
तमिलनाडु सरकार के दस्तावेजों से हटेगा 'कॉलोनी' शब्द, जानें क्या है वजह
केरल की तरह अब तमिलनाडु सरकार ने भी सरकारी दस्तावेजों से कॉलोनी शब्द हटाने का निर्णय लिया है।
तमिलनाडु में अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के आवासीय इलाकों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रयुक्त होने वाले शब्द ‘कॉलोनी’ को अब सरकारी रिकॉर्ड्स से हटाया जाएगा। मंगलवार, 29 अप्रैल को विधानसभा में इसकी घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि 'कॉलोनी' शब्द अब एक अपमानजनक अर्थ ग्रहण कर चुका है, इसलिए इसे सभी सरकारी दस्तावेजों से हटाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
छात्रों के लिए बड़ी राहत
तमिलनाडु में दलित अधिकार संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे जातिवाद मिटाने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। उल्लेखनीय है कि केरल सरकार ने भी पिछले वर्ष इसी तरह का निर्णय लिया था, जिसमें 'कॉलोनी' शब्द का सरकारी रिकॉर्ड्स में उपयोग बंद करने की घोषणा की गई थी।
विझुथुगल संस्था के समन्वयक के. थंगवेल ने The Federal से बात करते हुए कहा: "पते के प्रमाण जैसे आधिकारिक दस्तावेजों से 'कॉलोनी' शब्द हटाना छात्रों के लिए बड़ी राहत होगी। पहले कई छात्रों ने शिकायत की थी कि जब वे अपने इलाके का नाम बताते हैं, जिसका अंत 'कॉलोनी' से होता है, तो उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। अब जब यह शब्द हट जाएगा, तो छात्र स्वतंत्र महसूस करेंगे। बहुत से जातिवादी लोग दलित बच्चों को ‘कॉलोनी के बच्चे’ कहकर बुलाते हैं, जो अब धीरे-धीरे बदलेगा।"
औपनिवेशिक मानसिकता की विरासत
लेखक ए. जीवकुमार ने कहा कि 'कॉलोनी' शब्द ब्रिटिश राज के दौरान प्रचलन में आया और स्वतंत्र भारत में भी जारी रहा क्योंकि जातिवादी व्यवस्था बनी रही।उन्होंने कहा, “ब्रिटेन की कॉलोनी के रूप में भारत को दासों का देश बताया गया था। हर क्षेत्र में ज़मींदारों ने अपने नियंत्रण में कुछ 'कॉलोनी' तय कर रखी थीं। स्वतंत्रता के बाद भी इस शब्द का इस्तेमाल इसलिए जारी रहा क्योंकि जातीय मानसिकता से हम बाहर नहीं आ सके और कुछ लोगों को नीचा दिखाने के लिए उनके बस्तियों को 'कॉलोनी' कहा जाता रहा। यह शब्द वहां रहने वाले लोगों में हीनभावना पैदा करता है। अब इस नए निर्णय के साथ वह युग समाप्त होगा।”