अमेरिकी टैरिफ का झटका! सूरत के हीरा मजदूरों की मुसीबतें और बढ़ीं
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अमेरिकी टैरिफ का झटका! सूरत के हीरा मजदूरों की मुसीबतें और बढ़ीं

16 अगस्त को DWUG ने वराछा क्रॉस रोड पर प्रदर्शन कर उन श्रमिकों के परिवारों के लिए न्याय की मांग की, जिन्होंने आत्महत्या की है।


साल 2017 से मंदी की मार झेल रहे सूरत के हीरा उद्योग को अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ ने गहरी चोट दी है। इससे उद्योग में बेरोजगारी की लहर फैल गई है और हजारों परिवार आर्थिक संकट में डूब गए हैं। हीरा मजदूर संघ गुजरात (DWUG) के अनुसार, अप्रैल 2025 से अब तक एक लाख से अधिक मजदूर अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं।

DWUG अध्यक्ष रमेश जिलरिया ने बताया कि सिर्फ अप्रैल से अब तक सूरत में 16 हीरा कामगार आत्महत्या कर चुके हैं। वहीं, भावनगर, अमरेली और जूनागढ़ में छोटी इकाइयां बंद हो चुकी हैं, जिससे सैकड़ों परिवार भयंकर आर्थिक संकट में आ गए हैं।

लगातार झटकों का सिलसिला

16 अगस्त को DWUG ने वराछा क्रॉस रोड पर प्रदर्शन कर उन श्रमिकों के परिवारों के लिए न्याय की मांग की, जिन्होंने आत्महत्या की है। जिलरिया ने बताया कि हीरा उद्योग की मंदी की शुरुआत 2016 में नोटबंदी से हुई थी. फिर 2017 में जीएसटी ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। उस साल करीब 70,000 मजदूरों की नौकरी चली गई थी। 2020 में कोविड लॉकडाउन के दौरान ₹30,000 करोड़ का नुकसान हुआ।

आत्महत्याओं की भयावह तस्वीर

DWUG सदस्य और हीरा पॉलिशर हरी माराज ने बताया कि मार्च 2020 से अप्रैल 2021 के बीच सूरत में 65, अमरेली में 7 और भावनगर में 2 मजदूरों ने आत्महत्या की। मजदूर कर्ज़ के बोझ में दबे हैं और अधिकांश को आधी तनख्वाह पर ही काम मिल पा रहा है। पहले एक अनुभवी मजदूर को ₹550 से ₹750 तक मिलते थे, अब ₹300 से ₹450 के बीच।

बाजारों का नुकसान और वैश्विक संकट

धीरुभाई सवानी, सचिव, सूरत डायमंड एसोसिएशन ने बताया कि हीरा व्यापार को पहले 2008 की वैश्विक मंदी ने झटका दिया। फिर लॉकडाउन, चीन की मंदी, मध्य पूर्व और रूस-यूक्रेन युद्ध और अब अमेरिका का टैरिफ– इन सबने उद्योग की कमर तोड़ दी है। साल 2008 से पहले सूरत में 15 लाख मजदूर कार्यरत थे, अब सिर्फ 7 लाख बचे हैं।

2021–2025 में 2 लाख से अधिक मजदूर बेरोजगार

DWUG के अनुसार, साल 2021–2022 में 56 आत्महत्याएं, जिनमें से 30 दिवाली से पहले सितंबर-अक्टूबर में हुईं। 2023–2024 में 47 मौतें और 60,000 से अधिक मजदूरों को अपने मूल जिलों (अमरेली, भावनगर, जूनागढ़) लौटना पड़ा। रमेश जिलारिया ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई छूट रही है, घरों में खाना तक नहीं है, लोग कर्ज़ के बोझ तले दबे हैं।

सरकारी सहायता नाकाफी

मार्च 2025 में गुजरात सरकार ने बेरोजगार श्रमिकों के बच्चों की फीस भरने के लिए ₹13,500 सालाना की सहायता की घोषणा की। बिजली बिल, लोन पर ब्याज में राहत देने का भी वादा किया। परंतु जिलरिया का आरोप है कि हमने मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल को मार्च में पत्र लिखा था, पर अब तक कोई जवाब नहीं मिला। सिर्फ 50 मजदूरों को ही सहायता मिली है।

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