
तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री ने केंद्र पर हिंदी थोपने का लगाया आरोप, NEP 2020 पर चिंता की जाहिर
क्या तमिलनाडु शैक्षणिक कारणों या राजनीति के कारण NEP को खारिज कर रहा है? भाजपा के रामा श्रीनिवासन ने DMK के रुख, हिंदी थोपने के दावों और फंड खारिज करने पर सवाल उठाए.
तमिलनाडु के स्कूल शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोयमोजी ने केंद्र सरकार पर हिंदी को "बैकडोर" के जरिए थोपने का आरोप लगाया, साथ ही राज्य की दशकों पुरानी द्विभाषा नीति को कमजोर करने का आरोप भी लगाया. The Federal से विशेष बातचीत में उन्होंने NEP 2020, वित्तीय संकट और बीजेपी-नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों के तहत तमिलनाडु के शिक्षा तंत्र के सामने आने वाली समस्याओं पर अपनी चिंताएं व्यक्त कीं.
NEP का विरोध
साल 2015 से जब से बीजेपी सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को पेश किया है, तमिलनाडु इसका विरोध करता आ रहा है. महेश का कहना है कि इस नीति को बिना शिक्षा विशेषज्ञों की सलाह के तैयार किया गया है और इसमें कई आरएसएस समर्थक व्यक्तियों का प्रभाव है. महेश ने कहा कि मुख्यमंत्री ने NEP के कई पहलुओं पर विरोध दर्ज किया था. जैसे कक्षा 3, 5 और 8 के लिए अनिवार्य सार्वजनिक परीक्षा और कक्षा 6 से व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत, जो छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा से हटा सकती है.
इसके अलावा, महेश ने भाषा प्रचार में वित्तीय पक्षपाती का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि केंद्र ने संस्कृत के विकास के लिए 1,488 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. जबकि तमिल, तेलुगु और कन्नड़ जैसी द्रविड़ भाषाओं को नजरअंदाज किया है. यह आरोप 'संस्कृतकरण' के खिलाफ है, जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा की जा रही है.
तीन-भाषा नीति पर दबाव
तमिलनाडु को तीन-भाषा नीति से हमेशा छूट दी गई है. लेकिन केंद्र सरकार अब राज्य पर दबाव बना रही है. महेश ने कहा कि 1963-67 और 1976 के नियमों के तहत तमिलनाडु को अपनी द्विभाषा प्रणाली बनाए रखने की अनुमति है. लेकिन केंद्र मंत्री हमें तीन-भाषा नियम लागू करने के लिए कह रहे हैं.
महेश ने इस नीति के कार्यान्वयन में द्विचारिता पर सवाल उठाया कि ज्यादातर हिंदी-भाषी राज्य तीन भाषाओं का पालन नहीं करते तो तमिलनाडु को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है? उनका कहना है कि हिंदी को अनिवार्य बनाने से तमिल भाषा की स्थिति कमजोर होगी और छात्रों के वैश्विक शिक्षा और रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे.
'फंड ब्लैकमेल' का आरोप
तमिलनाडु का शिक्षा क्षेत्र केंद्र द्वारा लगाए गए वित्तीय प्रतिबंधों के कारण संकट में है. महेश का आरोप है कि केंद्र सरकार हमें NEP 2020 को स्वीकार करने के लिए फंडिंग को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है.
मुख्य वित्तीय मुद्दे
- SSA (सर्व शिक्षा अभियान) के तहत 2,152 करोड़ रुपये की धनराशि में देरी हो रही है, जिससे 43 लाख छात्रों पर असर पड़ा है.
- 2023 से RTE (राइट टू एजुकेशन) के लिए फंडिंग को बंद कर दिया गया, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को निजी स्कूलों में समस्या हो रही है.
- विशेष जरूरतों वाले बच्चों और अनाथों के लिए वित्तीय सहायता रोकी गई.
महेश ने कहा कि हम टैक्स दे रहे हैं. लेकिन हर रुपये के बदले हमें सिर्फ 0.29 रुपये मिल रहे हैं.
तमिलनाडु का शिक्षा मॉडल और वैश्विक पहचान
तमिलनाडु का द्रविड़ शिक्षा मॉडल अब वैश्विक पहचान प्राप्त कर चुका है. महेश ने बताया कि हमारी पहल जैसे समाचीर कल्वी, नाश्ता योजना, STEM लैब्स और कौशल आधारित प्रशिक्षण को इंग्लैंड, कनाडा और अन्य भारतीय राज्यों में अध्ययन किया जा रहा है. राज्य ने डिजिटल शिक्षा के लिए माइक्रोसॉफ्ट के साथ MoU (सहमति पत्र) पर हस्ताक्षर किए हैं और पिछले चार वर्षों में 67 नई योजनाओं की शुरुआत की है. "सतत विकास लक्ष्य (SDG) और भारत के राष्ट्रपति ने भी हमारे प्रयासों को सराहा है.
द्विभाषा नीति पर पुनर्विचार?
जब महेश से पूछा गया कि क्या तमिलनाडु अपनी द्विभाषा नीति पर पुनर्विचार करेगा तो उन्होंने कहा कि यह केवल भाषा का मुद्दा नहीं है; यह एक समान नीति का विरोध करने का मामला है. NEP 2020 को पूरी तरह से संशोधित किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि हिंदी थोपने का प्रयास बहुत ही सूक्ष्म तरीके से किया जा रहा है. “वे 'हिंदी अनिवार्य है' नहीं कहते. लेकिन वे शिक्षा संरचना को इस तरह से ढाल रहे हैं कि हिंदी और संस्कृत ही एकमात्र विकल्प बन जाएं.
राजनीतिक संघर्ष का ऐतिहासिक संदर्भ
तमिलनाडु में हिंदी थोपने के खिलाफ संघर्ष कोई नई बात नहीं है. महेश ने 1965 के हिंदी विरोधी आंदोलनों का उल्लेख करते हुए कहा कि अरिग्नार अन्ना और शहीद कोडाम्बक्कम शिवलिंगम जैसे नेताओं ने तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था. उन्होंने बताया कि मेरे दादा अंबिल धर्मलिंगम ने विधानसभा में खड़े होकर कहा था कि वे तमिल भाषा के अधिकारों के लिए अपनी जान भी देने को तैयार हैं.
आगे का रास्ता
चुनावों के करीब आते हुए तमिलनाडु में NEP 2020, तीन-भाषा नीति और केंद्र द्वारा फंडिंग में कटौती के खिलाफ विरोध एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनने की संभावना है. महेश ने निष्कर्ष में कहा कि हम राजनीतिक ब्लैकमेल के सामने झुकने वाले नहीं हैं. हमारी प्राथमिकता हमेशा गुणवत्ता वाली शिक्षा रही है, न कि राजनीतिक एजेंडों के पालन में.