तमिलनाडु की सियासत में नया किरदार, क्या विजय बनेंगे किंगमेकर?
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तमिलनाडु की सियासत में नया किरदार, क्या विजय बनेंगे किंगमेकर?

करूर हादसे के बाद विजय ने राजनीति में नई शुरुआत की है। डीएमके पर खुले हमले और कांग्रेस से नज़दीकी ने तमिलनाडु की सियासत को नया मोड़ दे दिया है।


एक महीने की राजनीतिक चुप्पी के बाद, जब करूर भगदड़ में 41 लोगों की मौत ने पूरे तमिलनाडु को झकझोर दिया था, अभिनेता से नेता बने विजय की पार्टी “थमिऴगा वेत्त्रि कळगम” (TVK) ने दोबारा सक्रिय राजनीतिक अभियान शुरू कर दिया है।इस कदम ने राज्य के आगामी चुनावी समीकरणों को नया मोड़ दे दिया है।

“विजय अब गंभीर राजनेता बन चुके हैं”

द फेडरल के यूट्यूब प्रोग्राम “टॉकिंग सेंस विद श्रीनी” के नवीनतम एपिसोड में, द फेडरल के एडिटर-इन-चीफ एस. श्रीनिवासन ने इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य और “विजय फैक्टर” के इर्द-गिर्द बन रही नई अनिश्चितताओं का विश्लेषण किया।

श्रीनिवासन के अनुसार, करूर की त्रासदी विजय के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुई है।इस हादसे ने अभिनेता-से-राजनीतिज्ञ बने विजय को मजबूर किया कि वे अपनी सतर्क और तटस्थ छवि को छोड़कर अब राजनीति की कठोर हकीकतों का सामना करें।

श्रीनिवासन का कहना है कि विजय अब लापरवाह राजनीति नहीं कर सकते। उनकी साख दांव पर है, उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस घटना के बाद विजय पहले से ज्यादा दृढ़, आत्मविश्वासी और खुले तौर पर डीएमके-विरोधी बन गए हैं।

गठबंधन की राह अब भी कठिन

विजय के सामने अब भी कई चुनौतियाँ हैं। उनकी गठबंधन की संभावनाएँ सीमित हैं। एआईएडीएमके (AIADMK) के साथ किसी तरह का तालमेल लगभग असंभव है, क्योंकि पार्टी अब भी बीजेपी (BJP) के साथ गठबंधन में है जो TVK की “दोनों द्रविड़ पार्टियों से समान दूरी” की नीति के खिलाफ जाता है।

क्या कांग्रेस-विजय गठबंधन बन सकता है?

राजनीतिक गलियारों में इन दिनों एक नई चर्चा गर्म है। कांग्रेस और विजय का संभावित गठबंधन।इस अटकल को इसलिए बल मिला है क्योंकि विजय और राहुल गांधी के बीच अच्छे रिश्ते बताए जाते हैं। लेकिन ऐसा कदम उठाना राजनीतिक रूप से जोखिमभरा साबित हो सकता है। कांग्रेस को इसके लिए डीएमके-नेतृत्व वाले गठबंधन से दूरी बनानी पड़ेगी जो तमिलनाडु और राष्ट्रीय स्तर, दोनों पर एक संवेदनशील फैसला होगा।

श्रीनिवासन ने कहा, “यह फैसला राहुल गांधी के लिए ज्यादा कठिन है। विजय के लिए रास्ता आसान है, लेकिन राहुल के लिए मुश्किल, क्योंकि डीएमके राष्ट्रीय विपक्षी मोर्चे (INDIA ब्लॉक) की एक अहम ताकत है। यदि कांग्रेस TVK के साथ जाती है, तो यह गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी तालमेल को कमजोर कर सकता है।

विजय और विश्वसनीयता की चुनौती

श्रीनिवासन ने कहा कि विजय की असली चुनौती सिर्फ गठबंधन नहीं बल्कि विश्वसनीयता है।भले ही उनके पास भारी-भरकम फैन फॉलोइंग है, लेकिन वे अब तक राजनीतिक रूप से “अनटेस्टेड” हैं।उन्होंने अभिनेता विजयकांत का उदाहरण दिया, जिन्होंने एक समय में लगभग 10 प्रतिशत वोट पाकर तमिलनाडु के विपक्ष के नेता बने थे।

“विजयकांत की तुलना में विजय कहीं बड़े स्टार हैं, लेकिन क्या वे अपनी लोकप्रियता को वोट में बदल पाएंगे, यह अभी भी अनिश्चित है। श्रीनिवासन ने कहा कि राजनीति में बड़ी सफलता पाने के लिए उन्हें कम से कम 35 से 40 प्रतिशत वोट शेयर चाहिए,”

तमिलनाडु का चुनावी मंच अब त्रिकोणीय

इधर, एआईएडीएमके प्रमुख एडप्पाड़ी के. पलानीस्वामी (ईपीएस) भी अपने संघर्ष से गुजर रहे हैं।जयललिता की मौत के बाद उन्होंने पार्टी पर नियंत्रण तो हासिल कर लिया, लेकिन 2021 के बाद से कोई बड़ी चुनावी सफलता नहीं मिली।श्रीनिवासन के अनुसार, अब उनकी नेतृत्व क्षमता और जनाधार दोनों की परीक्षा हो रही है।दूसरी ओर, डीएमके (DMK) सरकार को पांच साल पूरे होने के बाद एंटी-इनकंबेंसी (जनविरोध) का असर झेलना पड़ रहा है।

श्रीनिवासन ने कहा कि “मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन अब बेहद सावधानी से कदम बढ़ा रहे हैं, “डीएमके नेतृत्व जानता है कि उसे अब न सिर्फ बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन से है बल्कि विजय के नेतृत्व में उभर रही तीसरी शक्ति से भी मुकाबला करना होगा।”

विजय बनेंगे किंगमेकर या एक असफल प्रयोग?

अब बड़ा सवाल यही है कि विजय राजनीति में ‘किंगमेकर’ बनेंगे,‘स्पॉइलर’ साबित होंगे या फिर एक अस्थायी प्रयोग मात्र रह जाएंगे?इसका जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या वे करूर त्रासदी के बाद उपजे सहानुभूति और फैन लॉयल्टी को संगठित राजनीतिक पूंजी में बदल पाते हैं या नहीं।फिलहाल, तमिलनाडु की राजनीति में एक नया और अप्रत्याशित किरदार उभर चुका है और डीएमके तथा एआईएडीएमके दोनों उस पर पैनी नज़र रखे हुए हैं।

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