
राजभर समाज की ओर लौटते अखिलेश,क्या यह कोई नया गणित है या इतिहास से सबक
सपा प्रमुख अखिलेश यादव को लगता है कि पिछड़ा समाज के आधार को और बड़ा करने की जरूरत है। ऐसे में उनकी नजर राजभर समाज पर है जिसकी आबादी पूरे प्रदेश में करीब 3 से 4 फीसद है।
Akhilesh Yadav Rajbhar Community Politics: सियासत में वही कामयाब है जो जनता की नब्ज को समझ सके। अगर जनता को टटोलने, समझने में चूक हुई तो समझिए कि सत्ता की रेस से बाहर। देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी में साल 2012 में समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई। सबकी निगाह मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) पर टिकी थी कि लखनऊ की गद्दी पर बैठने का वो किसे मौका देते हैं। विकल्पों में बेटा, भाई, दोस्त और कर्मठ कार्यकर्ता थे। लेकिन मुलायम सिंह ने भाई, दोस्त और कर्मठ कार्यकर्ता की जगह मौका बेटे को दिया। इस तरह से पार्टी में कद्दावरों को पीछे छोड़ अखिलेश यादव सूबे के सीएम बने। पूरे पांच साल तक सरकार चलाई। लेकिन 2017 में सत्ता से ऐसे बाहर हुए कि अब इंतजार 2027 का है जब यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 में होगा। दो साल पहले से ही वो दावा भी कर रहे हैं कि 2027 में पीडीए की आंधी चलेगी और बीजेपी (BJP) का कमल कहीं नजर नहीं आएगा। लेकिन क्या उनकी राह इतनी आसान है जब पीडीए (PDA) यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक समाज के एक धड़े से आने वाले ओम प्रकाश राजभर उनके साथ नहीं हैं।
सवाल यह है कि ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने अखिलेश यादव का साथ क्यों छोड़ा। इस संबंध में मऊ जनपद के स्थानीय पत्रकार दिव्येंदू वत्स द फेजरल देश से कहते हैं कि अलगाव की वजह विचार नहीं स्वार्थ था। सीटों के मुद्दे पर 2022 के चुनाव दोनों दलों के बीच तनातनी कायम रही। ये बात अलग है कि दोनों के बीच समझौता भी हुआ। लेकिन जमीन पर वो ताकत नहीं दिखी। ओम प्रकाश राजभर कहा भी करते थे कि एसी में बैठकर राजनीति नहीं होती। अगर दलों के बीच समझौता हुआ है तो वो जमीन पर नजर भी आना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अखिलेश यादव को पता होना चाहिए कि उनके पिता और चाचा मौसम और बाधाओं की परवाह किए बगैर पार्टी खड़ी की थी।
दिव्येंदु वत्स से अगला सवाल ये था कि इस समय महाराजा सुहेलदेव (Maharaja Suheldev)) के संदर्भ में अखिलेश यादव क्यों बात कर रहे हैं। दिव्येंदु बताते हैं कि 2024 के आम चुनाव के नतीजों के बाद अखिलेश यादव के हौसले बुलंद हैं, उन्हें यकीन हो चला है कि पिछड़ा समाज के आधार को बढ़ाने और मजबूत करने की जरूरत है, ऐसे में राजभर समाज पर उनकी नजर टिकी है।
ऐसे में सवाल यह है कि सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर से तनातनी क्यों बढ़ रही है। इसे समझने से पहले सुभासपा की ताकत और फैलाव को समझने की जरूरत है।
सुभासपा की ताकत
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी सुभासपा की अगुवाई ओम प्रकाश राजभर करते हैं। इस समय ये योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं।
राजभर जाति के वोट बैंक की करें, तो पूर्वांचल में करीब-करीब हर सीट पर अपना प्रभाव रखता है.
यूपी के पूर्वांचल में पिछड़ों की इस पार्टी का क़रीब 40 विधानसभा सीटों पर दबदबा रहा है.
