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RSS के एकीकृत हिंदू रुख को बंगाल में झटका! BJP ने राज्य में किया खेला
CAA की कहानी अब प्रभावी नहीं रही. बंगाल भाजपा ने चुनावी लाभ के लिए संघ परिवार के रुख के खिलाफ जाकर मतुआ दलित रीति-रिवाजों को संहिताबद्ध करने का वादा किया है.
Matua Dalit community: आरएसएस की भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कवायद को पश्चिम बंगाल में झटका लगा है. क्योंकि, राज्य एक प्रभावशाली दलित समुदाय 'मटुआ' ने अपने सामाजिक-धार्मिक रीतियों को संहिताबद्ध करने का निर्णय लिया है. क्योंकि वे स्पष्ट रूप से हिंदू धर्म से अलग दिखते हैं. उनकी यह कोशिश अपने धार्मिक पहचान को स्थापित करने की पहली महत्वपूर्ण कोशिश मानी जा रही है. जो संघ परिवार के व्यापक हिंदू समुदाय बनाने के प्रयास से अलग है.
मटुआ एक एकेश्वरवादी संप्रदाय है. जो 19वीं सदी के मध्य में बंगाल विभाजन से पूर्व हरिचंद ठाकुर द्वारा शुरू किए गए हिंदू सुधार आंदोलन से उभरा था. इस अनुसूचित जाति समुदाय ने हिंदू-ब्राह्मण प्रभुत्व से खुद को मुक्त करने की इच्छा जताई थी.
रीतियां अलग
मटुआ आमतौर पर मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते और एक भगवान की अवधारणा को बढ़ावा देते हैं. उनके सामाजिक-धार्मिक संस्कार भी वेदिक हिंदू रीतियों से कई तरीके से अलग हैं. उदाहरण के लिए मटुआ विवाह समारोह में 'कन्यादान' का रिवाज नहीं होता. जबकि हिंदू विवाह में दुल्हन के पिता उसे दूल्हे के पास भेजते हैं. हिंदू रिवाज 'पिंड दान' (मृतकों को भोजन और प्रार्थनाओं द्वारा सम्मानित करना), जो श्राद्ध समारोह का अभिन्न हिस्सा है, मटुआ द्वारा नहीं किया जाता है. ये संस्कार मटुआ गोसाई या साधु करते हैं, न कि हिंदू ब्राह्मण और वे संस्कृत मंत्रों का उपयोग नहीं करते. ऐसी ही कई भिन्नताएं हैं.
मटुआ रीतियों का वर्गीकरण
हाल ही में एक चिंतन शिविर में ऑल इंडिया मटुआ महासंघ के एक धड़े ने अपने विशिष्ट रीतियों को वर्गीकृत करने का निर्णय लिया, ताकि वे कानूनी सुरक्षा प्राप्त कर सकें. केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर और महासंघ के नेता ने कहा कि हम मटुआ समाज की सभी रीतियों और संस्कारों को गोसाई और महासंघ के पदाधिकारियों के बीच विचार-विमर्श के बाद संहिताबद्ध करेंगे. इसके बाद हम सुप्रीम कोर्ट में कानूनी मान्यता के लिए आवेदन करेंगे, ताकि कोई भी हमें हमारी रीतियां पालन करने से रोक न सके. यह विकास महत्वपूर्ण है. क्योंकि एक वरिष्ठ बीजेपी नेता मटुआ की पहचान को प्रमाणित करने की कोशिश कर रहे हैं. जो अंततः यह धारणा बदल सकता है कि मटुआ एक हिंदू संप्रदाय है. हालांकि, मटुआ धर्म के शुरुआती लेखकों ने इसे हिंदू धर्म से स्पष्ट रूप से अलग किया था. फिर भी, ठाकुर ने यह स्पष्ट किया कि मटुआ बड़े हिंदू समुदाय का हिस्सा हैं और संहिताकरण से यह नहीं बदलेगा.
भ्रामक कदम
टीएमसी के मटुआ नेता और सांसद ममता बाला ठाकुर, जो शांतनु ठाकुर की रिश्तेदार भी हैं, ने कहा कि शांतनु लोगों को भटका रहे हैं. समुदाय ने अपनी रीतियों और पारंपरिक प्रथाओं को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता महसूस की ताकि हिंदू प्रथाओं के साथ ओवरलैप और उल्लंघन को रोका जा सके. बता दें कि ममता बाला ठाकुर महासंघ के दूसरे धड़े की प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि यह अच्छा है अगर वे ऐसा करते हैं. यह मटुआ को एक स्वतंत्र धर्म के रूप में पहचानने की आवश्यकता है. लेकिन उन्होंने शांतनु और बीजेपी के इरादों पर सवाल भी उठाया. यह बीजेपी का एक निरंतर प्रयास है, ताकि वह मटुआ समुदाय को आकर्षित कर सके. जो पार्टी को 2019 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत बिना शर्त नागरिकता नहीं दिए जाने पर 'त्याग चुका' था.
बीजेपी का वोट बैंक
मटुआ मुख्य रूप से पूर्व पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल में प्रवासित हुए थे. अब तक बीजेपी के वोट बैंक माने जाते थे. लेकिन हाल ही में इस समुदाय में पार्टी का समर्थन काफी कम हुआ हैय. पिछले लोकसभा चुनावों में टीएमसी ने मटुआ-प्रभुत्व वाले 12 निर्वाचन क्षेत्रों में से आठ पर विजय प्राप्त की. राजनीतिक टिप्पणीकार और कॉमनवेल्थ फेलो देबाशीष चक्रवर्ती ने महसूस किया कि बीजेपी इस कदम के साथ मटुआ समुदाय को आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि चूंकि CAA कार्ड अब प्रभावी नहीं है, बीजेपी अब मटुआ पहचान कार्ड खेलने की कोशिश कर रही है, यह वादा करते हुए कि उनकी रीतियों को संहिताबद्ध किया जाएगा. जो मूल रूप से इसके वैचारिक स्रोत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा बढ़ावा दिए गए बड़े हिंदू दृष्टिकोण के खिलाफ है.
चुनावी अवसरवाद
यह पहली बार नहीं है. जब बीजेपी ने चुनावी अवसरवाद के लिए RSS के एकीकृत हिंदू पहचान रुख को दरकिनार किया है. पिछले साल नवंबर में झारखंड चुनावों के दौरान, पार्टी ने आधिकारिक जनगणना में सरना धार्मिक संहिता को शामिल करने पर विचार करने का वादा किया था. आदिवासी, जो मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम से हैं, मांग कर रहे हैं कि उनके स्वदेशी धर्म "सरना" को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता दी जाए, जो संघ परिवार के इस कथन को चुनौती देता है कि उनका विश्वास हिंदू धर्म के साथ मेल खाता है. झारखंड में आदिवासी वोटों को जीतने के लिए बीजेपी ने अपनी वैचारिक धारा से समझौता किया. इसी प्रकार, ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के सबसे बड़े दलित नेता द्वारा मटुआ समुदाय को उनकी रीतियां और परंपराएँ संहिताबद्ध करने की अनुमति देने का वादा करने में एक वैचारिक समझौता हुआ है.