अब आलू पर तनातनी: पश्चिम बंगाल ने लगाया बैन, मुश्किल में झारखंड-ओडिशा, जानें क्या है पूरा मामला
पश्चिम बंगाल में 6.2 लाख टन का स्टॉक है, जो 40-45 दिनों की दैनिक खपत को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, तब तक नई फसल बाजार में पहुंचने की उम्मीद है.
West Bengal government ban potato: प्याज और टमाटर के साथ-साथ आलू शायद देश की सबसे अधिक राजनीतिक रूप से अस्थिर फसल है. अब इसी आलू ने पश्चिम बंगाल और उसके दो पड़ोसी राज्यों के बीच अंतर-राज्यीय विवाद को जन्म दे दिया है. स्थानीय बाजारों में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए अन्य राज्यों को इस बहुउपयोगी सब्जी की आपूर्ति रोकने के पश्चिम बंगाल के फैसले से ओडिशा और झारखंड में इसकी कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे बंगाल अपने दो पड़ोसी राज्यों की नजरों में खलनायक बन गया है.
झारखंड, ओडिशा में गुस्सा
ओडिशा में यह प्रतिबंध राजनीतिक रूप से गरमागरम मुद्दा बन गया है. झारखंड में इसने पश्चिम बंगाल के खिलाफ लोगों के विरोध को हवा दे दी है. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले की सीमा से लगे झारखंड के गांवों के नाराज निवासियों ने शुक्रवार को कई घंटों तक अन्य सब्जियां ले जा रहे ट्रकों को अपने राज्य में प्रवेश करने से रोक दिया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जब तक आलू की आपूर्ति बहाल नहीं हो जाती, बंगाल से किसी भी सब्जी को सीमा पार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
अन्य सब्जियां रोक दी गईं
टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, बैंगन और अन्य मौसमी सब्जियों से लदे लगभग 10 मिनी ट्रकों को पश्चिम बंगाल की सीमा पार करने से रोक दिया गया. यह विरोध-प्रदर्शन तब शुरू हुआ, जब पश्चिम बंगाल पुलिस ने कथित तौर पर आलू से भरे बैग जब्त कर लिए, जिन्हें झारखंड के कुछ निवासी पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती बाजारों से खरीदकर घर ले जा रहे थे. एक प्रदर्शनकारी ने मीडिया को बताया कि पिछले महीने के अंत में प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से खुदरा बाजारों में आलू की कीमत 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है, जिसके कारण झारखंड के गालूडीह, दुमकाकोचा, नरसिंहपुर और सीमा से लगे अन्य गांवों के निवासी पश्चिम बंगाल के नजदीकी बाजारों से आलू खरीद रहे हैं.
पुलिस द्वारा आलू जब्त
पश्चिम बंगाल पुलिस ने शुक्रवार शाम को बंदवान चेकपोस्ट पर कथित तौर पर आलू जब्त करना शुरू कर दिया. पश्चिम बंगाल के सानी गांव के ग्रामीणों ने जवाबी नाकाबंदी कर दी और झारखंड से आने वाले वाहनों को अपने इलाके में प्रवेश करने से रोक दिया. दोनों राज्यों की पुलिस के हस्तक्षेप के बाद नाकाबंदी हटा ली गई. लेकिन जब तक स्थानीय बाजारों में कीमतें कम नहीं हो जातीं, तब तक भारत में सबसे अधिक खपत वाला गैर-अनाज प्रधान भोजन झारखंड और पश्चिम बंगाल के बीच विवाद का विषय बना रहेगा.
ओडिशा का बंगाल पर गुस्सा
आलू संकट पर विपक्ष की आलोचना का सामना करने के बाद ओडिशा सरकार ने यहां तक दावा किया कि यह प्रतिबंध पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा रची गई साजिश का हिस्सा है. ओडिशा के खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता कल्याण मंत्री कृष्ण चंद्र पात्रा ने तृणमूल कांग्रेस सरकार पर राज्य की भाजपा नीत सरकार की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए कृत्रिम कमी पैदा करने का आरोप लगाया. पात्रा ने गुरुवार को पीटीआई से कहा कि ओडिशा सरकार को बदनाम करने के लिए कृत्रिम कमी पैदा की गई. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) ने हाल ही में ओडिशा को आलू की आपूर्ति रोक दी. लेकिन शिपमेंट फिर से शुरू करने पर सहमत नहीं हुईं. मुझे समझ में नहीं आता कि वे (टीएमसी सरकार) ऐसा क्यों कर रही है.
बंगाल का जवाब
पश्चिम बंगाल के कृषि विपणन मंत्री बेचाराम मन्ना ने पलटवार करते हुए द फेडरल से कहा कि ओडिशा के मंत्री को यह जान लेना चाहिए कि यह मोदी सरकार ही है, जो केंद्र प्रायोजित कल्याणकारी योजनाओं के लिए धनराशि रोककर ममता बनर्जी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने आगे आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने नवंबर में निर्यात प्रतिबंध का उल्लंघन करते हुए बांग्लादेश को आलू की आपूर्ति करने में पश्चिम बंगाल के कुछ व्यापारियों की मदद की थी और राज्य सरकार को अंधेरे में रखा था. मन्ना ने कहा कि हमारी पहली प्राथमिकता स्थानीय मांग को पूरा करना है. दुर्भाग्य से, इस साल चक्रवात दाना के प्रभाव के कारण उत्पादन कम रह. इस साल हमारा उत्पादन 58.84 लाख टन है, जो 2023 के उत्पादन से 4.5 लाख टन कम है."
बंगाल की आलू की जरूरतें
वर्तमान में राज्य के पास 6.2 लाख टन का स्टॉक है, जो केवल 40-45 दिनों की दैनिक खपत की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, तब तक नई फसल खेतों से बाजार में पहुंचने की उम्मीद है. पश्चिम बंगाल में आलू की रोजाना की जरूरत करीब 18,000 टन है. अकेले कोलकाता में करीब 5,000 टन आलू की खपत होती है. दिसंबर में जब बाजार में हरी सब्जियां खूब आती हैं तो खपत घटकर 15,000 टन रह जाती है. मंत्री ने कहा कि अगर मौजूदा स्टॉक को बनाए नहीं रखा गया तो राज्य में कीमतें आसमान छू जाएंगी.
व्यापारी सरकार से असहमत
फिलहाल कोलकाता में एक किलोग्राम आलू का खुदरा मूल्य 35-40 रुपये है. हालांकि, आलू व्यापारी राज्य सरकार के इस कदम को एक झटके में लिया गया कदम मानते हैं. प्रगतिशील आलू व्यापारी संघ के सचिव लालू मुखर्जी कहते हैं कि हमें समझ में नहीं आता कि राज्य सरकार इतनी आशंकित क्यों है. हम आसानी से 2 से 2.5 लाख टन आलू दूसरे राज्यों को भेज सकते हैं. करीब 4 लाख टन का स्टॉक राज्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा. लेकिन हम राज्य सरकार को अपना दृष्टिकोण समझाने में विफल रहे हैं.
आलू, गरम आलू
स्पष्ट है कि राज्य सरकार आलू की राजनीतिक ताकत को अच्छी तरह जानते हुए कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. आलू, प्याज और टमाटर की अस्थिर कीमतें अक्सर भारत में खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा देती हैं. उत्तर प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल देश का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है, जिसकी भारत के कुल उत्पादन में हिस्सेदारी 23.51 प्रतिशत है.