वायनाड भूस्खलन : पीड़ित परिजनों के शोक और दर्द को बढ़ा रहा है डीएनए परीक्षण से गुजरना
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वायनाड भूस्खलन : पीड़ित परिजनों के शोक और दर्द को बढ़ा रहा है डीएनए परीक्षण से गुजरना

आपदा की गंभीरता के कारण, शवों को देख कर उनकी शिनाख्त कर पाना अब संभव नहीं है, जिससे पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया में डीएनए परीक्षण एक आवश्यक कदम बन गया है.


Wayanad Landslide: वायनाड के चूरलमाला और मुंडक्कई में हुए विनाशकारी भूस्खलन के बाद, केरल सरकार ने क्षत-विक्षत शवों की पहचान करने में मदद के लिए डीएनए परीक्षण शुरू किया है. इस आपदा ने पीड़ित परिवारों के दर्द को इस कद्र बढ़ा दिया है कि उन्हें क्षत विक्षत शवों के बीच पहुँच कर अपने प्रियजनों की पहचान करने का दर्दनाक कार्य का सामना करना पड़ रहा है. यहां तक कि डॉक्टर भी भारी दबाव में हैं, जिससे वे भावनात्मक रूप से थक चुके हैं.

पीड़ितों के रिश्तेदारों को डीएनए पहचान की दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है, क्योंकि कई शव क्षत-विक्षत और पहचान में नहीं आ रहे हैं. आपदा की गंभीरता के कारण, कई शव इस कदर क्षत विक्षत हो चुके हैं कि अब उनकी पहचान संभव नहीं है, जिसकी वजह से डीएनए परीक्षण एक आवश्यक कदम बन गया है. अस्पतालों में, विशेष रूप से कलपेट्टा ब्लॉक पंचायत परिवार स्वास्थ्य केंद्र में, स्थिति भयावह और दिल दहला देने वाली है.
'The Federal' की टीम ने ये दर्दनाक दृश्य देखा जिसमें मास्क पहने लोग शवों की पहचान करने के लिए कतार में खड़े थे.
ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों ने मृतकों के चेहरे पर से कपड़ा हटाकर उनके परिजनों को पहचानने में मदद करने की कोशिश की. हालांकि, कई शवों की हालत इतनी खराब थी कि वे क्षत-विक्षत और सड़ चुके थे, जिसकी वजह से पहचान का ये काम बेहद मुश्किल हो गया है.
अब्बास नाम का एक युवक, जो इस घटना के बाद से लापता था, कि एक रिश्तेदार खैरुनीसा ने बताया कि वो बहुत दुखी हैं. उन्होंने बताया कि अब्बास के शव की पहचान उसकी गर्दन पर मौजूद एक तिल से की, लेकिन कतार में खड़े अन्य लोग भी दावा कर रहे हैं कि ये शव उनके प्रियजन का है. ये एक असहनीय दर्द है. डीएनए परीक्षण ही हमारी एकमात्र उम्मीद है, जिससे हम निश्चित रूप से जान सकते हैं" उसने द फेडेरल को बताया. रामेसन, जिसका भाई लापता है, ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए बताया कि "मैं उन शवों को देखने के दर्द को शब्दों में बयां नहीं कर सकता, जब मैं किसी परिचित चीज को पहचानने की कोशिश कर रहा था. हमें आखिरकार कुछ शांति पाने के लिए डीएनए परीक्षण की जरूरत है."

कष्टकारी डीएनए परीक्षण
कोच्चि से फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. अनिल, जो अपनी टीम के साथ वायनाड आए थे, ने द फेडरल को बताया, "शवों की पहचान के लिए पूरी डीएनए जांच प्रक्रिया में आमतौर पर एक से तीन सप्ताह लगते हैं. शुरुआत में, शव और रिश्तेदारों से नमूने एकत्र करने और तैयार करने में आमतौर पर कुछ घंटों से लेकर एक दिन तक का समय लगता है. नमूनों की स्थिति और प्रयोगशाला की दक्षता के आधार पर डीएनए निकालने और प्रोफाइलिंग में कई दिनों से लेकर एक सप्ताह तक का समय लग सकता है. एक बार डीएनए प्रोफाइल की तुलना हो जाने के बाद, अंतिम रिपोर्टिंग और परिणामों के संचार में कुछ और दिन लग सकते हैं. हम तत्काल मामलों को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन कुल समयसीमा कार्यभार और नमूने की गुणवत्ता के आधार पर भिन्न हो सकती है."

यहां तक कि डॉक्टर भी दबाव में हैं, क्योंकि कई रिश्तेदार शवों पर अपना दावा पेश कर रहे हैं.
डॉ. अनिल ने द फेडरल को बताया, "हम पीड़ितों की सटीक पहचान के लिए लगभग 20 क्षत-विक्षत शवों का डीएनए परीक्षण कर रहे हैं. समस्या ये है कि एक शव के लिए डीएनए परीक्षण की मांग सिर्फ एक या दो परिवार के सदस्य ही नहीं करते, बल्कि कई रिश्तेदार - कभी-कभी पांच से भी अधिक - कई शवों के परीक्षण की मांग करते हैं. इस स्थिति में हमारे लिए ये काम मुश्किल हो जाता है."

भ्रम, संकट प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं
उदाहरण के लिए, वायनाड जिला प्रशासन ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि चामराजनगर तालुका निवासी राजन (50) का शव मिल गया है.
शरीर के अंगों के ज़रिए शुरुआती पहचान के बावजूद, रिश्तेदारों ने बाद में पाया कि शव राजन का नहीं था, जिससे भ्रम और परेशानी और बढ़ गई. अब दूसरे परिवारों का दावा है कि शव उनके लापता रिश्तेदारों का हो सकता है, जिससे पहचान की पुष्टि के लिए डीएनए परीक्षण की ज़रूरत पड़ रही है.
टी. नरसीपुरा की महादेवम्मा के नौ लापता परिवार के सदस्यों में से, जो मुंदकई में बस गए थे, श्रेया (19) का शव मिला और उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया. शिवन्ना (50) के शव की पहचान कर ली गई और उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया.
गुरुवार की सुबह अधिकारियों ने सावित्री (52) का शव मिलने की सूचना दी, लेकिन वो पहचान में नहीं आ रहा था, इसलिए रिश्तेदारों को उसे शरीर के अन्य अंगों से पहचानना पड़ा. इस स्थिति में डीएनए परीक्षण की आवश्यकता पड़ी. महादेवम्मा के एक अन्य बेटे सिद्दाराजू (42) की पहचान शुरू में उसके पैर से हुई, जिस पर अभी भी जूता था, जबकि शरीर के बाकी हिस्से क्षत-विक्षत हो चुके थे.
हालांकि, रिश्तेदारों को पूरी तरह से यकीन नहीं है कि ये वास्तव में वही है, इसलिए उसकी पहचान की पुष्टि के लिए डीएनए परीक्षण की आवश्यकता है. माना जा रहा है कि शव महादेवम्मा के एक और बेटे गुरुमल्ला का है, जिस पर चार अन्य परिवार भी दावा कर रहे हैं. रिश्तेदारों ने गुरुमल्ला की पहचान उसके चेहरे पर एक निशान से की, लेकिन अपने प्रियजनों की तलाश कर रहे अन्य परिवार भी शव को अपना बता रहे हैं. गुरुमल्ला की एक रिश्तेदार लक्ष्मी के अनुसार, इस स्थिति ने परस्पर विरोधी दावों को हल करने के लिए डीएनए परीक्षण कराने का निर्णय लिया है.


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