उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में बगावत के सुर!  BJP क्यों नहीं लेगी रिस्क?
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उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में बगावत के सुर! BJP क्यों नहीं लेगी रिस्क?

बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में टूट की चर्चा ज़ोरों पर है, लेकिन NDA मजबूरियों और नीतीश फैक्टर के चलते BJP रिस्क नहीं लेगी। अटकलें फिलहाल ज़मीन से दूर हैं।


Upendra Kushwaha News: सियासत में कभी भी कुछ भी संभव है। जैसे समय के साथ मौसम का मिजाज बदलता रहता है, ठीक वैसे ही राजनीति की दुनिया में परिभाषाएं बदलती रहती है। यहां हम बात करेंगे बिहार के उस नेता और पार्टी के बारे में जो कई वजहों से चर्चा में है। उपेंद्र कुशवाहा, राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के अध्यक्ष के बारे में। आप सोच रहे होंगे कि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी तो नीतीश (Nitish Kumar) सरकार में साझेदार है, वो खुद राज्यसभा के सांसद हैं ऐसे में उनकी बात क्यों हो रही। दरअसल कुशवाहा, राज्यसभा के सांसद तो हैं लेकिन उनका कार्यकाल 2026 में खत्म होने जा रहा है। दूसरी बड़ी वजह यह कि बिहार विधानसभा में उनके चार विधायक हैं जिनमें उनकी पत्नी हैं। बेटा दीपक प्रकाश (Deepak Prakash) किसी भी सदन का सदस्य ना होते हुए भी सरकार में मंत्री है।

ऐसे में आप के दिल और दिमाग में एक सवाल कौंध सकता है कि यह तो संवैधानिक व्यवस्था है कि कोई भी शख्स यहां बता दें कि (मंत्री बने हुए शख्स को 6 महीने के भीतर विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य बनना होता है।) सदन का सदस्य ना होते हुए भी मंत्री बन सकता है। अब सवाल यह है कि इस तरह की बात क्यों हो रही है कि कुशवाहा की पार्टी में टूट हो सकती क्योंकि उनके तीन विधायकों का रुख कुछ अलग रहता है। मसलन, बिहार में नीतीश सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही तीनों विधायकों ने अलग से बैठक की थी। हाल ही में जब उपेंद्र कुशवाहा ने लिट्टी पार्टी की तो वे तीनों विधायक नहीं शामिल हुए। ऐसे में कयास लगने लगे कि ये विधायक पाला बदल सकते हैं और ये पाला बदलते हैं तो ना सिर्फ बेटे की कुर्सी जाएगी बल्कि उपेंद्र कुशवाहा के लिए राज्यसभा (Upendra Kushwaha Rajyasabha Term) का एक और टर्म नहीं मिल पाएगी। ऐसे में द फेडरल देश ने बिहार के सियासी हलचल पर करीब से नजर रखने वाले अशोक मिश्रा से बात की।

अशोक मिश्रा कहते हैं कि सियासत की तो यही खूबसूरती है कि अटकलों का बाजार गर्म रहता है। सियासी विश्लेषकों का यही काम है कि वो जमीन पर हो रहे बदलाव या हलचल की अपने अंदाज में व्याख्या करें। ऐसे में अगर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में उनके असंतुष्ट विधायकों के बारे में बात हो रही है तो कुछ गलत भी नहीं है। अशोक मिश्रा कहते हैं कि देखिए अभी केंद्र में बीजेपी(BJP) की मौजूदा स्थिति है उसमें बीजेपी रिस्क नहीं लेना चाहेगी। असंतुष्ट विधायक जो कुशवाहा की लिट्टी पार्टी में नहीं गए उनकी अपनी समस्या भी है। दरअसल नीतीश सरकार में जिस तरह से कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश को जगह मिली उससे शेष तीन विधायक नाराज थे। अगर देखा जाए तो गलत भी नहीं। उपेंद्र कुशवाहा के बारे में सामान्य धारणा भी है उन्हें पैसे की भूख है और अपने समाज के बल उन लोगों की राजनीतिक महत्कांक्षा को पूरा करने में कामयाब हो जाते हैं जो धनाड्य हैं। लेकिन कुशवाहा के पीछे कौन खड़ा है उसे समझना चाहिए।

अशोक मिश्रा कहते हैं कि आप साल 2000 को याद करिए जब बिहार में आरजेडी का शासन था और उस वक्त नेता प्रतिपक्ष उपेंद्र कुशवाहा को बनाया गया और उस फैसले के पीछे कोई और नहीं बल्कि नीतीश कुमार थे। दरअसल नीतीश कुमार (Nitish Kumar Bihar CM) को यह समझ में तभी आ गया था कि गैर यादव पिछड़ी जातियों में अगर लव-कुश एक साथ आए तो वो बिहार की राजनीतिक में हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे और आप देख भी सकते हैं कि 2005 से 2025 के कालखंड में नीतीश कुमार दुल्हा बने रहे भले ही सहबाला बदल गया हो। कहने का अर्थ यह है कि उपेंद्र कुशवाहा किसी और के नहीं बल्कि नीतीश के निर्माण थे। ऐसे में बीजेपी अभी मौजूदा हालात में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में किसी तरह से तोड़फोड़ का रिस्क नहीं लेगी क्योंकि उसे पता है कि केंद्र में बैसाखी की जरूरत है। दूसरी बात यह कि बीजेपी के खाते में जो भी 89 सीट आई है उसमें नीतीश कुमार का योगदान है।

अशोक मिश्रा यह भी कहते हैं कि अगर केंद्र में बीजेपी की अपने बलबूते सरकार होती तो कुछ संभावनाओं के बारे में सोच सकते थे। वैसी सूरत में बीजेपी के नेता ही किसी अन्य जगह से नीतीश कुमार के स्वास्थ्य के बारे में पीआईएल दर्ज कराते और खेल कर देते। अगर एक पल के लिए आप सोचें कि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में किसी तरह की तोड़फोड़ होती है तो उससे चिराग पासवान (Chirag Paswan) नाराज हो जाएंगे। बिहार में बीजेपी के पास भले ही 89 विधायक हैं लेकिन इस सच्चाई को कैसे झुठलाया जा सकता है कि मैजिक नंबर 122 से वो पीछे हैं। इसके साथ ही साथ आरजेडी, एआईएमआईएम के नेता तो खुलेआम ऑफर गैर बीजेपी दलों को दे रहे हैं। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में तोड़फोड़, उनका राज्यसभा सदस्य बने रहने के सपने पर जिस तरह से अटकलें लग रही हैं वो निराधार है।

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