नाराज़ क्यों हैं महाराष्ट्र के किसान ? क्या उनके विरोध से कोई फ़र्क़ पड़ेगा?
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नाराज़ क्यों हैं महाराष्ट्र के किसान ? क्या उनके विरोध से कोई फ़र्क़ पड़ेगा?

महा-एल्गार मोर्चा को समर्थन मिलने के साथ ही प्रदर्शनकारियों ने राज्य की अपर्याप्त सहायता योजना की आलोचना के बीच पूर्ण ऋण मुक्ति, एमएसपी आश्वासन, फसल नुकसान मुआवजे की मांग की.


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Maharashtra Farmers Agitation : महाराष्ट्र में किसानों की नाराज़गी उबाल पर है। अमरावती से निकला ‘महाऐल्गार मोर्चा’ अब मुंबई पहुँच गया है। अपने साथ न केवल हजारों किसानों की उम्मीदें लेकर, बल्कि उस पीड़ा को भी जो मौसम और व्यवस्था दोनों ने दी है।

इस आंदोलन का नेतृत्व पूर्व मंत्री और प्रहार जनशक्ति पार्टी (PJP) के नेता बच्छू कडू कर रहे हैं। गुरुवार शाम 7 बजे उनकी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाक़ात तय है, जिसमें वे किसानों के लिए पूरा कर्ज़ माफ़ करने, फसल नुकसान के मुआवज़े और एमएसपी की गारंटी जैसी 22 माँगों को सामने रखेंगे।

कडू ने कहा, “अब या तो सरकार समाधान दे, या किसान सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।” बैठक के बाद आंदोलन के अगले चरण पर निर्णय लिया जाएगा।


अमरावती से नागपुर तक खेतों से निकला आंदोलन

यह ट्रैक्टर मार्च सोमवार को चांदूरबाज़ार (अमरावती) से शुरू हुआ, वर्धा होते हुए मंगलवार शाम नागपुर पहुँचा। इस यात्रा में किसानों के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट), किसान सभा और राजू शेट्टी जैसे नेता भी जुड़े।

इनकी मुख्य माँगें :

संपूर्ण कर्ज़ माफी,

असमय बारिश से हुए नुकसान का त्वरित मुआवज़ा,

एमएसपी पर फसलों की खरीद की गारंटी,

और विकलांग किसानों के लिए ₹6,000 मासिक भत्ता।


मोदी जी बताएं किसानों की आय दोगुनी कहाँ हुई?

नागपुर में पत्रकारों से बातचीत में बच्छू कडू ने कहा कि किसान आज भी कर्ज़ में डूबे हैं। सोयाबीन का एमएसपी ₹5,328 है, लेकिन किसानों को ₹3,500 भी नहीं मिल रहे। प्रधानमंत्री ने आय दोगुनी करने का वादा किया था, अब जवाब दें।

उन्होंने यह भी कहा कि अगर राज्य सरकार के पास संसाधन नहीं हैं, तो केंद्र को मदद करनी चाहिए।


सरकार अपने ही वादे भूल गई : विजय जावंधिया

किसान नेता विजय जावंधिया ने कहा कि आंदोलन की हर माँग वाजिब है। बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में ये वादे खुद किए थे। अब जब किसान वही मांग रहे हैं, तो सरकार चुप क्यों है? जावंधिया के अनुसार, मौसम की मार और बाज़ार के अन्याय ने किसानों की कमर तोड़ दी है। सरकार का राहत पैकेज “कागज़ी” है, ज़मीन पर कुछ नहीं पहुँचा।


68 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद, किसान बोले दीवाली अंधेरे में बीती

सितंबर-अक्टूबर की असमय बारिश ने महाराष्ट्र के 29 ज़िलों की करीब 68 लाख हेक्टेयर फसलें चौपट कर दीं। लातूर के रेनापुर तहसील के सुरेश चव्हाण कहते हैं कि पाँच एकड़ में सोयाबीन लगाया था। कटाई के बाद सब भीग गया। सरकार ने मदद का एलान किया, पर कुछ नहीं मिला। हमारी दीवाली अंधेरे में बीती। कुछ किसानों ने बताया कि उन्होंने सोयाबीन कटाई के लिए मज़दूरों को ₹5,500 से ₹6,000 प्रति एकड़ दिए, लेकिन बारिश ने सब मिटा दिया।


सरकार पर विपक्ष का हमला

मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा है कि किसानों की समस्याओं पर बातचीत से हल निकलेगा। हम कर्ज़ माफी के खिलाफ नहीं हैं, पर प्राथमिकता उन किसानों को मदद देना है जो बारिश से प्रभावित हुए हैं। लेकिन विपक्ष ने सरकार को घेरा है।

कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने आरोप लगाया कि सरकार ने ₹31,000 करोड़ के राहत पैकेज का वादा किया, लेकिन अब तक सिर्फ ₹1,800 करोड़ मंज़ूर हुए। ₹10,000 प्रति हेक्टेयर की मदद मज़ाक है।


सड़कें खाली, लेकिन सवाल बाकी

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को प्रदर्शनकारियों को नागपुर-हैदराबाद राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-44) खाली करने का निर्देश दिया था। गुरुवार को पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि रास्ते अब साफ़ हैं और यातायात सामान्य हो गया है। हालाँकि कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर ‘रेल रोको’ जैसे आंदोलन फिर हुए, तो प्रशासन पहले से कदम उठाए।


अब नज़रें मुंबई की बैठक पर

कडू और फडणवीस की यह मुलाकात अब राज्य की राजनीति और किसानों के आंदोलन दोनों के भविष्य का संकेत मानी जा रही है। अगर सरकार समाधान निकालने में नाकाम रही, तो “महाऐल्गार मोर्चा” महाराष्ट्र में एक नए किसान आंदोलन की चिंगारी बन सकता है।


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