69 हजार शिक्षक भर्ती पर बवाल, क्या यूपी में हुआ है आरक्षण स्कैम?
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69 हजार शिक्षक भर्ती पर बवाल, क्या यूपी में हुआ है आरक्षण स्कैम?

2019 में 69 हजार प्राइमरी स्कूल टीचर भर्ती पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोबारा से मेरिट लिस्ट तैयार करने का निर्देश दिया है। इस फैसले के बाद अब नजर यूपी सरकार के अगले कदम पर है।


UP Primary School Teacher Recruitment: यूपी में 69 हजार प्राइमरी स्कूल टीचर भर्ती एक बार फिर चर्चा में है। इस भर्ती प्रक्रिया में इतने पेंच हैं जिसे समझना आसान नहीं। लेकिन पहले आप यह जानिए की ताजा मामला क्या है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2019 में 69 हजार भर्तियों को रद्द करते हुए दोबारा से मेरिट लिस्ट तैयार करने का आदेश दिया है। इसके लिए सरकार को तीन महीने का वक्त मिला है और इसके साथ ही छात्रों के भविष्य पर असर ना पड़े उसके लिए इस सत्र तक उन शिक्षकों को मौका दिया है जो पढ़ा रहे है। अदालत के निर्णय के बाद यूपी सरकार और आला अधिकारी इस पर गहन मंथन कर रहे हैं कि अब आगे का रास्ता क्या हो सकता है। क्या योगी सरकार इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी या इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को मानेगी यह तो देखने वाली बात होगी। लेकिन यहां पर हम इस विषय को विस्तार से बताएंगे।

योगी सरकार के लिए झटका भरा फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को विपक्षी दल और आरक्षण समर्थक अपनी जीत बता रहे हैं। सपा के नेताओं के मुताबिक आरक्षण घोटाले की जो बात कही जाती थी उस पर अदालत ने मुहर लगा दी है। अब आप को आसान तरह से बताएंगे कि विपक्ष इसे आरक्षण घोटाला क्यों कह रहा है। दरअसल किसी भी परीक्षा में ओबीसी, एससी, एसटी, दिव्यांगजन को आरक्षण देने की व्यवस्था है। सीटों की संख्या को ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग को दिए जाने वाले आरक्षण के तहत बांटा गया है।

क्या हुआ है आरक्षण स्कैम
सामान्य तरह से इसे ऐसे समझें, मान लीजिए 100 सीटों पर भर्ती होनी है, नियम के तहत 27 सीट ओबीसी, 15 सीट एससी 7.5 सीट एसटी के लिए आरक्षित होगी। शेष बची सीटें अनारक्षित होंगी। मान लीजिए जब मेरिट बनी तो अनारक्षित वर्ग के लिए कटऑफ 70 नंबर, ओबीसी के लिए 65 नंबर, एससी के लिए 60 और एसटी के लिए 55 नंबर रखा गया। अब यह मान लीजिए कि अगर ओबीसी के दो कैंडिडेट 72 नंबर पाने में कामयाब होते हैं तो उनका सलेक्शन जनरल कैटिगरी में हुआ। इस तरह से ओबीसी की दो सीट खाली हो गई। यहीं पर सारा मामला उलझा। भर्ती प्रक्रिया में सरकार ने उन दोनों ओबीसी कैंडिडेट को ओबीसी ही माना जो जनरल कैटिगरी के कटऑफ थे। आरक्षण के समर्थकों का कहना है कि सरकार को उन कैंडिडेट्स को जनरल मानना चाहिए था। लेकिन उनके आरक्षण पर हकमारी हुई है। अब आप सोच रहे होंगे की हकमारी कैसे।

दरअसल ओबीसी कोटे वाले वे दो कैंडिडेट अगर जनरल माने जाते तो ओबीसी की दो सीट खाली होती और उस पर दो और उम्मीदवारों की भर्ती हो जाती। इस विषय को लेकर आरक्षण समर्थकों ने इलाहाबाद हाईकोक्ट में अर्जी लगाई थी। पहला फैसला इनके खिलाफ आया था। हाइकोर्ट की सिंगल बेंच ने यूपी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। लेकिन हाईकोर्ट की डबल बेंच ने माना कि भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण की तय व्यवस्था को अमल में नहीं लाया गया।

विवाद कहां से शुरू हुआ

विवाद की कहानी अखिलेश यादव के कार्यकाल से शुरू होती है। अखिलेश सरकार ने एक लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को प्राइमरी स्कूल के शिक्षक के तौर पर समायोजित किया गया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक यह मामला पहुंचा और वहां से केस खारिज हो गया। यानी कि शिक्षक मित्र अब स्थायी शिक्षक नहीं रह गए। इस बीच अखिलेश यादव की जगह योगी आदित्यनाथ की सरकार सत्ता में आई। सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को निर्देश दिया कि वो कि एक लाख 37 हजार पदों पर शिक्षकों की बहाली करे। हालांकि यूपाी सरकार ने कहा कि वो इतने पदों पर भर्ती नहीं कर सकती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कड़े तेवर को देखते हुए सरकार ने दो चरणों में भर्ती का फैसला किया।

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