
दिल्ली से 'राज' शाही की पहचान की विदाई ! राज निवास अब हुआ लोक निवास
गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने ‘राज निवास’ का नाम बदलकर ‘लोक निवास’ किया; क्या अब यह स्थान जनता से सीधे संवाद और त्वरित समाधान का केंद्र बनेगा।
Raj Niwas To Lok Niwas : देश की राजधानी दिल्ली में प्रशासनिक प्रणाली की एक महत्वपूर्ण कड़ी अब नए स्वरूप में सामने आई है। दशकों से सत्ता और अधिकार का प्रतीक रहा उपराज्यपाल का आधिकारिक आवास ‘राज निवास’ अब अपनी औपनिवेशिक पहचान छोड़कर ‘लोक निवास’ कहलाएगा। यह बदलाव केवल नाम का नहीं, बल्कि प्रशासन को जनता के और करीब लाने की कोशिश का संकेत है।
सरकार ने जारी की अधिसूचना, औपनिवेशिक नामों पर लगा विराम
गृह मंत्रालय ने 25 नवंबर को देशभर के राज भवनों का नाम बदलकर ‘लोक भवन’ करने की अधिसूचना जारी की थी। इसी क्रम में दिल्ली के उपराज्यपाल सचिवालय ने भी औपचारिक रूप से ‘राज निवास’ का नाम बदलने का आदेश जारी कर दिया। सरकार का कहना है कि यह कदम शासन में ‘राज’ नहीं बल्कि ‘लोक’ और ‘सेवा’ को प्राथमिकता देने का प्रतीक है।
उपराज्यपाल सक्सेना की पहल, जनता से संवाद पर खास जोर
उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने पदभार संभालने के बाद से ही इस बात पर जोर दिया है कि यह आवास केवल संवैधानिक पद का प्रतीक न रहे, बल्कि जनता की समस्याओं और समाधान का केंद्र बने। इसी सोच के तहत उन्होंने ‘संवाद’ जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की, जहां लोग सीधे अपनी शिकायतें लेकर उनसे मिल सकते हैं।
उपराज्यपाल ने अपना आधिकारिक X हैंडल भी बदलकर @lokniwasdelhi कर दिया है, जो इस बदलाव को और मजबूती देता है।
नाम बदला, कार्यशैली भी बदल रही - अब खुला दरबार
‘लोक निवास’ की अवधारणा केवल बोर्ड बदलने तक सीमित नहीं है। अब उपराज्यपाल लगातार आम लोगों से मिल रहे हैं। दिल्ली के विभिन्न इलाकों से आए नागरिक अपनी समस्याएं सीधे एलजी के सामने रख रहे हैं
डीडीए से जुड़े हाउसिंग के मसले
पुलिस की शिकायतें
एमसीडी की सफाई व्यवस्था
पेंशन और अन्य कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े मुद्दे
पहले जहां ऐसे मामले फाइलों और दफ्तरों की लंबी प्रक्रिया में उलझ जाते थे, वहीं अब कई शिकायतों का निपटारा उपराज्यपाल मौके पर ही अधिकारियों को निर्देश देकर कर रहे हैं।
जनता और सरकार के बीच की दूरी पाटने का प्रयास
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह कदम औपनिवेशिक प्रशासनिक छवि से बाहर निकलने का प्रतीक है। ‘राज’ शब्द ब्रिटिश शासन की मानसिकता को दर्शाता था, जबकि ‘लोक’ लोगों से जुड़ाव और जिम्मेदारी को मजबूत करता है। यह बदलाव दिल्ली की प्रशासनिक संस्कृति को जन-केंद्रित दिशा में ले जाने का संकेत है।
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