यूपी में आजमगढ़ से गाजीपुर तक बीजेपी क्यों नहीं बना पाती पकड़?
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यूपी में आजमगढ़ से गाजीपुर तक बीजेपी क्यों नहीं बना पाती पकड़?

पूर्वांचल के आज़मगढ़, मऊ, बलिया और गाज़ीपुर में क्यों नहीं जम पाती बीजेपी की पकड़? जानिए किन कारणों से यहां हर चुनाव में होता है सियासी उलटफेर।


साल 2027 में यूपी विधानसभा का चुनाव होना है। लेकिन उससे पहले सियासत गर्माने लगी है। हाल ही में सपा और बीजेपी के कद्दावर नेता और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के बीच डीएनए को लेकर विवाद हुआ। हालांकि अब उसमें नरम बयानों का मरहम लगा सियासी गर्मी को शांत करने की कोशिश की गई है। हालांकि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खास बयान एक्स पर दिया है और कहा कि 2027 में बीजेपी पूरी तरह साफ हो जाएगी। उन्होंने क्या कुछ कहा उसका जिक्र हम करेंगे। लेकिन मूल मुद्दा ये है कि जो बीजेपी यूपी के सभी जनपदों में कमोबेश अच्छा प्रदर्शन करती है वो प्रदर्शन आजमगढ़, मऊ, बलिया और गाजीपुर में नजर नहीं आता है। क्या इन जिलों में विकास का मुद्दा परवान नहीं चढ़ता। क्या जातिवादी राजनीति की वजह से नतीजे कुछ और होते हैं। क्या गैर बीजेपी वोटों का ध्रुवीकरण हो जाता है। इस मुद्दे को आगे बढ़ाने से पहले अखिलेश यादव ने क्या कुछ कहा।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश में 1.93 लाख शिक्षकों की भर्ती के लिए हाल ही में जारी विज्ञापन को एक राजनीतिक 'जुमला' (नौटंकी) बताया, जिसके परिणामस्वरूप 2027 के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को भारी चुनावी झटका लगेगा।X पर एक विस्तृत पोस्ट में, यादव ने "राजनीतिक प्रतिक्रिया का गणित" प्रस्तुत किया, जो लाखों नौकरी चाहने वालों और उनके परिवारों की "निराशा" से उपजा होगा।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "अगर हम प्रति पद कम से कम 75 उम्मीदवारों को मानते हैं, तो यह लगभग 1.45 करोड़ प्रभावित उम्मीदवारों के बराबर होगा। अगर हम प्रति उम्मीदवार सिर्फ दो परिवार के सदस्यों को शामिल करते हैं, तो प्रभावित मतदाताओं की संख्या 4.34 करोड़ से अधिक हो जाती है।"

अखिलेश यादव की इस गणित के हिसाब से 2027 की लड़ाई उनके पक्ष में नजर आ रही है क्योंकि 2024 के आम चुनाव में उनका पीडीए राग कमाल कर चुका है। हालांकि जानकार कहते हैं कि चुनावी लड़ाई सिर्फ अंकगणित तक सीमित नहीं रहती है। इन सबके बीच यूपी के इन चार जिलों आजमगढ़, मऊ, बलिया और गाजीपुर के मिजाज को समझना जरूरी हो जाता है। आजमगढ़ जनपद में विधानसभा की कुल 6 सीट बीजेपी को एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली। मऊ में विधानसभा की चार सीट, बीजेपी को महज एक सीट पर विजय, बलिया में कुल सात सीट, बीजेपी दो सीट जीतने में कामयाब हुई। गाजीपुर में कुल सात सीट लेकिन बीजेपी को सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। मोटे तौर पर देखें तो इन चारों जिलों में कुल 25 सीटें हैं लेकिन भगवा दल को महज तीन सीटों पर जीत मिली। अब इसके पीछे की वजह क्या है।

मऊ में बीजेपी के प्रदर्शन पर स्थानीय पत्रकार संजय मिश्रा ने द फेडरल देश को बताया कि आप यह नहीं कह सकते कि बीजेपी को जीत नहीं मिलती। बीजेपी के विधायक जीतते रहे हैं। लेकिन यहां का सामाजिक समीकरण और धार्मिक ताना बाना उसके अभियान को कड़ी चुनौती पेश करता है। 90 के दशक में मंडल कमीशन के जोर के बाद यहां पर लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा की थी। हालांकि जो भी उम्मीदवार यहां के विधानसभाओं जैसे मधुबन, घोसी, मऊ सदर या मुहम्मदाबाद से जीतते रहे हैं वो उनकी अपनी जीत हुआ करती थी। पार्टी को आप मुखौटे के तौर पर देख सकते हैं। खासतौर से मुख्तार अंसारी या उनके बेटे अब्बास अंसारी का चुनाव जीतना। यहां कि राजनीति में विरोधाभास को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि विकास तो चाहिए। चुनावी प्रचार तक यह मुद्दा हावी रहता है। लेकिन मतदान केंद्र तक पहुंचते पहुंचते विकास की धार कमजोर पड़ जाती है और जाति हावी हो जाता है।

आजमगढ़ के स्थानीय पत्रकार कुलदीप अस्थाना कहते हैं कि देश की आजादी से लेकर आज की तारीख में बदलाव सिर्फ इतना हुआ कि बीजेपी के झंडे के साथ घूमने लगे। सामान्य तौर पर इस इलाके में वापपंथ और कांग्रेस का बोलबाला रहा। लेकिन विचार से अधिर सियासी शख्सियतों का जोर था। धीरे धीरे जब वामपंथ और कांग्रेस का ज्वार कम हुआ तो उसकी जगह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने ली। एक तरह से लोग जाति आधारित उम्मीदवार का चयन करते रहे हैं। लेकिन अब थोड़ा बदलाव दिख रहा है। आजमगढ़ सदर सीट से बीजेपी उम्मीदवार का 80 हजार से अधिक मत पानी दूसरी तरफ की राजनीति की तरफ इशारा करता है। लेकिन अभी भी मतदाताओं का झुकाव सपा और बसपा की तरफ है। अगर आप पूर्वांचल एक्स्प्रसवे की बात करें तो लोग कहते हैं कि निश्चित तौर पर कुछ बड़े बदलाव हुए हैं। लेकिन उस कल्पना के जनक योगी आदित्यनाथ नहीं थे। अगर आप यहां की सियासत को देखें तो जाति का तत्व प्रभावी है जिसकी काट बीजेपी अभी नहीं निकाल पाई है।

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