पूर्वांचल की मऊ, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, देवरिया, आजमगढ़, अंबेडकरनगर, गोरखपुर, कुशीनगर, सोनभद्र, मिर्जापुर सहित कई जिलों पर राजभर जाति के वोट बैंक का अच्छा पर्सेंटेज है.
वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, आजमगढ़, देवरिया, बलिया, मऊ आदि जिलों की सीटों पर 18-20 फीसद वोट राजभर का ही माना जाता है।
अवध के बहराइच-श्रावस्ती तक राजभर वोट सियासी बिसात पर बड़ी लकीर खींचने की ताकत रखते हैं.
15 जिलों की 60 सीटों पर समुदाय का अच्छा खासा असर है
राजभर यूपी की उन 17 अति पिछड़ी जातियों में से एक हैं, जो लंबे अरसे से अनुसूचित जाति का दर्जा मांगते आ रहे हैं.
नवभारत टाइम्स के अनुसार राजभर समाज की जनसंख्या यूपी की कुल जनसंख्या का लगभग 3 प्रतिशत है.
दैनिक जागरण के अनुसार उत्तर प्रदेश में राजभर जाति की जनसंख्या लगभग 4% है.
सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में राजभर समुदाय लगभग 3 प्रतिशत है.
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में राजभर समुदाय की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत है.
1992 में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ था।
पार्टी ने पहला लोकसभा चुनाव साल 1996 में लड़ा। मत प्रतिशत करीब 20 फीसद था।
1996 से साल 2012 तक समाजवादी पार्टी का मत प्रतिशत 20 से 26 फीसद के बीच रहा।
2002 विधानसभा चुनाव में करीब 25 फीसद
2004 लोकसभा चुनाव में सपा को करीब 26 फीसद मत
2007 विधानसभा चुनाव में करीब 25 फीसद मिले
2009 लोकसभा चुनाव में करीब 23 फीसद मत मिले।
2012 में पहली बार समाजवादी पार्टी को करीब 29 फीसद मत और 224 सीट पर जीत मिली।
2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को महज 21 फीसद मत मिले।
2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी को 32 फीसद मत मिले।
इन आंकड़ों पर आजमगढ़ जनपद के तीनों जिले आजमगढ़, मऊ और बलिया पर नजर रखने वाले संजय मिश्रा द फेडरल देश से कहते हैं कि अखिलेश यादव को लग रहा है कि अगर वो राजभर समाज में सेंधमारी में कामयाब हुए तो वो पूर्वांचल की उन सीटों को आसानी से जीत जाएंगे जहां पर ओम प्रकाश राजभर अपने दबदबे का दावा करते हैं। लेकिन बात इतनी सीधी भी नहीं है।
इस समय राजभर समाज में पैंठ बनाने में बीजेपी भी जुटी है। अनिल राजभर जैसे नेताओं को भगवा दल लगातार उभार रहा है. लिहाजा ओम प्रकाश राजभर कभी कभी बीजेपी के खिलाफ भी तल्ख बयान देते हैं। वैसे भी अगर आप पूर्वांचल की राजनीति को देखें तो घाघरा इस पार और उस पार यानी कि आजमगढ़ और वाराणसी रीजन में सपा वैसे भी मजबूत रही है। चाहे ओम प्रकाश राजभर ने साइकिल (सपा का चुनाव प्रतीक) की सवारी की हो या नहीं। लेकिन सियासत सिर्फ आंकड़ों का खेल होता तो यूपी में अलिखित तौर पिछड़े समाज की आबादी 50 फीसद के करीब है ऐसे में अखिलेश यादव की हार ना तो 2017 या 2022 में होनी चाहिए थी। इससे आप समझ सकते हैं कि मामला कुछ और है। दरअसल चुनाव जीतने की कला होती है और उसका सबसे मुख्य अंग समावेशी राजनीति का होता है। ऐसे में अखिलेश यादव को लगता है कि पिछड़ा समाज के आधार को बढ़ाने की जरूरत है और उनकी इस कवायद में राजभर समाज तक पहुंच बनाने में बाधा कम है।