
क्या BJP ने निकाल ली PDA की काट, जिलाध्यक्षों में सवर्ण-ओबीसी समाज को जगह
यूपी में बीजेपी ने अपने संगठन को 98 जिलों में बांटा हुआ है। अभी 78 जिलाध्यक्षों की सूची जारी की गई है। उस सूची में सवर्ण और पिछड़ों को जगह देकर समाजवादी पार्टी को जवाब दिया गया है।
BJP District President: वैसे तो सभी दल के नेता कहते हैं कि वो जनता की सेवा करने के लिए सबकुछ न्योछावर कर देंगे। हालांकि जनता कहती है कि नेताओं के लिए अजी हम पहली पसंद कहां हैं। पहली पसंद तो कुर्सी है यानी लड़ाई कुर्सी की है। यहां हम बात करेंगे देश के सबसे बड़े सूबों में से एक उत्तर प्रदेश की। उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव 2027 में होने हैं। लेकिन सियासी गुणा गणित में अब सभी दल शिद्दत से जुट गए हैं। अपने आपको देश की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली बीजेपी ने अपने सांगठनिक चुनाव के मद्देनजर 78 जिलाध्यक्षों के नाम का ऐलान कर दिया है। दरअसल बीजेपी के संविधान के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए पचास फीसद जिलाध्यक्षों का चयन जरूरी है। यहां हम बात करेंगे कि इन जिलाध्यक्षों के जरिए बीजेपी ने किस तरह सामाजिक समीकरण को साधा है और समाजवादी पार्टी के पीडीए की काट निकालने की कोशिश की है।
सवर्ण समाज पर जोर
बीजेपी ने अपनी पहली सूची में सवर्ण समाज को अधिक तवज्जो दी है। इस कवायद को पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 से जोड़कर देखा जा रहा है। बीजेपी को आमतौर पर सवर्ण समाज की पार्टी माना जाता रहा है। लेकिन बदलते समय के साथ पार्टी ने अपने सामाजिक आधार में विस्तार किया और समाज के दूसरे धड़ों पर ध्यान शुरू किया। चूंकि सियासत का मौसम एक जैसा नहीं रहता। मौसम की तरह सियासी वातावरण में कभी गर्मी तो कभी ठंडी देखी जाती है। यूपी में 2017 के बाद से समाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर है, हालांकि 2024 के आम चुनाव में 37 सांसदों के साथ अपनी ताकत को दिखाया।
बीजेपी ने अपनी पहली सूची में सवर्ण समाज को अधिक तवज्जो दी है। इस कवायद को पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 से जोड़कर देखा जा रहा है। बीजेपी को आमतौर पर सवर्ण समाज की पार्टी माना जाता रहा है। लेकिन बदलते समय के साथ पार्टी ने अपने सामाजिक आधार में विस्तार किया और समाज के दूसरे धड़ों पर ध्यान शुरू किया। चूंकि सियासत का मौसम एक जैसा नहीं रहता। मौसम की तरह सियासी वातावरण में कभी गर्मी तो कभी ठंडी देखी जाती है। यूपी में 2017 के बाद से समाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर है, हालांकि 2024 के आम चुनाव में 37 सांसदों के साथ अपनी ताकत को दिखाया।
- 2023 में बीजेपी में 98 में से चार महिला और चार एससी वर्ग से जिलाध्य
- 2024 में पहली सूची में पांच महिला
- 6 एससी समाज से जिलाध्यक्ष बने हैं
- 70 में से 44 नए चेहरों को जिलाध्यक्ष बनने का मौका
- 26 को एक बार फिर मिली जिम्मेदारी
- अगर सवर्ण समाज की बात करें तो 20 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 4 वैश्य, 3 कायस्थ, 2 भूमिहार शामिल हैं।
- ओबीसी समाज से 25 जिलाध्यक्षों को नियुक्ति की गई है। इनमें यादव, बढ़ई, कुशवाहा, पाल, राजभर सैनी समाज से एक एक।
- कुर्मी 5, मौर्य 2, 4 पिछड़ा वैश्य और 2 लोध समाज से हैं।
- अनुसूचित वर्ग से कुल 6 जिलाध्यक्ष
- पासी समाज से 3 जिलाध्यक्ष
- धोबी, कठेरिया और कोरी समाज से एक एक जिलाध्यक्ष
अखिलेश यादव का पीडीए
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बात को कहते रहे हैं कि बीजेपी अब अगड़े समाज के साथ अनदेखी कर रही है, हकीकत में अगड़े समाज का हित उनके साथ सुरक्षित है। उन्होंने एक खास टर्म पीडीए का इस्तेमाल किया। पीडीए में पिछड़ा और दलित तो फिक्स टर्म हैं हालांकि ए का मतलब अगड़ा या अल्पसंख्यक इसे लेकर बदलाव होता रहता है। कहने का अर्थ यह कि जरूरत के मुताबिक इस अक्षर का इस्तेमाल होता है। अगर बीजेपी के संबंध में इस अक्षर को देखें तो जानकार भी कहते हैं उसका मतलब अगड़ा है।
यूपी की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि पार्टी और उससे जुड़े संगठनों को लगता रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी अपने कोर वोटर्स पर ध्यान नहीं दे रही है और उसका फायदा प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल यानी समाजवादी पार्टी उठा रही है। अगर हमने इस दिशा में कोशिश नहीं की तो यह संभव है आने वाले समय में सवर्ण समाज हमसे छिटक जाए। यदि इस तरह की कोई तस्वीर बनती है तो 2027 विधानसभा, 2029 आम चुनाव में खामियाजा उठाना पड़ सकता है।
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