खोजना था चोर लेकिन जज के पीछे पड़ी यूपी पुलिस, गजब का कारनामा
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फिरोजाबाद पुलिस का एक सब इंस्पेक्टर आरोपी की जगह जज को खोजने लगा।

खोजना था चोर लेकिन जज के पीछे पड़ी यूपी पुलिस, गजब का कारनामा

यूपी पुलिस वैसे तो खुद को पेशेवर पुलिस कहती है। लेकिन मुंह से ठांय ठांय वाली बात सुनी होगी। अब एक मामले में जहां उसे चोर को पकड़ना था वहां वो जज को खोजने में जुट गई


उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एक ऐसा हास्यास्पद लेकिन गंभीर मामला सामने आया है, जिसने न्याय व्यवस्था और पुलिस प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक पुलिस उपनिरीक्षक ने चोरी के आरोपी के बजाय मामले की सुनवाई कर रही जज का नाम फरारी नोटिस (Proclamation Order) में लिख दिया और उसके बाद बाकायदा उन्हें तलाशने निकल पड़ा।

यह घटना पिछले महीने की है, जब फिरोजाबाद में तैनात उपनिरीक्षक बनवारीलाल को चोरी के आरोपी राजकुमार को अदालत का नोटिस थमाने की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन उन्होंने चौंकाने वाली गलती करते हुए नोटिस में आरोपी के नाम की जगह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नगमा खान का नाम ही लिख दिया और उनके घर पहुंचकर 'गंभीरता से तलाशी' लेने की रिपोर्ट सौंप दी।

न्यायिक अधिकारी को बताया 'फरार आरोपी'

उपनिरीक्षक बनवारीलाल ने अदालत को दी गई रिपोर्ट में लिखा:

“जब मैंने संलग्न गैर-जमानती वारंट (NBW) की तामीली की, तब नगमा खान के पते पर गंभीर खोजबीन की गई। लेकिन उस पते पर ऐसा कोई आरोपी नहीं पाया गया। अतः आपसे अनुरोध है कि आगे की कार्रवाई की जाए।”

यह सुनकर खुद मजिस्ट्रेट नगमा खान हैरान रह गईं। 24 मार्च को पारित अपने आदेश में उन्होंने इस घटना को “अत्यंत विचित्र” बताया। उन्होंने कहा कि बनवारीलाल को यह तक नहीं मालूम था कि अदालत ने क्या आदेश भेजा है, किसके खिलाफ भेजा है और किसने भेजा है।

“आदेश को पढ़ा तक नहीं”: मजिस्ट्रेट की सख्त टिप्पणी

मजिस्ट्रेट खान ने अपने आदेश में कहा, “बिना किसी ध्यान के, उन्होंने फरारी आदेश को गैर-जमानती वारंट बताया और फिर आंख मूंदकर पीठासीन अधिकारी (यानी स्वयं मजिस्ट्रेट) का नाम ही उसमें लिख दिया।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि बनवारीलाल को यह तक बुनियादी जानकारी नहीं थी कि आदेश में क्या लिखा गया है।

उन्होंने टिप्पणी की कि "ऐसी स्पष्ट और गंभीर भूल यह दर्शाती है कि वह अपनी पुलिस जिम्मेदारियों के प्रति कितने लापरवाह हैं। उन्होंने आदेश को ठीक से पढ़ने तक की कोशिश नहीं की।"

“मौलिक अधिकारों को कुचल सकते हैं ऐसे अधिकारी”

मजिस्ट्रेट ने चेताया कि अगर ऐसे लापरवाह अधिकारी बिना दंड के छूट गए, तो वे “किसी की भी स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को अपने मनमाने तरीकों से कुचल सकते हैं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि बनवारीलाल ने अदालत की प्रक्रिया को समझने या पालन करने में “शून्य प्रयास” किया।

वरिष्ठ अधिकारियों को कार्रवाई के आदेश

मजिस्ट्रेट नगमा खान ने उत्तर प्रदेश पुलिस के प्रमुख समेत सभी वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया है कि बनवारीलाल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए “ताकि भविष्य में इस प्रकार की अनुचित घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।”

यह घटना जहां एक ओर प्रशासनिक लापरवाही की पराकाष्ठा को उजागर करती है, वहीं यह भी बताती है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारी अगर सतर्क न हों तो कानून और व्यवस्था का मजाक बन सकता है — और सबसे खतरनाक बात, आम नागरिकों के मौलिक अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं।

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