ट्रंप का वीजा शिकंजा, भारतीय प्रवासियों की मदद को आए विभिन्न संगठन
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ट्रंप का वीजा शिकंजा, भारतीय प्रवासियों की मदद को आए विभिन्न संगठन

H-1B Visa: अमेरिका में कन्नड़ लोगों की मदद करने वाले संगठनों में एकेकेए, उत्तरी अमेरिका विश्व कन्नड़ एसोसिएशन, नृपथुंगा कन्नड़ कूटा, कन्नड़ वृंदा और मल्लिगे कन्नड़ कूटा शामिल हैं.


Donald Trump executive order: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा साइन किए गए मुख्य एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के बाद यूएस में रह रहे अप्रवासियों में घबराहट फैल गई है. ऐसे में वहां विभिन्न भारतीय संघ अपने सदस्यों से संपर्क कर रहे हैं और उन्हें सहायता प्रदान कर रहे हैं. अमेरिका में अवैध रूप से रहने के कारण लगभग 18 हजार भारतीयों को निर्वासित किया जाना है और भारत सरकार तथा विभिन्न संगठन इस प्रक्रिया में उनकी सहायता करने के लिए तैयार हैं.

द फेडरल ने जानकारी दी कि कई कन्नड़ संघ पहले से ही अमेरिका में परेशान कन्नड़ लोगों से संपर्क कर रहे हैं और उन लोगों को कानूनी सहायता प्रदान कर रहे हैं, जिन्हें लगता है कि उनके पास यहां रहने की मजबूत वजह है. टेक उद्योग में कई कन्नड़ लोगों को वीजा चुनौतियों के कारण नौकरी की असुरक्षा के कारण अपनी योजनाओं पर पुनर्विचार करना पड़ा है.

समर्थन की आवाज

दक्षिण कैरोलिना निवासी राजेश टीजी ने द फेडरल को बताया कि कन्नड़ संगठन एच-1बी वीजा धारकों से जुड़ रहे हैं. जो निर्धारित अवधि से अधिक समय तक रुके हुए हैं और उन्हें कानूनी सहायता प्राप्त करने में मदद कर रहे हैं.हम कर्नाटक के छात्रों को उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए स्थानीय इमिग्रेशन अधिकारियों से जोड़कर उनकी सहायता भी कर रहे हैं.

एसोसिएशन ऑफ कन्नड़ कूटस ऑफ अमेरिका (AKKA) के सदस्य और दक्षिण कैरोलिना के ग्रीन कार्ड धारक राजीव राजाराम ने कहा कि कर्नाटक से आने वाले कई छात्र और एच-1बी वीजा धारक निर्वासन के जोखिम में हैं. उन्होंने कहा कि हम उनका पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं और उनकी मदद के लिए टीमें बना रहे हैं. निर्वासन का सामना कर रहे 18 हजार भारतीयों में सैकड़ों कन्नड़ हैं. अमेरिका में कन्नड़ लोगों की मदद करने वाले संगठनों में AKKA, उत्तरी अमेरिका विश्व कन्नड़ एसोसिएशन, नृपथुंगा कन्नड़ कूटा, कन्नड़ वृंदा, मल्लिगे कन्नड़ कूटा, इंडी मल्लिगे कन्नड़ कूटा, कैरोलिना कन्नड़ बालागा और मियामी नंदी कन्नड़ कूटा शामिल हैं.

चुनौतीपूर्ण समय

डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में वापस आने के बाद वीजा मानदंडों को कड़ा किए जाने से भारत के कुशल कामगारों पर असर पड़ा है. जिसमें कर्नाटक के लोग भी शामिल हैं. ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के कारण वीजा आवेदनों की गहन जांच और वीजा अस्वीकृति में वृद्धि की आशंका पैदा हो गई है. जिससे अमेरिका में रहने वाले भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों के बीच अनिश्चितता पैदा हो गई है. H-1B वीजा अमेरिका में काम करने वाले अत्यधिक कुशल विदेशी नागरिकों के लिए अस्थायी वीजा है. इनमें से 72 प्रतिशत भारतीयों के पास हैं.

