तैयारी कर रही है, जिससे कि यह साबित किया जा सके कि बाद के काल में द्रविड़ भूमि पर विभिन्न धर्म कैसे साथ-साथ फले-फूले। हालांकि, इस बार सरकार कीलाड़ी जैसे विवादों से बचते हुए “सॉफ्ट लैंडिंग” की रणनीति अपना रही है। नागपट्टिनम की खुदाई और रिपोर्ट को लेकर सरकार ने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) से विधिवत अनुमति मांगी है।
चोल काल की बौद्ध विरासत
शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, नागपट्टिनम में 11वीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ चूडामणि विहार मौजूद था, जिसे चोल राजाओं का संरक्षण प्राप्त था। तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग ने ड्रोन सर्वेक्षण और साहित्यिक-सांस्कृतिक प्रमाणों के आधार पर विस्तृत अध्ययन की अनुमति मांगी है। वरिष्ठ पुरातत्वविद अमरनाथ रामकृष्ण, जिन्होंने कीलाड़ी परियोजना पर भी काम किया था, ने नागपट्टिनम में स्थलीय अध्ययन किया और अपनी रिपोर्ट में चूडामणि विहार के स्पष्ट प्रमाण पाए।
ऐतिहासिक प्रमाण
ब्रिटिश सिविल अधिकारी डब्ल्यू. इलियट ने 1860 के दशक में चूडामणि विहार के खंडहरों का उल्लेख किया था और ढहाए जाने से पहले उसका स्केच भी तैयार किया था। 1856 से 1934 के बीच लगभग 350 बौद्ध कांस्य प्रतिमाएं इन स्थलों से प्राप्त हुई हैं। 1878 में प्रकाशित एक शोध पत्र (The Indian Antiquary) के अनुसार, “चाइना पगोडा” के नाम से प्रसिद्ध तीन मंजिला एक प्राचीन बौद्ध स्तूप 1867 में तोड़ा गया था, जो व्यापार और धर्म दोनों की पूर्ति करता था।
हिंदू और बौद्ध पूजा एक साथ
प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेन्नई के इतिहास विभाग के प्रोफेसर वी. मरप्पन ने बताया कि आज भी नागपट्टिनम के आसपास के गांवों में कई क्षतिग्रस्त बुद्ध प्रतिमाएं मौजूद हैं, जिनकी पूजा स्थानीय लोग हिंदू और बौद्ध दोनों पद्धतियों से करते हैं।
उन्होंने कहा कि राजराजा चोल प्रथम (985–1014 ई.) के शासनकाल में बना चूडामणि विहार इस क्षेत्र की धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है। शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध परंपराएं सदियों तक एक साथ फली-फूली हैं।
अनैमंगलम गांव
चोल शिलालेखों में वर्णित अनैमंगलम गांव में एक ओर शिव मंदिर है तो वहीं चूडामणि विहार को जमीन का दान भी दिया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि चोल शासक केवल हिंदू धर्म ही नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म जैसे अन्य परंपराओं का भी संरक्षण करते थे।
थाईलैंड से श्रद्धालुओं का आगमन
हाल ही में थाईलैंड के बौद्ध अनुयायियों का एक समूह नागपट्टिनम स्थित बुद्धारमंगलम गांव आया और उन्होंने एक बुद्ध प्रतिमा के सुरक्षित संरक्षण के लिए एक कमरा भी बनवाया। तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग ने चूडामणि विहार पर विस्तृत रिपोर्ट एएसआई को भेजी है। विभाग का कहना है कि वे इस बार किसी भी तरह के विवाद से बचते हुए, एएसआई के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। एक अधिकारी के अनुसार, यह खुदाई यह दर्शाएगी कि द्रविड़ भूमि पर विभिन्न धर्मों का सह-अस्तित्व कैसे हुआ करता था और व्यापार संबंधों ने कैसे लोगों को जोड़े रखा।
एएसआई की रिपोर्ट
पुरानी एएसआई रिपोर्टों के मुताबिक, नागपट्टिनम के वेलिपालयम क्षेत्र, जहां वर्तमान में जिला न्यायालय है, वहीं पर चूडामणि विहार स्थित था। रिपोर्ट में लिखा है कि यह स्थान चोल काल से लेकर औपनिवेशिक युग तक की निरंतर सांस्कृतिक परंपरा का प्रमाण है।