पश्चिम बंगाल में ई-बस योजना लड़खड़ाई, CNG की ओर फिर रुख
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पश्चिम बंगाल परिवहन निगम वर्तमान में कोलकाता में 100 से अधिक ई-बसें चलाता है। फोटो: iStock

पश्चिम बंगाल में ई-बस योजना लड़खड़ाई, CNG की ओर फिर रुख

पश्चिम बंगाल में इलेक्ट्रिक बस योजना बैटरी, लागत और सीमित संसाधनों के कारण धीमी हुई। अब राज्य सरकार फिर से CNG बसों की ओर लौट रही है।


West Bengal E Bus Service: पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 2030 तक कोलकाता समेत राज्य के सार्वजनिक परिवहन को पूरी तरह इलेक्ट्रिक मोड पर लाने की महत्वाकांक्षी योजना अब पटरी से उतरती नजर आ रही है। वेस्ट बंगाल ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (WBTC) ने 2025 तक अपनी इलेक्ट्रिक बसों की संख्या 1,260 तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन अब महज तीन साल में ही इस रणनीति पर दोबारा विचार शुरू कर दिया गया है। इस समय कोलकाता में करीब 100 से अधिक ई-बसें परिचालन में हैं।

क्यों बदल रही है सरकार अपनी रणनीति?

विभागीय सूत्रों के मुताबिक, बैटरी की सीमित आयु और रेंज, उच्च लागत, बजट की कमी और तकनीकी जटिलताओं ने सरकार को अपनी नीति पर फिर से सोचने के लिए मजबूर किया है। इसका संकेत शुक्रवार (27 जून) को तब मिला जब सरकार ने 200 CNG चालित बसें खरीदने की प्रक्रिया शुरू की। पर्यावरणविदों ने इस फैसले का स्वागत किया है।

ई-बसों में क्या है मुख्य समस्या?

कमजोर बैटरी और सीमित रेंज

2018-19 में खरीदी गई कई बसों की बैटरियों की क्षमता काफी घट चुकी है। जहां Ultra EV 7M बैटरी एक बार चार्ज होने पर 160 किलोमीटर तक चल सकती थी, अब वही बसें 70 से 80 किमी में ही ठहर जाती हैं। इससे संचालन लागत बढ़ गई है। एक नई बैटरी की कीमत 12 से 15 लाख रुपये तक है, जो फ्लीट मेंटेनेंस को भारी बनाता है।

महंगे और दुर्लभ स्पेयर पार्ट्स

ई-बसों के स्पेयर पार्ट्स बहुत महंगे हैं और बाजार में उनकी उपलब्धता भी सीमित है, क्योंकि कुछ ही कंपनियां इनका निर्माण करती हैं। WBTC के एक अधिकारी ने बताया कि इससे सप्लाई चेन बाधित होती है, जिससे डिपो में बसों के संचालन में रुकावट आती है।

अधिक लागत

12 मीटर लंबी एक ई-बस की कीमत लगभग 1.30 करोड़ रुपये होती है, जबकि सामान्य डीज़ल या CNG बस की लागत 30 से 45 लाख रुपये होती है।

दुर्गा पूजा से पहले CNG बसें लाने की योजना

राज्य परिवहन विभाग की योजना है कि दुर्गा पूजा से पहले कम से कम 30 CNG आधारित एसी बसें सड़कों पर लाई जाएं। लेकिन कोलकाता में CNG रिफ्यूलिंग स्टेशनों की सीमित संख्या इस योजना के मार्ग में बाधा बन सकती है। वर्तमान में शहर में ई-बसों के लिए 14 चार्जिंग स्टेशन मौजूद हैं।

सरकार ने हाल ही में कोलकाता में भारत का सबसे बड़ा EV चार्जिंग हब स्थापित करने की परियोजना भी शुरू की थी, जिसमें 300 चार्जिंग पॉइंट्स होंगे। राज्य में 1.25 लाख से अधिक EV वाहनों का पंजीकरण हो चुका है। यदि ई-बसें बंद की जाती हैं, तो यह चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर भी बेकार हो सकता है।

क्या पर्यावरण पर पड़ेगा असर?

पर्यावरणविद मिलन दत्ता का मानना है कि यह बदलाव पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं होगा। उनके अनुसार, चूंकि ई-बसों को चार्ज करने के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली नवीकरणीय स्रोतों से नहीं आती, और ई-कचरे के पुनर्चक्रण की उचित व्यवस्था नहीं है, इसलिए इलेक्ट्रिक वाहन भी प्रदूषण की समस्या का पूर्ण समाधान नहीं हैं।उन्होंने कहा, ई-वाहनों से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन तो कम हुआ, लेकिन समग्र प्रदूषण पर इसका असर सीमित रहा।”

थर्मल पावर पर बढ़ती निर्भरता

भारत की ऊर्जा प्रणाली में फिलहाल 47% बिजली कोयले से बनती है, और नीति आयोग के अनुसार यह हिस्सा 2030 तक 51% तक बढ़ सकता है। ऐसे में EV अपनाने से थर्मल पावर पर निर्भरता और बढ़ सकती है। साथ ही, लिथियम-आयन बैटरियों के निपटान के लिए कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है, जो आगे चलकर एक नई पर्यावरणीय आपदा बन सकती है।

पश्चिम बंगाल की सरकार ने जिन बड़े सपनों के साथ इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की राह पकड़ी थी, वो अब हकीकत की चुनौतियों के सामने जूझती नजर आ रही है। ई-बसों की जगह CNG बसों की वापसी नीतिगत बदलाव का संकेत है, जिसमें अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और व्यवहारिकता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की जा रही है।

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