नागालैंड में फ्रंटियर टेरिटरी को लेकर सियासी घमासान, केंद्र-राज्य में ठनी
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नागालैंड में फ्रंटियर टेरिटरी को लेकर सियासी घमासान, केंद्र-राज्य में ठनी

नागालैंड के पूर्वी जिलों में विकास असमानता को दूर करने के लिए FNT एक संभावित समाधान है, लेकिन इससे संवैधानिक, वित्तीय और सामाजिक-राजनीतिक तनाव भी पैदा हो रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच समझौता किस रूप में होता है।


नागालैंड में एक नए स्वायत्त क्षेत्र की प्रस्तावित व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच गंभीर मतभेद उभर आए हैं। इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री नेफियू रियो की अगुवाई में एक मंत्रीमंडलीय प्रतिनिधिमंडल मंगलवार (19 अगस्त) को दिल्ली रवाना हुआ है। वे बुधवार को गृह मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे।

क्या है फ्रंटियर नगालैंड टेरिटरी (FNT)?

गृह मंत्रालय ने सिद्धांत रूप में "फ्रंटियर नगालैंड टेरिटरी" (FNT) नामक एक स्वायत्त क्षेत्र बनाने पर सहमति जताई है। इसका उद्देश्य राज्य के पूर्वी क्षेत्रों में विकास की असमानता को दूर करना है। इस प्रस्तावित क्षेत्र में छह जिले शामिल होंगे: किफिरे, लोंगलेनग, मोन, नोखलाक, शामाटोर और तुएनसांग।

ये जिले सात नागा जनजातियों – कोन्याक, चांग, संगतम, खियामन्युंगन, टिकिर, फोम और यिमकिउंग – के निवास स्थल हैं। ये जनजातियां नागालैंड की कुल जनसंख्या का लगभग 30% और 60 विधानसभा सीटों में से 20 पर प्रभाव रखती हैं।

इन जनजातियों की शीर्ष संस्था Eastern Nagaland People's Organisation (ENPO) लंबे समय से इन जिलों के लिए अलग राज्य या प्रशासनिक क्षेत्र की मांग कर रही है। लोकसभा चुनाव में ENPO की अपील पर इन क्षेत्रों में मतदान का बहिष्कार भी किया गया था।

राज्य सरकार को क्यों है आपत्ति?

राज्य सरकार का कहना है कि इस तरह का प्रावधान राज्य के विभाजन जैसा होगा। नागालैंड के संसदीय मामलों के मंत्री केजी केन्ये ने कहा कि हम पूर्वी क्षेत्रों को सार्थक स्वायत्तता देने के पक्ष में हैं, लेकिन यह राज्य की मौजूदा सीमाओं और संविधानिक ढांचे के भीतर होनी चाहिए। केंद्र सरकार अनुच्छेद 371A में संशोधन या नया कानून लाकर FNT को विशेष कानूनी दर्जा देने की योजना बना रही है। यह प्रस्ताव राज्य सरकार को मंज़ूर नहीं है। क्योंकि इससे क्षेत्रीय असंतुलन और संवैधानिक विवाद बढ़ सकते हैं।

FNT का ढांचा

राज्य की सीमाएं नहीं बदली जाएंगी, लेकिन एक अलग प्रशासनिक ढांचा बनेगा। एक विशेष प्रशासक और अलग सचिवालय की व्यवस्था होगी। स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास जैसे विभाग सीधे इस प्राधिकरण के अधीन होंगे। केंद्र सरकार से सीधे फंडिंग की जाएगी, जिससे राज्य सरकार की वित्तीय भूमिका सीमित हो जाएगी। यही प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता का मुद्दा सबसे विवादास्पद है, क्योंकि इससे राज्य की आर्थिक स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ सकता है।

रोजगार आरक्षण को लेकर भी विवाद

FNT को विशेष दर्जा देने से रोजगार में आरक्षण व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है। वर्तमान में राज्य की 37% सरकारी नौकरियां 11 पिछड़ी जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, जिसमें से 25% FNT क्षेत्र की जनजातियों के लिए है। राज्य की पांच अपेक्षाकृत प्रगतिशील जनजातियों ने इस पर आपत्ति जताई है और सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार किया है। इसके चलते सरकार ने 48 साल पुरानी आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन भी कर दिया है।

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