कर्नाटक सरकार का कदम

आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि कर्नाटक के मुख्य सचिव विभिन्न चिंताओं को दूर करने के लिए विदेश मंत्रालय के साथ समन्वय कर रहे हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि सरकार इस बात की पुष्टि कर रही है कि वैध वीजा या दस्तावेज के अभाव में अमेरिका में चिह्नित किए गए लोगों में कर्नाटक के कितने निवासी शामिल हैं. अधिकारी ने कहा कि हम अमेरिका भर में कन्नड़ संगठनों के संपर्क में हैं और केंद्र सरकार के साथ समन्वय कर रहे हैं. हम प्रभावित व्यक्तियों को कानूनी और अन्य सहायता प्रदान करने की योजना बना रहे हैं.

पीड़ित कन्नड़ लोग

अनिश्चितता ने कई कन्नड़ लोगों को परेशान कर दिया है. बेंगलुरु के एक तकनीकी कर्मचारी मनोज आर एच-1बी वीजा पर बेहतर भविष्य बनाने की उम्मीद में अमेरिका गए थे. मीडिया रिपोर्टों में उन्होंने कहा कि अचानक नीतिगत बदलावों के कारण मेरे वीजा का नवीनीकरण अस्वीकार कर दिया गया. मैंने यहीं रहने की कोशिश की. लेकिन अब मुझे वापस लौटने के लिए मजबूर किया जा रहा है. मुझे नहीं पता कि मैं भारत में अपना जीवन कैसे फिर से शुरू करूं.

मंगलुरु की एक छात्रा स्नेहा प्रभु भी दुखी हैं. उन्होंने कहा कि मैं मास्टर डिग्री के लिए अमेरिका आई थी. लेकिन मेरे वैकल्पिक प्रशिक्षण अनुमोदन की प्रतीक्षा करते समय मेरा वीजा समाप्त हो गया. मेरे पास नौकरी का प्रस्ताव है. लेकिन अब मुझे निर्वासित किया जा रहा है. मेरे सपने चकनाचूर हो गए हैं. मियामी में रह रहे हबली के एक आईटी सलाहकार विजय एस ने कहा कि मैं समझता हूं कि अमेरिका के अपने कानून हैं. लेकिन अचानक लागू करना कठोर लगता है. हममें से कई लोग मेहनती हैं और अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं. हमारी स्थिति के लिए अधिक मानवीय समाधान क्यों नहीं हो सकता?

किर्लोस्कर कंपनी के पूर्व सीईओ और लंबे समय से अमेरिका में रहने वाले संजीव बेथमंगलकर ने द फेडरल को बताया कि एफ-1 वीजा पर छात्रों को आमतौर पर तब तक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता, जब तक वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर लेते. उन्होंने कहा कि पढ़ाई के बाद एच-1बी वीजा हासिल करने में विफल रहने वालों को अमेरिका छोड़ देना चाहिए. कर्मचारियों के लिए एच-1बी वीजा मांगने वाली कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को काम पर रखने की आवश्यकता को उचित ठहराना चाहिए.

परिवारों का अलग होना

न्यूयॉर्क में ग्रीन कार्ड धारक प्रशांत थंबाजे ने कहा कि अगर एच-1बी वीजा धारक की नौकरी चली जाती है तो उसे 60 दिनों के भीतर दूसरी नौकरी ढूंढनी होगी या देश छोड़ना होगा. उन्होंने उन पर्यटकों के बारे में भी बात की, जो पर्यटक वीजा पर आते हैं. लेकिन वापस नहीं लौटते, जिससे अतिरिक्त समस्याएं पैदा होती हैं. वीजा नवीनीकरण और ग्रीन कार्ड बैकलॉग में देरी के कारण परिवार अलग हो गए हैं. जबकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र एफ-1 और ओपीटी वीजा के बारे में सख्त नियमों से जूझ रहे हैं. इन वजहों से कुछ लोगों के लिए इंटर्नशिप या काम हासिल करना मुश्किल हो गया है.

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