100 फीसद जीत की कवायद, यूपी में विपक्ष ने खोजा बटेंगे तो कटेंगे की काट
बीजेपी के नेता इस समय बटेंगे तो कटेंगे पर कुछ अधिक जोर दे रहे हैं। लेकिन यूपी में समाजवादी पार्टी ने इसकी काट निकाल ली है। अब वो जुड़ेंगे तो जीतेंगे की बात कर रहे हैं।
UP Assembly By Poll News: यूपी की सियासत में इस समय पोस्टर और नारों की भरमार है, सत्ताईस का सत्ताधीश, सत्ताईस का खेवनहार, सत्ताईस का नारा, निषाद है हमारा, बटेंगे तो कटेंगे कुछ खास हैं। बटेंगे तो कटेंगे का नारा हरियाणा के चुनाव में सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने बुलंद किया था। लेकिन यह नारा एक बार फिर तब चर्चा में आया जब मुंबई की सड़कों पर इससे जुड़े पोस्टर नजर आए। मुंबई में विपक्ष यानी महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने कहा कि नफरत की राजनीति करने वाले अब महाराष्ट्र में लोगों को धर्म और मजहब के नाम पर बांटने आ गए। यानी विरोध 100 फीसद इन सबके बीच लखनऊ में एक और पोस्टर नजर आ रहा है जिस पर लिखा है जुड़ेंगे तो जीतेंगे, उस पोस्टर पर तस्वीर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की है। सवाल यह है कि यूपी में इतने बड़े पैमाने पर पोस्टरबाजी क्यों हो रही है। दरअसल यूपी में विधानसभा की 9 सीटों के लिए उपचुनाव होने जा रहा है। सीटों की संख्या भले ही 9 नजर आ रही है लेकिन उसके राजनीतिक मायने बड़े हैं।
यूपी में 9 सीटों पर उपचुनाव
यूपी में जिन 9 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं उसमें 2022 का नतीजा समाजवादी पार्टी और बीजेपी के पक्ष में था। 2024 के उप चुनाव में इन सभी सीटों पर इन दो दलों के बीच सीधी लड़ाई है। हालांकि बीएसपी इसे त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की तैयारी कर रही है। उप चुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी के लिए साख की लड़ाई है तो सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए बड़ी चुनौती की तरह। अखिलेश यादव को जवाब देना है कि पीडीए वाला नारा अभी भी प्रासंगिक है तो बीजेपी को जवाब देना है कि समाजवादी की जीत किसी विचारधारा की जीत नहीं बल्कि लोगों को भ्रम में डालकर चुनाव जीतने की कवायद मात्र थी। यहीं से सवाल उठता है कि अगर यूपी के सीएम बटेंगे को कटेंगे की बात बांग्लादेश के हिंदुओं के संदर्भ में करते हैं तो समाजवादी पार्टी को नारा गढ़ने की जरूरत क्यों पड़ गई।
दरअसल समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि बटेंगे तो कटेंगे नारा समाज के उन तबकों में धर्म के नाम सेंध लगाने की कोशिश है जो आम चुनाव 2024 में बीजेपी से मुंह मोड़ लिए थे। अगर उप चुनाव में वोटर्स का वो वर्ग फिर बीजेपी के खेमे में चला गया तो 2027 जीत दर्ज करना मुश्किल होगा। 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव सिर्फ 402 सीटों के लिए चुनाव नहीं होने वाला है। समाजवादी पार्टी के लिए एक हार का मतलब ये कि साल 2034 तक इंतजार करना होगा। अब सियासत में अपने वजूद को बचाए रखने के लिए विपक्ष में रह कर संघर्ष करना मुश्किल होता है। अब समाजवादी पार्टी की सरकार अब किसी और राज्य में तो नहीं जिससे मनोवैज्ञानिक फायदा मिल सके। ऐसी सूरत में कार्यकर्ताओं के उत्साह को बनाए रखना होगा मुश्किल होगा। कुल मिला कर कहने का अर्थ यह है कि समाजवादी पार्टी के लिए हर एक जीत ऑक्सीजन की तरह काम करेगी जो उसे सियासी पिच पर साइकिल चलाने में मदद करेगा।