
UP: अफसर और जनप्रतिनिधि आमने-सामने, क्या लगेगा ‘तबादला उद्योग’ पर ब्रेक ?
उत्तर प्रदेश में तबादलों को लेकर घमासान मचा हुआ है। मुख्यमंत्री ने स्टाम्प और पंजीयन विभाग के सभी तबादले निरस्त किए। वहीं, डिप्टी सीएम ने ट्रांसफर सेशन शून्य घोषित किया। तबादलों में भ्रष्टाचार को बीजेपी ने 2017 के चुनाव में मुद्दा बनाया था।
उत्तर प्रदेश में विभागों में होने वाले ट्रांसफर में भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। योगी सरकार के सात साल बीतने के बाद इस बार न सिर्फ़ तबादलों में भ्रष्टाचार के आरोप खुलकर लगे बल्कि कई विभागों के मंत्रियों और अधिकारियों में टकराव भी सामने गया। कई विभागों में तबादले नहीं हो पाए तो मुख्यमंत्री ने स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन विभाग के तबादले निरस्त कर दिए।
उत्तर प्रदेश में विभागों में होने वाले ट्रांसफर सुर्खियों में हैं। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की बात करने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर सबकी नज़र है। ख़ासतौर पर इसलिए क्योंकि उन्होंने ख़ुद स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन विभाग के मंत्री रवीन्द्र जायसवाल की शिकायत के बाद सभी ट्रांसफर निरस्त करने का आदेश दिया। तबादलों को लेकर जहाँ नौकरशाही और जन प्रतिनिधियों के बीच टकराव खुल कर सामने आ गया है वहीं तबादले के लिए होने वाला पैसे का खेल भी सुर्खियों में है। मंत्री रवीन्द्र जायसवाल की मुख्यमंत्री को लिखी शिकायती चिट्ठी चर्चा में है तो प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की अपने प्रमुख सचिव के ख़िलाफ़ की गयी शिकायत की चर्चा भी हो रही है।
यूँ तो ट्रांसफ़र के खेल में अब तक दो आईएएस अधिकारी आईजी स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन समीर वर्मा और चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग में निदेशक(प्रशासन) भवानी सिंह खंगरौत को हटाकर ‘पवेलियन’ भेजा गया है पर कहा जा रहा है कि अगर सचमुच मामले पर कड़ा कदम उठाया गया तो कई और भी इस दायरे में आ सकते हैं। जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनाने की तैयारी है। लेकिन इस बीच विपक्ष हमलावर हो गया है।अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट करते हुए मंत्रियों-पर भी सवाल उठा दिया है- सपा अध्यक्ष ने लिखा है ‘भ्रष्टाचार में नहीं मिला जिनको हिस्सा, वही राज़ खोल कर बता रहे क़िस्सा’ तो वहीं बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने इसकी एसआईटी से जाँच कराने की माँग कर दी है।
बीजेपी ने उठाया था मुद्दा
दरअसल देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में नौकरशाही की तैनाती से लेकर तबादले और नौकरशाही की कार्यशैली ना सिर्फ़ हमेशा चर्चा का विषय रही है बल्कि कई बार इससे सियासी हलचल भी होती रही है। पूर्ववर्ती सपा-बसपा सरकारों में भी तबादलों में भ्रष्टाचार या ‘तबादला उद्योग’ की चर्चा होती रही है। यहाँ तक कि 2017 के विधानसभा चुनाव यूपी में सत्ता में वापसी के लिए बेकरार बीजेपी ने पूर्ववर्ती सरकारों पर तबादलों को लेकर निशाना साधा था। बीजेपी ने आईएएस, पीसीएस, आईपीएस,पीपीएस, चिकित्सा सेवा, शिक्षा विभाग और अन्य अधिकारियों के तबादलों में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते हुए पारदर्शिता का वायदा किया था। उस दौरान कई बार बीजेपी ने इसे ‘तबादला उद्योग’ कहकर भ्रष्टाचार पर वार किया था।
