ब्रेन-डेड से नया जीवन, अंगदान में देश को राह दिखा रहा तेलंगाना
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ब्रेन-डेड से नया जीवन, अंगदान में देश को राह दिखा रहा तेलंगाना

तेलंगाना की जीवंदान योजना ने हजारों जिंदगियां बचाईं। परिवार दुख को आशा में बदलते हुए अंगदान कर रहे हैं। राज्य अंगदान में देश में अव्वल है।


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तेलंगाना ने चुपचाप असाधारण उदारता की एक ऐसी कहानी लिखी है, जो देश के लिए प्रेरणा बन रही है। यह यात्रा शुरू होती है उस कठिन क्षण से, जब डॉक्टर किसी प्रियजन को ब्रेन-डेड घोषित करते हैं। इसके बाद परिवार एक ऐसा निर्णय लेता है, जो अजनबियों को नया जीवन दे देता है। राज्य की महत्वाकांक्षी ‘जीवंदान योजना’ के तहत गांव-गांव और शहर-शहर के परिवार दुख को आशा में बदल रहे हैं, और अंगदान करके ज़िंदगियाँ बचा रहे हैं।

दुख से उम्मीद तक: व्यक्तिगत कहानियाँ

इस साल अगस्त की एक उमस भरी शाम, 37 वर्षीय कृष्ण सुमंथ भुवनगिरी हैदराबाद के मियापुर से घर लौटते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गए। डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन-डेड घोषित किया। उनके माता-पिता ने दिल, गुर्दे, जिगर और फेफड़े दान करने का फैसला लिया, जिससे सात गंभीर रूप से बीमार मरीजों को नया जीवन मिला।

कुछ हफ्ते पहले, महबूबनगर जिले के 22 वर्षीय कावली शिवप्रसाद की एक हमले में मौत हो गई। अपने इकलौते बेटे को खो चुके पिता ने बेटे के अंग दान कर तीन लोगों की जान बचाई। ऐसी अनगिनत कहानियाँ आज तेलंगाना के अस्पतालों की गलियारों में गूंज रही हैं, जहां शोक और करुणा एक-दूसरे से मिलते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर सबसे आगे

तेलंगाना आज भारत में अंगदान के क्षेत्र में नंबर-वन है। यहां प्रति दस लाख आबादी पर औसतन 4.88 दान होते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत मात्र 0.8 है।2013 से अब तक, 1,691 ब्रेन-डेड व्यक्तियों के परिवारों ने अंगदान किया है, जिससे 6,372 मरीजों को नया जीवन मिला। इसमें शामिल हैं:

2,538 गुर्दे

1,550 जिगर

230 दिल

403 फेफड़े

14 अग्न्याशय

170 हार्ट वाल्व

1,467 कॉर्निया

कई मामलों में ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाकर अंगों को तुरंत मरीजों तक पहुँचाया गया।

जिला स्तर पर विस्तार

तेलंगाना स्वास्थ्य विभाग अब इस सफलता को राजधानी से बाहर जिलों तक ले जा रहा है। जल्द ही वारंगल के एमजीएम अस्पताल, आदिलाबाद के रिम्स और अन्य सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा उपलब्ध होगी। सरकार सार्वजनिक अस्पतालों में प्रक्रिया को सरल बना रही है, ताकि ग्रामीण मरीजों को भी पास ही जीवन रक्षक इलाज मिल सके।

कानूनी सुधार और दानकर्ताओं को समर्थन

राज्य अब राष्ट्रीय ‘मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम’ के अनुरूप नए नियम बना रहा है। नए प्रावधानों में दादा-दादी भी अंगदान या अंग प्राप्ति के लिए पात्र होंगे। ऑर्गन स्वैपिंग यानी दो परिवार आपसी सहमति से अंगदान कर सकेंगे। सरकार दानकर्ताओं के अंतिम संस्कार में आर्थिक मदद करेगी। निजी अस्पतालों की सख्त निगरानी होगी, उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

जनजागरूकता और आंदोलन की दिशा

इस अभियान को लंबे समय तक टिकाए रखने के लिए जागरूकता बेहद ज़रूरी है। जीवंदान कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. श्री भूषण राजू बताते हैं कि व्यापक स्तर पर संपर्क अभियान चलाया जाएगा। दानकर्ताओं के परिवारों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाएगा।गुदुरु सीतामहलक्ष्मी, ऑल इंडिया ऑर्गन डोनर्स एसोसिएशन की संस्थापक, चाहती हैं कि अंगदान एक जनआंदोलन बने। वह मांग करती हैं कि दानकर्ताओं को राज्य-स्तरीय सम्मानित अंतिम संस्कार मिले।स्कूल प्रवेश फॉर्म और ड्राइविंग लाइसेंस में अंगदान का विकल्प शामिल हो।जनगणना सर्वेक्षण में अंगदान से जुड़े सवाल जोड़े जाएं।ऑनलाइन पंजीकरण को आसान बनाया जाए।

इंतज़ार में ज़िंदगियाँ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल भारत में 5 लाख लोग अंग न मिलने के कारण मौत का शिकार हो जाते हैं। केवल तेलंगाना में ही वर्तमान में 3,835 मरीज प्रतीक्षा सूची में हैं 2,715 को गुर्दे चाहिए,926 को जिगर,100 को दिल,,79 को फेफड़े और15 को अग्न्याशय।डॉक्टरों के अनुसार, एक ब्रेन-डेड व्यक्ति सात लोगों की जान बचा सकता है, और आँखें, हृदय, जिगर, गुर्दे, फेफड़े, त्वचा और अस्थियाँ तक दान कर सकता है।

लगातार बढ़ते आंकड़े

तेलंगाना में हर साल अंग प्रत्यारोपण की संख्या बढ़ रही है।2013 में केवल 189 मरीज को अंग मिले थे।पिछले साल यह संख्या बढ़कर 725 हो गई।इस साल अब तक 527 प्रत्यारोपण हो चुके हैं।जीवंदान योजना और समर्पित चिकित्सा टीमों की वजह से हजारों लोग अंगदान की शपथ ले रहे हैं।

तेलंगाना का यह मॉडल दिखाता है कि नीति, स्वास्थ्य अवसंरचना और मानवीय संवेदनशीलता जब एक साथ आते हैं, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। यहां परिवार अपने दुख को विरासत और जीवनदान में बदल रहे हैं। अस्पतालों के शांत गलियारों में हर दिन यह सच्चाई सामने आती है कि मृत्यु के बाद भी जीवन संभव है।

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