
लद्दाख : "हमारे अपने ही घर में हमारा कोई भविष्य नहीं": केंद्र के खिलाफ गुस्से में लद्दाखी युवा
हिंसा ने एक गहरे संकट को उजागर कर दिया, एक ऐसी पीढ़ी जो सुरक्षा के वादों और उपेक्षा और विश्वासघात की कठोर हकीकत के बीच फंसी हुई है। लेह से ग्राउंड रिपोर्ट
24 सितंबर को लद्दाख की ठंडी वीरानी में छुपा असंतोष अचानक भड़क उठा। लेह में हुए प्रदर्शनों में भाजपा कार्यालय और एक पुलिस वाहन को आग के हवाले कर दिया गया। छह वर्षों से जारी राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची की मांग ने आखिरकार उग्र रूप ले लिया। कम से कम 4 लोग मारे गए और 70 से अधिक घायल हो गए, जिसके बाद पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया।
यह असंतोष 2019 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से चल रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के बाद सामने आया। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जिन्होंने लंबे समय तक भूख हड़ताल की, ने कहा कि यह हिंसा दरअसल टूटने की कगार पर पहुंची निराशा का नतीजा थी—सरकार की नाकामी के खिलाफ एक फट पड़ा गुस्सा।
शोक से जन्मा सामूहिक आक्रोश
22 वर्षीय प्रदर्शनकारी ग्यात्सो भूटिया ने द फेडरल से कहा, “यह किसी सोचे-समझे हमले का दिन नहीं था, यह शोक और कुंठा का फूटना था।”
उन्होंने बताया कि एनडीएस मेमोरियल ग्राउंड में एकजुटता व्यक्त करने के लिए लोग इकट्ठा हुए थे, जब बुजुर्ग कार्यकर्ता त्सेरिंग आंगचुक और ताशी डोल्मा को 35 दिन की भूख हड़ताल के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह दृश्य देखकर भीड़ का गुस्सा अचानक भड़क उठा।
उन्होंने कहा, “यह हमला किसी इमारत पर नहीं था, बल्कि उस प्रतीक पर था जो हमारे लिए टूटी हुई उम्मीदें और सत्ता का असंवेदनशील चेहरा दर्शाता था।”
सम्मान के बिना मातृभूमि
24 वर्षीय स्नातक लोबसांग त्शेरिंग ने कहा,“हमारा गुस्सा केवल संवैधानिक अधिकारों या नौकरियों को लेकर नहीं है, बल्कि उस चक्रव्यूह के खिलाफ है जिसमें ये दोनों एक-दूसरे को जन्म देते हैं। छठी अनुसूची का संरक्षण ही हमारी भूमि, संसाधनों, जनजातीय पहचान और नाजुक पारिस्थितिकी की गारंटी है।”
उनका कहना था कि बेरोजगारी और नौकरियों की कमी इसी वजह से है कि स्थानीय निर्णय लेने की शक्ति छिन ली गई है। “हम पढ़े-लिखे युवा हैं – डॉक्टर, इंजीनियर, स्नातक – लेकिन अपनी ही जमीन पर हमारा कोई भविष्य नहीं है,” उन्होंने कहा।
तकनीक बनी आंदोलन की ताकत
त्शेरिंग ने बताया कि इस बार की लड़ाई पिछली पीढ़ियों से अलग है। “हम WhatsApp से रियल-टाइम में जुटान करते हैं, Instagram और X हमारे न्यूज़ चैनल हैं। हम प्रेस कॉन्फ्रेंस का इंतज़ार नहीं करते, सीधे सड़कों से लाइव जाते हैं। हम डिजिटल नेटिव्स हैं, जो अपनी प्राचीन पहचान के लिए लड़ रहे हैं।”
25 वर्षीय इंजीनियर तेनजिन दोरजे ने कहा कि भाजपा सरकार ने राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा का वादा किया था, लेकिन वह वादे अधूरे रहे। उन्होंने कहा, “हमारे लिए यह राजनीति नहीं, बल्कि विश्वासघात है।”
टूटी उम्मीदें, जलता गुस्सा
22 वर्षीय पर्यावरण स्नातक सोनम चोदोन ने कहा,“मोदी सरकार ने स्थानीय शासन, राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची का वादा किया था। लेकिन चार साल बाद हमारे पास सिर्फ खामोशी और टूटे वादे हैं।”
एक अन्य प्रदर्शनकारी स्तोबदान वांगदुस ने कहा कि भाजपा कार्यालय और पुलिस वाहनों पर हमले दरअसल उन संस्थानों के खिलाफ गुस्से की अभिव्यक्ति थे, जो विश्वासघात के प्रतीक बन चुके हैं।
विद्रोह से दमन तक
हिंसा के कुछ घंटों के भीतर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोनम वांगचुक को दोषी ठहराया और “अरब स्प्रिंग शैली” की बयानबाज़ी का हवाला देते हुए उन्हें हिंसा भड़काने वाला बताया। पुलिस ने दावा किया कि आत्मरक्षा में फायरिंग की गई।
इसके बाद कड़ा दमन शुरू हुआ। कम से कम 50 लोग गिरफ्तार किए गए और वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत बंद कर दिया गया। अगले ही दिन उनके संगठन SECMOL का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया गया, जिसे व्यापक तौर पर राजनीतिक कदम माना गया।