लगातार ऑपरेशनों से नक्सली ढहे, आत्मसमर्पण- समन्वय बना जीत की कुंजी
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लगातार ऑपरेशनों से नक्सली ढहे, आत्मसमर्पण- समन्वय बना जीत की कुंजी

हालिया अभियानों में आत्मसमर्पण से मिली खुफिया जानकारी और राज्यों की साझा रणनीति ने नक्सली आंदोलन की रीढ़ तोड़ दी है, कई शीर्ष नेता मारे गए।


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हाल ही में शीर्ष नक्सली नेताओं के खात्मे को सुरक्षा अधिकारियों ने दो अहम कारणों से जोड़ा है। पहला, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों से मिली सटीक खुफिया जानकारी, जिसमें उनके बुजुर्ग कमांडरों के ठिकाने और आवाजाही का विवरण शामिल था। दूसरा, नक्सल प्रभावित राज्यों में पुलिस और सुरक्षा बलों के समन्वित व तीव्र अभियानों ने इन कार्रवाइयों को गति दी। लगातार सिकुड़ते सुरक्षित ठिकानों ने भी नक्सलियों को कमजोर कर दिया है।

अभियान और मारे गए शीर्ष नक्सली

11 सितंबर को छत्तीसगढ़ पुलिस ने गरियाबंद जिले के भालुडिगी पहाड़ी इलाके में मोदम बालकृष्णा, जो सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सदस्य था, को ढेर कर दिया।

15 सितंबर को झारखंड पुलिस और सीआरपीएफ कमांडो ने संयुक्त अभियान में सहदेव सोरेन को मार गिराया, जो केंद्रीय समिति का सदस्य था और उस पर 1 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। इस मुठभेड़ में दो और माओवादी भी मारे गए।

मई माह में सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ में पार्टी के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु को भी मार गिराया।इन घटनाओं के साथ ही हाल के महीनों में आधा दर्जन से अधिक केंद्रीय समिति के सदस्य मारे जा चुके हैं।

उम्र और कमजोरी से बढ़ी मुश्किलें

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि शीर्ष माओवादी आम तौर पर 20-25 कैडरों की "क्लोज प्रोटेक्शन टीम" के साथ चलते हैं। लेकिन हाल में आत्मसमर्पण करने वाले कई माओवादी इन्हीं सुरक्षा टीमों का हिस्सा रहे हैं और उन्होंने नेताओं की गतिविधियों की अहम जानकारी दी।बसवराजु के मामले में भी एक जोड़े ने, जो उसके बेहद करीब था, आत्मसमर्पण कर पुलिस को खुफिया जानकारी दी थी।

अधिकारियों के मुताबिक, अब ज्यादातर शीर्ष माओवादी नेता 60 और 70 के दशक की उम्र में पहुंच चुके हैं और उनकी शारीरिक फुर्ती कम हो गई है। कठिन भौगोलिक इलाकों में आवाजाही उनके लिए चुनौती बन गई है।

अब सुरक्षित ठिकाने भी नहीं रहे सुरक्षित

पहले नक्सली नेता दबाव बढ़ने पर लंबे समय तक सुरक्षित ठिकानों में चले जाते थे। लेकिन अब उन्हें कैडरों का मनोबल बनाए रखने के लिए उनके साथ ही रहना पड़ता है। नेताओं की अनुपस्थिति से पहले ही टूटे मनोबल पर और असर पड़ता।यही कारण है कि वे अब आसानी से सुरक्षा बलों के जाल में फंस रहे हैं। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी उनके सुरक्षित ठिकानों की जानकारी भी पुलिस को दे रहे हैं।

राजनीतिक समर्थन और समन्वय

मध्यप्रदेश पुलिस के विशेष महानिदेशक (नक्सल ऑपरेशन) पंकज श्रीवास्तव के मुताबिक, सभी नक्सल प्रभावित राज्यों में सरकारों का राजनीतिक समर्थन और आपसी समन्वय इन अभियानों की सफलता का बड़ा कारण है।वहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (नक्सल ऑपरेशन) विवेकानंद ने कहा कि योजनाबद्ध रणनीति और सूचनाओं की जमीनी पुष्टि के बाद ही अभियान चलाया जाता है। उन्होंने कहा चाहे सूचना कितनी भी छोटी क्यों न हो, उसे गंभीरता से लिया जाता है। सभी हितधारक मिलकर योजना बनाते हैं ताकि ऑपरेशन में कोई कमी न रह जाए।

नतीजा यह है कि नक्सल आंदोलन की रीढ़ टूटती नज़र आ रही है। बुजुर्ग और थके हुए नेताओं की कमजोर होती पकड़, आत्मसमर्पण कर चुके कैडरों की मुखबिरी और राज्यों की साझा रणनीति ने सुरक्षा बलों को निर्णायक बढ़त दिलाई है।

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