
दलित बस्तियों में मंदिर या असली कल्याण? TTD की योजना पर सवाल
टीटीडी की दलित बस्तियों में 1000 मंदिर योजना ने विवाद खड़ा कर दिया है। आलोचक कहते हैं कि मंदिर नहीं शिक्षा-रोज़गार ज़रूरी है।
तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने इस महीने की शुरुआत में घोषणा की कि वह राज्यभर की दलित बस्तियों में 1,000 श्री वेंकटेश्वर मंदिरों का निर्माण करेगा। इस पहल को दलित समुदायों के बीच हिंदू आस्था मजबूत करने और धार्मिक परिवर्तन (कन्वर्ज़न) पर रोक लगाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
धर्म परिवर्तन रोकने की दलील
हाल ही में हुई बोर्ड बैठक में TTD अध्यक्ष बी.आर. नायडू ने कहा कि हर विधानसभा क्षेत्र में छह मंदिर बनाए जाएंगे। इसके लिए श्रीवाणी ट्रस्ट से आर्थिक मदद दी जाएगी। उनका तर्क था कि इन मंदिरों से दलित समुदाय में धर्म परिवर्तन की प्रवृत्ति रुकेगी।
आलोचना और विवाद
हालांकि इस कदम को लेकर कई पक्षों से आलोचना भी हो रही है। आलोचकों का कहना है कि यह एक तरह का “हिंदू प्रचारवाद” (Hindu evangelism) है, जिसमें धर्म का इस्तेमाल वोट बैंक के लिए किया जा रहा है। साथ ही, शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य जैसे असली मुद्दों से ध्यान हटाया जा रहा है।
दलित नेतृत्व की अनुपस्थिति
आलोचकों ने यह भी सवाल उठाया कि TTD का दलितों के प्रति “चिंतन” नेतृत्व पदों पर क्यों नहीं दिखता। संगठन के 93 साल के इतिहास में आज तक किसी दलित या आदिवासी को EO (एग्जीक्यूटिव ऑफिसर), JEO (जॉइंट एग्जीक्यूटिव ऑफिसर) या चेयरमैन नहीं बनाया गया। 53 IAS अधिकारी EO और 54 लोग चेयरमैन रह चुके हैं, लेकिन इनमें कोई दलित नहीं था।
दलित टर्न की शुरुआत
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दलितों तक TTD की पहुँच का पहला बड़ा मोड़ 2004 में वाई.एस. राजशेखर रेड्डी के मुख्यमंत्री बनने के समय आया। उस समय भारी विवाद के बाद TTD ने “दलित गोविंदम” कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत भगवान बालाजी की शोभायात्रा दलित बस्तियों में निकाली जाने लगी और प्रसाद बांटा जाने लगा। लेकिन आंध्र प्रदेश विभाजन (2014) के बाद यह पहल ठंडी पड़ गई और 2019 में जगनमोहन रेड्डी की सत्ता वापसी के बाद दोबारा सक्रिय हुई।
श्रीवाणी ट्रस्ट और फंड का सवाल
2019 में शुरू हुए श्रीवाणी ट्रस्ट के जरिए भक्त टिकट खरीदकर दान देते हैं और उसका हिस्सा मंदिर निर्माण में जाता है। 2019 से अब तक ट्रस्ट ने सैकड़ों करोड़ रुपए जुटाए हैं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इन पैसों के इस्तेमाल में पारदर्शिता की कमी है। उदाहरण के तौर पर जून 2023 तक ट्रस्ट के पास 860 करोड़ रुपए जमा थे, जिनमें से केवल लगभग 93 करोड़ पुराने मंदिरों के जीर्णोद्धार में लगे।
दलितों की नाराज़गी
दलित संगठनों ने इस योजना की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि मंदिर बनाना वास्तविक समावेशन (inclusion) नहीं है। अगर TTD सच में दलित कल्याण चाहता है तो उन्हें शीर्ष पदों पर जगह दे। आंध्र प्रदेश के कई इलाकों में आज भी दलितों के मंदिर प्रवेश को लेकर भेदभाव होता है। तिरुमला की पहाड़ियों के पास स्थित कपिला तीर्थम के पास का “मालवाड़ी गुंडम” ढांचा इसका प्रतीक है, जहां दलितों को बाहर खड़े होकर पूजा करनी पड़ती थी।
राजनीति और इरादों पर सवाल
राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इस कदम को लेकर अलग-अलग सवाल उठा रहे हैं।RPI नेता पी. अंजया ने कहा कि दलितों को मंदिर नहीं, बल्कि स्कूल और अच्छी शिक्षा की ज़रूरत है।सीपीएम नेता कंधारपू मुरली का आरोप है कि TTD बीजेपी के एजेंडे को लागू कर रहा है।अंबेडकर मिशन के अध्यक्ष सम्पथ कुमार ने कहा कि TTD धर्म और आध्यात्मिकता तक सीमित रहे, न कि धार्मिक शत्रुता फैलाने में जुटे।
TTD की 1,000 मंदिर योजना ने एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। आलोचकों का कहना है कि यह पहल दलितों के अधिकार, गरिमा और वास्तविक विकास की बजाय केवल धार्मिक और राजनीतिक हित साधने की कोशिश है।
(यह लेख पहली बार द फेडरल आंध्र प्रदेश में प्रकाशित हुआ था।)