
वक्फ एक्ट को लेकर SC आदेश के बाद बिहार NDA सहयोगियों पर मुसलमानों का गुस्सा
SC के फैसले से विपक्ष को मदद मिलेगी यह साबित करने में कि SIR और वक्फ कानून मिलकर मुसलमानों के धर्म की आज़ादी पर हमला और उनकी नागरिकता पर निशाना साधने की साज़िश हैं।
इस साल अप्रैल में, जब मुस्लिम संगठनों द्वारा वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ जोरदार विरोध हो रहा था और कानूनी विशेषज्ञों व विपक्षी नेताओं ने इसके नतीजों को लेकर चेतावनी दी थी, तब जेडीयू के वरिष्ठ सांसद और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ‘ललन’ लोकसभा में खड़े होकर इस कानून का जोरदार समर्थन कर रहे थे। उन्होंने विपक्षी सांसदों को आड़े हाथों लिया, जिन्होंने बिल को “असंवैधानिक” बताया था, और दावा किया कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाएगा। इसके बाद जेडीयू के भीतर ही तीखी प्रतिक्रिया हुई।
कुछ ही दिनों में जब संसद ने बिल पारित कर दिया, तो पार्टी को मुस्लिम नेताओं के बड़े पैमाने पर इस्तीफों का सामना करना पड़ा। इनमें अलग-अलग स्तर के नेता और पूर्व विधायक-सांसद शामिल थे। उनका आरोप था कि जेडीयू, जो BJP के साथ गठबंधन में होने के बावजूद मुसलमानों की आवाज़ उठाती रही है, अब या तो “भटक गई है” या “BJP-RSS की सोच वाले लोगों के कब्जे में आ गई है।”
बिहार में विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने वाले हैं। ऐसे में कई जेडीयू नेताओं ने पार्टी नेतृत्व को चेताया था कि बिना शर्त इस बिल का समर्थन न करें।
इसी तरह चेतावनियाँ NDA की छोटी लेकिन अहम सहयोगी पार्टियों—लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा—को भी दी गईं। दोनों ही केंद्रीय मंत्री हैं और लगातार यह संतुलन साधने की कोशिश करते रहे हैं कि BJP का साथ भी बना रहे और बिहार के लगभग 17% मुस्लिम मतदाताओं को भी नाराज़ न किया जाए। लेकिन इन चेतावनियों का नीतीश, पासवान और कुशवाहा पर कोई असर नहीं हुआ।
SC का आदेश और NDA खेमे की चुप्पी
सोमवार (15 सितम्बर) को जब सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून की कुछ अहम धाराओं के अमल पर अंतरिम रोक लगा दी—भले ही पूरे कानून पर रोक नहीं लगाई—तो चुनावी बिहार में NDA की इन तीनों सहयोगी पार्टियों में सन्नाटा छा गया।
संशोधित वक्फ कानून के पारित होने के बाद के महीनों में JD(U), LJP-आरवी और RLM ने चैन की सांस ली थी। उस समय तक कानून विरोधी प्रदर्शन, पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर की गूँज में दब गए थे। NDA को लगता था कि इन घटनाओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गढ़े गए राष्ट्रवाद के नैरेटिव के इर्द-गिर्द बिखरे हुए वोट फिर से एकजुट हो जाएंगे।
लेकिन जैसे ही NDA इस राष्ट्रवादी माहौल का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही थी, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) ने नीतीश सरकार के खिलाफ असंतोष को फिर से भड़का दिया।
अविश्वास के बीज
बिहार में माहौल एक बार फिर हाशिए पर खड़े समुदायों के खिलाफ जाता दिखा, जिनमें मुसलमानों की हिस्सेदारी बड़ी है। JD(U) और उसके NDA सहयोगी दल SIR के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध भी दर्ज नहीं करा सके। इससे बिहार के मुसलमानों, खासकर सीमांचल इलाके के लोगों में अविश्वास और गहरा गया।
सीमांचल में मुसलमान वोटों के लिए जेडीयू की सीधी टक्कर RJD और कांग्रेस से है। यही वजह है कि वक्फ कानून पारित होने के बाद से ही BJP के सहयोगी दलों के प्रति मुसलमानों का संदेह बढ़ा हुआ है। यह बात कई JD(U) और LJP-आरवी नेताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले के बाद मानी।
‘NDA सहयोगियों की चुप्पी गुनाह का इक़रार’
सुप्रीम कोर्ट के वक्फ एक्ट फैसले पर नीतीश, पासवान और कुशवाहा की चुप्पी उस कानून के समर्थन पर “गुनाह का इक़रार” है, जिससे मुस्लिम समुदाय नाराज़ है—ऐसा उनके ही दलों के नेताओं ने कहा।
यह फैसला वक्फ कानून को फिर से राजनीतिक बहस के केंद्र में ले आया है, जिसे अब तक ऑपरेशन सिंदूर ने दबा रखा था। इससे भी बुरा यह है कि अब विपक्षी महागठबंधन इसे एक नई रणनीति के तहत मुस्लिम बहुल इलाकों में एक ही मुद्दे के रूप में पेश कर सकता है। कांग्रेस और RJD के सूत्रों ने The Federal को बताया कि महागठबंधन यह नैरेटिव गढ़ रहा है कि—जहाँ वक्फ कानून मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर NDA का हमला है, वहीं SIR उनकी नागरिकता और उससे जुड़े मूलभूत अधिकारों को निशाना बनाने की साज़िश है।
कठिन सवाल
JD(U) के सूत्रों ने कहा कि आने वाले दिनों में पार्टी से मुस्लिम नेताओं के और इस्तीफे हो सकते हैं, क्योंकि उनके पास उन्हें यह भरोसा दिलाने का कोई ठोस आधार नहीं है कि नीतीश उनके हितों की रक्षा करेंगे।
जेडीयू के अंदरूनी सूत्रों ने माना कि मुसलमान राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से कम से कम 50 सीटों पर किसी भी उम्मीदवार के जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में पार्टी के लिए इन सीटों पर पकड़ बनाए रखना मुश्किल होगा।
JD(U) और LJP-आरवी दोनों नेताओं ने स्वीकार किया कि अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट की कुछ धाराओं को कमजोर किया है, मतदाताओं को यह समझाना “और भी कठिन” होगा कि हमने इस कानून का समर्थन क्यों किया।
फिलहाल NDA के सूत्रों का कहना है कि जेडीयू और LJP जैसी पार्टियाँ इस मुद्दे पर सीधे तौर पर बोलने से बचेंगी और चुनावी कैंपेन में भाजपा की लाइन का ही पालन करेंगी।
क्या BJP के पास पलटवार की रणनीति है?
जेडीयू के एक धड़े का मानना है कि भाजपा वक्फ एक्ट समेत कई मुद्दों का इस्तेमाल करके राज्य में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और गहरा करेगी। इसमें वह यह दावा करेगी कि वक्फ दावों के ज़रिये हिंदू संपत्तियों पर अवैध कब्ज़े किए जा रहे हैं और SIR को वह “घुसपैठियों को छाँटने का तरीका” बताएगी।
राज्य के एक वरिष्ठ NDA नेता ने कहा कि यह रणनीति महागठबंधन को मुस्लिम-बहुल सीमांचल और कुछ अन्य सीटों पर जो लाभ पहुँचा सकती थी, उसकी भरपाई करेगी। इससे NDA की जीत की संभावनाएँ उत्तर बिहार, तिरहुत, अंग और मगध जैसे क्षेत्रों में बढ़ सकती हैं, जहाँ साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पहले भी NDA के पक्ष में काम करता रहा है।