अंता उपचुनाव: बीजेपी में अंदरूनी खींचतान! वसुंधरा बनाम संगठन की जंग तेज?
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अंता उपचुनाव: बीजेपी में अंदरूनी खींचतान! वसुंधरा बनाम संगठन की जंग तेज?

Rajasthan Politics: अंता का यह उपचुनाव अब सिर्फ टिकट पाने की होड़ नहीं, बल्कि बीजेपी नेताओं की पहचान और पकड़ की जंग बन चुका है. कौन उम्मीदवार बनेगा, इससे ज्यादा बड़ा सवाल है कि बीजेपी किस दिशा में जाएगी?


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Anta By Election: अंता विधानसभा सीट पर उपचुनाव से पहले राजस्थान बीजेपी के अंदर सियासी हलचल तेज हो गई है. कांग्रेस ने पहले ही प्रमोद जैन भाया को अपना उम्मीदवार बना लिया है, जिससे उसे थोड़ी बढ़त मिल गई है. लेकिन बीजेपी अब तक तय नहीं कर पाई है कि किसे मैदान में उतारा जाए. हालांकि, मामला सिर्फ उम्मीदवार चुनने का नहीं है, बल्कि ये जंग संगठन और वसुंधरा राजे के खेमे के बीच ताकत दिखाने की मानी जा रही है. यही वजह है कि अंता का ये उपचुनाव बीजेपी के लिए सिरदर्द बन गया है.

राजे कैंप की सक्रियता

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे चाहती हैं कि अंता से उन्हीं के पसंदीदा नेता को टिकट मिले. उनके खेमे के कुछ पुराने नेता पिछले कई दिनों से अंता में डेरा जमाए हुए हैं और स्थानीय कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क कर रहे हैं. राजे की कोशिश है कि इस उपचुनाव के जरिए वो ये दिखा सकें कि आज भी राजस्थान बीजेपी में उनका असर कम नहीं हुआ है.

संगठन की रणनीति और सीएम का रोल

बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अब इस स्थिति को संभालने में लगे हैं. मंगलवार को दोनों नेताओं की लंबी बैठक हुई, जिसमें अंता सीट के संभावित उम्मीदवारों पर चर्चा की गई. बैठक में इस बात पर विचार हुआ कि ऐसा नाम चुना जाए, जो संगठनात्मक संतुलन बनाए रखे और आगे की राजनीति को भी मजबूत करे.

स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार की बहस

बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार की है. पिछले 4 चुनावों में पार्टी ने बाहर के चेहरों पर दांव लगाया था, लेकिन इस बार स्थानीय कार्यकर्ताओं ने साफ कह दिया है कि "अबकी बार अंता का उम्मीदवार चाहिए."

हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में कई कार्यकर्ताओं ने बाहरी उम्मीदवार का विरोध किया था. इसके बाद जिलाध्यक्ष नरेश सिंह सिकरवार ने प्रदेश नेतृत्व को रिपोर्ट भेजी कि बाहरी उम्मीदवार से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट सकता है. यह रिपोर्ट अब भाजपा की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा बन चुकी है.

टिकट के दावेदार कौन-कौन?

बीजेपी में टिकट के लिए 6 से ज़्यादा दावेदार मैदान में हैं:-

स्थानीय नाम

* प्रखर कौशल (अंता प्रधान)

* आनंद गर्ग (पूर्व जिलाध्यक्ष)

* नंदलाल सुमन (पूर्व जिला प्रमुख)

* जयेश गालव

अन्य नाम

भगवती देवी (कंवरलाल मीणा की पत्नी)

नरेंद्र नागर (खानपुर के पूर्व विधायक)

टिकट का फैसला दिल्ली में पार्टी हाईकमान की बैठक के बाद होगा. ऐसा उम्मीदवार चुना जाएगा, जो "जमीन पर स्वीकार्य" हो और राजनीतिक संतुलन भी बना सके.

राजे बनाम संगठन की टक्कर?

बीजेपी ने इस सीट की गंभीरता को देखते हुए सांसद दामोदर अग्रवाल को अंता उपचुनाव का प्रभारी बनाया है. पार्टी जल्द कोर कमेटी की बैठक बुला सकती है, जिसमें राय लेकर नामों की सूची केंद्रीय नेतृत्व को भेजी जाएगी. माना जा रहा है कि टिकट तय करने में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दोनों की सहमति जरूरी होगी.

बीजेपी की बड़ी परीक्षा

यह उपचुनाव सिर्फ एक सीट का चुनाव नहीं है, बल्कि यह बीजेपी के लिए संगठनात्मक एकता की परीक्षा बन गया है. अगर टिकट को लेकर असंतोष बढ़ा तो इसका असर सिर्फ अंता के नतीजों पर नहीं, बल्कि 2028 के विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है.

वरिष्ठ पत्रकार सौरभ दुबे ने द फेडरल देश से बातचीत में बताया कि अंता विधानसभा क्षेत्र से विधायक कंवरलाल मीणा को पद से हटाए जाने के बाद यहां उपचुनाव हो रहा है. इस इलाके पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का दबदबा माना जाता रहा है. यही वजह है कि राजे के खास माने जाने वाले कंवरलाल मीणा यहां से विधायक रह चुके हैं. आपराधिक मुकदमा होने के चलते मीणा चुनाव लड़ नहीं सकते, इसलिए वसुंधरा राजे सिंधिया का जोर उनके ही किसी खास को टिकट दिलाने का है. कंवरलाल मीणा भी चाहते हैं कि उनकी गैरमौजूदगी में टिकट परिवार में ही किसी सदस्य को मिले.

उन्होंने बताया कि बीजेपी का मानना है कि उनका संगठन काफी बड़ा है. यहां टिकट प्रक्रिया के तहत ही दिए जाते हैं. हाई कमान से सलाह-मशवरे के बाद ही राज्य बीजेपी टिकट को लेकर आखिरी फैसला लेने के मूड में हैं. हालांकि, वह वसुंधरा राजे को भी नाराज नहीं करना चाहती. क्योंकि, उपचुनाव हाथ से निकलने की स्थिति में लोगों के बीच पार्टी को लेकर गलत संदेश जा सकता है.

अब यह चुनाव "राजे बनाम संगठन" की दिशा तय करेगा. अगर पार्टी जीतती है तो यह मुख्यमंत्री और नए नेतृत्व के लिए बड़ी राहत होगी. लेकिन अगर गुटबाजी के कारण हार होती है तो कांग्रेस को फायदा और बीजेपी को अंदरूनी संकट का सामना करना पड़ सकता है.

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