जिस जीत से मिली वाहवाही अब वहीं से आई मुश्किल, 'PDA' पर कैसे पड़ सकता असर
अयोध्या का भदरसा इस समय चर्चा में है। 12 साल की लड़की के साथ रेप के मामले में समाजवादी पार्टी पर बीजेपी हमलावर है। सपा के नेता इस विषय पर संभल कर जवाब दे रहे हैं।
Akhilesh Yadav PDA News: वैसे तो यूपी के इस लोकसभा का नाम फैजाबाद है। लेकिन आम चुनाव के बाद देश और दुनिया में लोग इसे अयोध्या संसदीय क्षेत्र कहते हैं। यह सीट चर्चा में इस वजह से है कि इसी साल जब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न हुआ तो आम और खास हर किसी को उम्मीद थी कि बीजेपी अयोध्या समेत यूपी की दूसरी सीटों पर प्रदर्शन और बेहतर करेगी। लेकिन जब नतीजा सामने आया तो हर कोई अवाक था। सियासी पंडितों की गुणा-गणित फेल हो चुकी थी। बीजेपी ना सिर्फ 2019 के मुकाबले आधे पर सिमट गई बल्कि अयोध्या की सीट भी हार गई। मौजूदा समय में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद काबिज हैं। ये वो सीट जिसे लेकर ना सिर्फ अखिलेश यादव बल्कि राहुल गांधी भी बीजेपी पर निशाना साधते हैं। हालांकि अब चर्चा की वजह दूसरी है।
भदरसा रेप केस पर सियासत
अयोध्या जिले में एक नगर पंचायत है जिसका नाम भदरसा है। इस नगर पंचायत के अध्यक्ष मोइद खान पर आरोप लगा है कि उसने 12 साल की एक मासूम लड़की के साथ रेप ही नहीं बल्कि गैंगरेप हुआ। आरोपी वीडियो बनाकर पीड़ित को ब्लैकमेल करने धमकी देते और करीब 2 महीने तक शारीरिक शोषण करते रहे। मामला तब खुला जब वो लड़की दो महीने की गर्भवती हो गई। लेकिन सवाल यह है कि समाजवादी पार्टी की घेराबंदी क्यों हो रही है। दरअसल जिस शख्स मोइद खान पर रेप का आरोप है उसकी तस्वीर सपा सांसद अवधेश प्रसाद के साथ नजर आई।
बयान आते आते बहुत देर कर दी
अवधेश प्रसाद वैसे तो दो दिन तक कुछ भी नहीं बोले। लेकिन दो दिन के बाद कहा कि तस्वीर से क्या लेना देना.चुनाव जीतने के बाद तमाम लोग उन्हें बधाई देने आए, तस्वीर खिंचवाई. मोइद खान वाली तस्वीर उनमें से एक है। सफाई के नाम पर उन्होंने इतनी बात कही। दो से तीन दिन की चुप्पी के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि डीएनए जांच होनी चाहिए। यही नहीं राजनीतिकरण ना हो इसके लिए न्यायालय से हस्तक्षेप की अपील की। इन सबके बीच अखिलेश यादव के उस पीडीए की बात करेंगे जिसके दम पर वो 37 सीट जीतने में कामयाब हुए और 2027 विधानसभा चुनाव में लखनऊ तक साइकिल के सरपट दौड़ने का सपना देख रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि जिस पीडीए की बात वो करते हैं क्या इस घटना के बाद उस पर असर पड़ेगा।
पहले तो पीडीए समझिए
सबसे पहले तो आप पीडीए का मतलब समझिए। पीडीए में पी का अर्थ पिछड़ा, डी का अर्थ दलित और ए का मतलब अल्पसंखयक या अगड़ा आप समझ सकते हैं। दरअसल समाजवादी पार्टी के नेता ए अक्षर का इस्तेमाल सुविधा के हिसाब से करते हैं। अब अयोध्या के भदरसा का जो मामला है उसमें पीड़ित निषाद समाज से यानी पिछड़े समाज से और आरोपी मोइद खान अल्पसंख्यक समाज से है। समाजवादी पार्टी के सामने दुविधा कि है कि वो खुलकर ना तो किसी का विरोध और ना ही समर्थन कर सकती है। क्योंकि यूपी की आबादी में करीब 18 प्रतिशत पिछड़े. 20 फीसद मुसलमान है।
सबसे पहले तो आप पीडीए का मतलब समझिए। पीडीए में पी का अर्थ पिछड़ा, डी का अर्थ दलित और ए का मतलब अल्पसंखयक या अगड़ा आप समझ सकते हैं। दरअसल समाजवादी पार्टी के नेता ए अक्षर का इस्तेमाल सुविधा के हिसाब से करते हैं। अब अयोध्या के भदरसा का जो मामला है उसमें पीड़ित निषाद समाज से यानी पिछड़े समाज से और आरोपी मोइद खान अल्पसंख्यक समाज से है। समाजवादी पार्टी के सामने दुविधा कि है कि वो खुलकर ना तो किसी का विरोध और ना ही समर्थन कर सकती है। क्योंकि यूपी की आबादी में करीब 18 प्रतिशत पिछड़े. 20 फीसद मुसलमान है।
दबी जुबान में क्यों बोल रहे हैं अखिलेश
अगर पिछले चुनावों को देखा जाए तो अल्पसंख्यक समाज एकमुश्त सपा की साइकिल पर सवार रहा है. यानी सामान्य तरीके से आप सपा का वोटबैंक कह सकते हैं। लेकिन पिछड़े समाज में वोटों का बंटवारा होता रहा है। अगर आप पीड़ित की बात करें तो उसके समाज के लोग आमतौर पर समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान कम करते रहे हैं। जबकि इसके ठीक उल्टा अल्पसंख्यक समाज सपा के साथ मजबूती से खड़ा है। लिहाजा पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए सियासी जानकारों का कहना है कि इस बात की संभावना बेहद कम है कि अखिलेश यादव अल्पसंख्यक समाज को नाराज करना चाहेंगे। लेकिन 2024 आम चुनाव में जिस तरह के गैर यादव पिछड़ों ने भी सपा पर भरोसा जताया है उसे देखकर अखिलेश यादव के सामने चुनौती बड़ी है।
अगर पिछले चुनावों को देखा जाए तो अल्पसंख्यक समाज एकमुश्त सपा की साइकिल पर सवार रहा है. यानी सामान्य तरीके से आप सपा का वोटबैंक कह सकते हैं। लेकिन पिछड़े समाज में वोटों का बंटवारा होता रहा है। अगर आप पीड़ित की बात करें तो उसके समाज के लोग आमतौर पर समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान कम करते रहे हैं। जबकि इसके ठीक उल्टा अल्पसंख्यक समाज सपा के साथ मजबूती से खड़ा है। लिहाजा पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए सियासी जानकारों का कहना है कि इस बात की संभावना बेहद कम है कि अखिलेश यादव अल्पसंख्यक समाज को नाराज करना चाहेंगे। लेकिन 2024 आम चुनाव में जिस तरह के गैर यादव पिछड़ों ने भी सपा पर भरोसा जताया है उसे देखकर अखिलेश यादव के सामने चुनौती बड़ी है।
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