ये भी सच्चाई है कि बीजेपी सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो नौकरशाही की कार्यशैली पर सवाल तो कई बार उठे, जनप्रतिनिधियों से सामंजस्य न होने को बात भी अलग-अलग समय सुर्खियों में रही लेकिन विपक्ष योगी सरकार में ‘ तबादला उद्योग’ चलने का आरोप नहीं लगा पाया। ये ज़रूर है कि पिछड़े और दलित वर्ग के अधिकारियों को प्राइम पोस्टिंग नहीं देने का आरोप ख़ासतौर पर समाजवादी पार्टी लगाती रही। लेकिन 2025 का तबादला सत्र समाप्त होने के दो दिन पहले ही तबादलों में भ्रष्टाचार के खेल और तबादला उद्योग पनपने का आरोप खुल कर सामने आ गया। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अमीक जामेई कहते हैं कि ‘ मुख्यमंत्री प्रशासनिक चीज़ों को समझते तो ऐसा नहीं होता। मुख्यमंत्री की प्रशासनिक अक्षमता न होती तो वो ब्यूरोक्रेसी की ‘गिरोह बंदी’ में भी प्रशासन को लीड कर सकते थे। आख़िर किसके आदेशों पर नौकरशाहों का मन बढ़ा हुआ है ? मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी जो अफ़सर दिल्ली जा रहे अपनी मीटिंग्स के बारे में नहीं बता रहे। जिन लोगों को मुख्यमंत्री ने हटाया वो अभी भी उसी दफ़्तर में बैठे हुए हैं। साफ़ है कि मुख्यमंत्री ने प्रशासन पर कंट्रोल खो दिया है जिसका नतीजा है कि यूपी भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है।’
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी कहते हैं ‘ मंत्रियों की ये शिकायतें भ्रष्टाचार के पैसे के बंदरबांट में हिस्सा न मिलने की वजह से हुई हैं। क्या वजह है कि ट्रांसफर होने के बाद ही उन्होंने शिकायतें की ? क्योंकि उनके लोगों को उसमें जगह नहीं मिली। मंत्रियों के लोगों का समायोजन जब हो जाएगा तो शिकायतें भी नहीं होंगी। दुख तो इस बात का है कि भ्रष्टाचार पर कोई लगाम नहीं लगेगी। हर दफ्तर में ऊपर से नीचे तक हर काम के लिए पैसा देना पड़ रहा है।’
मंत्रियों ने ख़ुद उठाए गंभीर सवाल
सबसे पहले प्रदेश डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने अपने विभाग के तबादलों में जन प्रतिनिधियों की संस्तुतियों को नजर अंदाज किये जाने से नाराज होकर विभाग में तबादला सत्र शून्य कर दिया।उन्होंने तबादलों के लिए अपने विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा की पत्रावली को देखकर ट्रांसफर सेशन शून्य करने की मुख्यमंत्री से संस्तुति कर दी। लिपिकों,नर्सिंग स्टाफ और संस्थान के निदेशकों, प्रिंसिपल के प्रस्तावित तबादलों को भी उन्होंने शून्य कर दिया। इसी बीच स्टाम्प एवं पंजीयन विभाग में एआईजी, सब रजिस्ट्रार, लिपिकों के बड़ी संख्या में तबादले का निर्देश जारी हुआ। विभाग के मंत्री रवींद्र जायसवाल ने कड़ी चिट्ठी मुख्यमंत्री को लिख डाली। उन्होंने ख़ुद भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए तबादले निरस्त करने का संस्तुति कर दी। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद सभी तबादले निरस्त हो गए। मंत्री ने एसटीएफ से जांच कराने की संस्तुति कर दी। हड़कंप मचने के बाद स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन के आईजी आईएएस समीर वर्मा और स्वास्थ्य विभाग के निदेशक(प्रशासन) भवानी सिंह खंगारौत को उनके पदों से हटाकर वेटिंग कर दिया गया। इस बीच बेसिक शिक्षा विभाग के तबादलों में व्यापक भ्रष्टाचार की शिकायतें होना शुरू हो गई। उसके बाद तो मानो एक के बाद एक विभागों में तबादलों में सेटिंग और भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हो गए। महिला और बाल कल्याण विभाग, वित्त विभाग, आयुष विभाग, आबकारी विभाग में भ्रष्टाचार की शिकायतें हुईं और तबादलों में भ्रष्टाचार के सवाल उठे।
जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के टकराव से खुला मामला
दरअसल तबादले को लेकर मंत्रियों के अपने ही विभाग के अधिकारियों के ख़िलाफ़ खुलकर आ जाने से मामले ने तूल पकड़ा। कहा ये जा रहा है कि सामने पंचायत चुनाव है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों की संस्तुतियों की अनदेखी का भाजपा को भारी नुकसान होने की आशंका हो गई। इस बीच हमेशा ताकतवर रहने वाली यूपी की नौकरशाही ने अपने ही अंदाज़ में तबादले कर दिए। इससे तबादला सेशन तो शून्य हुआ ही भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जीरो टॉलरेंस भी सवालों के घेरे में आ गया।