Chabimura News: जहां पहले गूंजती थीं गोलियां, अब बहती है पर्यटन की नाव
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चट्टानों को काटकर बनाई गई मूर्तियों के साथ त्रिपुरा का छबीमुरा अपने हिंसक अतीत को पीछे छोड़कर एक पर्यटन केंद्र बनने की ओर बढ़ चला है।

Chabimura News: जहां पहले गूंजती थीं गोलियां, अब बहती है पर्यटन की नाव

त्रिपुरा के चबिमुरा में कभी आतंक का साया था, अब पर्यटन से विकास की बयार बह रही है। चट्टानों की मूर्तियों ने ग्रामीणों को नई पहचान और उम्मीद दी है।


Chabimura Tourist Place: गोमती नदी के किनारे प्राचीन शिलाचित्रों से सजे पहाड़ों के पास जब दिलीप जमातिया (बदला हुआ नाम) पर्यटकों को यहां की पौराणिक गाथाएं सुनाते हैं, तो उनके चेहरे पर गर्व साफ झलकता है। ये शिलाचित्र न केवल कला का अनोखा उदाहरण हैं, बल्कि त्रिपुरी समुदाय के गौरवपूर्ण अतीत का जीवंत प्रतीक भी हैं। एक ऐसा अतीत जिसे कभी दिलीप ने कलाश्निकोव की नली से बचाने की कोशिश की थी।

आतंक से पर्यटन तक

दिलीप कभी नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) का हिस्सा थे, जिसका उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के ज़रिए एक स्वतंत्र त्रिपुरी राष्ट्र की स्थापना करना था। लेकिन आज वह महसूस करते हैं कि आतंक नहीं, बल्कि पर्यटन ही उनकी संस्कृति और समुदाय की प्रगति का सही रास्ता है।

अब वह Hachwk Mwtai स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़े हैं, जो चबिमुरा के पर्यटन विकास की देखरेख करता है। यह परियोजना त्रिपुरा सरकार और एशियाई विकास बैंक (ADB) की संयुक्त पहल है। इस समूह के उपाध्यक्ष माणिक जमातिया ने बताया कि 45 प्रशिक्षित सदस्य विभिन्न पर्यटन गतिविधियों में लगे हैं, जिनमें से कुछ पहले उग्रवाद से जुड़े रहे हैं।

देवताओं की पहाड़ियां, चबिमुरा की विरासत

चबिमुरा, जिसे देवतमुरा (देवताओं की पहाड़ी) भी कहा जाता है, में 37 शिलाचित्र हैं — देवी दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी, शिव, गणेश, कार्तिकेय और विष्णु जैसी हिन्दू देवताओं की नक्काशियां। सबसे ऊंचा चित्र महिषासुर मर्दिनी का है, जो 10.7 मीटर ऊंची और 7.7 मीटर चौड़ी चट्टान पर उकेरा गया है। लोककथाओं के अनुसार इसे चक्रक-मा के नाम से पूजा जाता है।

हालांकि कई मूर्तियां समय की मार से धुंधली हो चुकी हैं और उनके शस्त्र अब मुश्किल से नज़र आते हैं। इन चित्रों की सटीक उत्पत्ति पर अभी शोध जारी है,कुछ इसे 8वीं सदी का बताते हैं तो कुछ इसे 15वीं सदी की रचना मानते हैं।

लोककथाओं में रचा इतिहास

एक लोकप्रिय कथा के अनुसार त्रिपुरा के शासक धन्य माणिक्य (1463-1515) ने मुस्लिम आक्रमण के दौरान इस क्षेत्र में एक गुफा में शरण ली थी। एक दिव्य स्वप्न के बाद उन्होंने देवी पूजन किया और अगले ही दिन नदी ने मुस्लिम शिविरों को बहा दिया, जिससे त्रिपुरा की विजय हुई।धन्य माणिक्य ने त्रिपुरा सुंदरी मंदिर जैसे कई प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण भी किया था, जो चबिमुरा से 30 किलोमीटर दूर उदयपुर में स्थित है।

पर्यटन के नए आयाम

एशियाई विकास बैंक चबिमुरा और आसपास के क्षेत्रों में 67.76 करोड़ रुपए की लागत से पर्यटन ढांचे के विकास में निवेश कर रहा है। इसमें इको-होटल्स, नदी सुरक्षा, प्राकृतिक स्थलों का सौंदर्यीकरण, और मंगलचंडी मंदिर जैसे ऐतिहासिक स्थलों का संवर्धन शामिल है।

फटिक सागर और अमर सागर नामक दो कृत्रिम झीलों को भी विकसित किया जा रहा है, जिनके पास 15वीं सदी में निर्मित मंगलचंडी मंदिर स्थित है। एक ऐसा स्थल जो हिंदू और बौद्ध परंपराओं का समागम है।

ग्रामीण जीवन में बदलाव

SHG सदस्य बिप्लब जमातिया बताते हैं कि 2023 में अगरतला से बेहतर सड़क संपर्क बनने के बाद पर्यटकों की संख्या बढ़ी है। अब नवंबर से जनवरी तक प्रतिमाह लगभग 300 पर्यटक आते हैं। वे बोटिंग और गाइड सेवा के लिए 150 रुपए प्रति व्यक्ति लेते हैं।

क्षेत्र के दो गांव देब्बारी और छापिया मिलकर लगभग 1,500 की जनसंख्या के साथ 400 परिवारों के घर हैं। मुख्य आजीविका रबर की खेती और पारंपरिक कृषि है। अब धीरे-धीरे लोग होमस्टे, दुकानें और खाने-पीने के स्टॉल खोल रहे हैं। SHG का लक्ष्य अब एक बहुउद्देशीय सहकारी संस्था बनकर अपने काम को और विस्तृत करना है।

सरकार भी इस बदलाव में सक्रिय है। लकड़ी के घर, प्राकृतिक सुविधाएं, और स्थानीय लोगों के लिए प्रशिक्षण जैसी योजनाएं चल रही हैं। TTDCL और ADB की रिपोर्ट बताती है कि परियोजना विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों को लाभ पहुंचाने पर केंद्रित है।

चबिमुरा अब उम्मीद का प्रतीक

कभी आतंकवाद से ग्रस्त यह इलाका, आज पर्यटन से नई पहचान बना रहा है। “अब हमें लगता है कि बंदूक नहीं, नाव, संस्कृति और दर्शन ही हमारा भविष्य हैं,” दिलीप कहते हैं। शांति की वापसी ने न केवल रोजगार दिए हैं, बल्कि लोगों को अपने गौरवशाली अतीत से फिर जोड़ दिया है।चबिमुरा, चित्रों की यह पहाड़ी आज न केवल त्रिपुरा का गौरव है, बल्कि यह कहानी है आतंक से पर्यटन तक की एक अद्भुत यात्रा की।

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