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बिहार में एक चौपाल पर बैठे ग्रामीण के साथ द फेडरल देश की बातचीत

चुनाव आयोग की गाइडलाइन से उलट, BLO ने बिहार में लिया आधार, क्या बढ़ेगी वोटर्स की मुश्किल?

बिहार में स्पेशल इटेंसिव रिवीजन के दौरान बीएलओने वोटर्स से आधार, से लेकर बैंक खाते के पासबुक और पैन कार्ड जैसे डॉक्यूमेंट्स को भी स्वीकार किया है. वोटर्स के पास आसानी से यही उपलब्ध डॉक्यूमेंट था. पर सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग इसे मान्यता देगा या यहीं.


बिहार में नए सिरे से वोटर लिस्ट तैयार करने के चुनाव आयोग के फैसले के असर की पड़ताल करने के लिए द फेडरल देश की राजधानी पटना से जहानाबाद - गया हाईवे की ओर निकली. सफर के दौरान हाईवे के करीब देवकली नामक गांव के चौपाल पर बैठे लोदों पर हमारी नजर पड़ी. चौपाल पर बैठे ग्रामीणों से चुनाव आयोग के वोटर्स लिस्ट के शुद्धिकरण करने के प्रयासों और उनके अनुभवों को जब हमने समझने की कोशिश की.

चौपाल पर बैठे पेशे से किसानी का काम करने वाले पंकज कुमार ने बताया कि उनके घर बीएलओ आया और उन्होंने फॉर्म भर दिया है और आधार की कॉपी उन्होंने पहचान पत्र के तौर पर लगाया है. पंकज कुमार ने कहा, बीएलओ ने उन्हें कोई पावती यानी रिसिविंग नहीं दिया है. खेती करने वाले द्वारिक महतो ने हमें बताया कि उन्होंने भी फॉर्म भरा है और उसके साथ आधार की कॉपी लगाया है.

इसी गांव के निवासी रमेश पासवान ने बताया कि उन्होंने भी फॉर्म भरा है लेकिन बीएलओ ने कोई रिसिविंग नहीं दिया है. उन्होंने बताया कि पहचान के तौर पर उन्होंने भी आधार कार्ड का कॉपी दिया है. मजदूरी करने वाले मनोज पासवान से हमने बात की तो उन्होंने भी Enumeration Form के साथ आधार की कॉपी लगाया है. अर्जुन प्रसाद ने हमें बताया कि मुखिया की मदद से उन्होंने फॉर्म भरा है और उन्होंने भी आधार की कॉपी को लगाया है. लेकिन उन्होंने बताया कि कोई पावती नहीं मिला है.

द फेडरल देश ने जिन लोगों से बात की उससे एक बात तो स्पष्ट है कि ज्यादातर लोगों ने जो गणना प्रपत्र पारूप यानी Enumeration Form भरा है उसके साथ आधार की कॉपी लगाया है. जबकि नए सिरे से वोटर्स लिस्ट तैयार करने के लिए चुनाव आयोग ने जो 11 डॉक्यूमेंट्स को मान्यता दी है उसमें आधार, राशन कार्ड और खुद चुनाव आयोग द्वारा जारी किया गया पहचान पत्र शामिल नहीं है. चुनाव आयोग ने जिन 11 डॉक्यूमेंट्स को मान्यता दी है उसमें

1. केंद्रीय, राज्य या PSU के नियमित कर्मचारी, पेंशनधारकों को जारी किया गया पहचान पत्र और पेंशन भुगतान आदेश शामिल है.

2. सरकार, स्थानीय प्राधिकरण, बैंक, पोस्ट ऑफिस, LIC या PSU द्वारा भारत में 1 जुलाई 1987 से पूर्व जारी किया गया कोई भी पहचान पत्र या दस्तावेज देना होगा.

3. सक्षम प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया जन्म प्रमाण पत्र

4. पासपोर्ट

5. मान्यता प्राप्त बोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा जारी किया गया मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र

6. सक्षम राज्य प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया निवास प्रमाण पत्र

7. वन अधिकार प्रमाण पत्र

8. सरकार द्वारा जारी किया गया OBC, SC या ST या कोई जाति प्रमाण पत्र

9. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)

10. राज्य या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा तैयार किया गया पारिवारिक रजिस्टर

11. सरकार की कोई भूमि या मकान आवंटन पत्र शामिल है

चुनाव आयोग ने इस ग्यारह डॉक्यूमेंट्स में आधार, राशन कार्ड और EPIC नंबर को शामिल नहीं किया है. जबकि इनमें से ज्यादातर डॉक्यूमेंट्स बनवाने के लिए आधार का होना जरूरी है. अब चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जो अपना हलफनामा 21 जुलाई 2025 को दाखिल किया है उसमें आयोग ने कोर्ट को बताया कि बिहार में 90 फीसदी मतदाताओं में enumeration forms भर दिए हैं. आधार को शामिल नहीं करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि, संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत के तहत नागरिकता का प्रमाण नहीं है. स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के फैसले का बचाव करते हुए आयोग ने कहा, आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है,जो कि मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए आवश्यक शर्त है. लेकिन चुनाव आयोग के स्पेशल इंसेंटिव रिवीजन के इस फैसले को लेकर बुद्धिजीवी वर्ग इसे फर्जीवाड़ा करार दे रहे हैं.

स्वराज इंडिया के राजनीतिक कार्यकर्ता, योगेंद्र यादव जो खुद याचिकाकर्ता भी हैं उन्होंने द फेडरल देश से बात करते हुए कहा, चुनाव आयोग के मुताबिक 95 फीसदी लोगों को फॉर्म मिल गया और उन्होंने भरकर बीएलओ को वापस भी कर दिया. जबकि घर में बीएलओ पहुंचा नहीं,फॉर्म मिला नहीं लेकिन फॉर्म अपलोड भी हो चुका है वेरिफाई भी हो चुका है. उन्होंने कहा, बिहार में पूरी तरह से फर्जीवाड़ा हो रहा है.

पटना हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस अंजना प्रकाश ने चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ये समझ नहीं आ रहा है कि ये किया क्यों जा रहा है? किसके फायदे के लिए ये किया जा रहा है? ये प्रक्रिया लोगों को तकलीफ देने के लिए है या लोगों के बेनेफिट के लिए? उन्होंने कहा, 18 वर्ष के होने बाद वोट करना हमारा संवैधानिक अधिकार है. अंजना प्रकाश ने सवाल किया, क्या हमारा संवैधानिक अधिकार लेना चाहती है आयोग? उन्होंने कहा, बहुत गलत हो रहा है. आयोग ने कंफ्यूजन फैला रखा है.

बिहार में बीएलओ वोटर्स से आधार, से लेकर बैंक खाते के पासबुक और पैन कार्ड जैसे डॉक्यूमेंट्स को भी स्वीकार कर रहे हैं. पर सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग इसे स्वीकार किया जाएगा या नहीं. ऐसा तो नहीं कि जिन मतदाताओं ने आधार दिया है उनका आवेदन खारिज कर दिया जाएगा?

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