
क्या तेजप्रताप का निष्कासन लालू का सियासी फैसला है? चुनाव पर कितना असर?
लालू प्रसाद यादव की राजनीति को करीब से जानने-समझने वालों का मानना है कि बड़े बेटे को पार्टी से निकाल कर लालू ने एक ही दांव से बीजेपी को निरस्त्र कर दिया है।
राजनीति में यह आम धारणा है कि कोई बड़ा और घाघ नेता कोई भी बड़ा फैसला बगैर राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन किए नहीं लेता। इसीलिए माना जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव जैसे धुरंधर नेता ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से निकालने और परिवार से बेदखल करने की जो सार्वजनिक घोषणा की, वह ऐसे ही नहीं की होगी। जरूर इसमें राजनीतिक लाभ-हानि का गणित सोचा गया होगा।
लेकिन वो राजनीतिक लाभ-हानि का गणित क्या हो सकता है? तेज प्रताप यादव ने जो तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की, वो सबने देखी। उन्होंने उस पोस्ट में जो लिखा, वो भी सब देख चुके हैं भले ही बवाल मचने के बाद अब वो पोस्ट हटा दिया गया है। लेकिन ऐसे समय में जबकि बिहार में विधानसभा चुनाव को अब कुछ ही महीने बाकी रह गए हैं, क्या लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे की इस हरकत से परिवार और पार्टी को डैमेज नहीं पहुंचा होगा?
इस पर 'द फेडरल देश' से बातचीत करते हुए राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ शर्मा कहते हैं, "देखिए जो घटना हो चुकी है, वो हो चुकी है। उसे कोई नहीं बदल सकता लेकिन अब इस पर सोचा जा रहा होगा कि इसका राजनीतिक लाभ कैसे लिया जाए।"
लालू यादव का चुनावी दांव?
अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए सिद्धार्थ शर्मा कहते हैं, "तेज प्रताप वाले प्रकरण में उनके पिता और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके छोटे भाई और बिहार विधानसभा में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव का जो रिस्पॉन्स रहा, वो राजनीतिक लाभ लेने की ही कोशिश नजर आती है। लालू ने तुरंत तेज प्रताप को पार्टी से निकालने का ट्वीट करके भाजपा के परिवारवाद के आरोपों की हवा निकालने की कोशिश की।"
वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा नहीं मानते कि इस प्रकरण से लालू प्रसाद यादव को कोई फायदा होने वाला। 'द फेडरल देश' से बातचीत में उन्होंने कहा, "तेज प्रताप इतना इनोसेंट भी नहीं है। हमने उसे बचपन से देखा है। तेज प्रताप को ये मामला खुद ही डिफेंड करना है। लेकिन इससे लालू को कोई चुनावी फायदा नही होने वाला। बल्कि ये भी हो सकता है कि इस प्रकरण के बाद तेज प्रताप हसनपुर से निर्दलीय लड़े और आक्रामक हो जाए।"
बीजेपी का चुनावी अस्त्र छीन लिया?
लेकिन अपनी पॉलिटिकल थ्योरी को समझाते हुए राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ शर्मा ने 'द फेडरल देश' से कहा, "बिहार में भाजपा सत्ता में है। लेकिन चुनावी लिहाज से देखें तो बिहार की नंबर वन पार्टी आरजेडी है जिसे 22-23 फीसदी वोट मिलता है जबकि भाजपा के लिए 20 फीसदी वोट तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। भाजपा आरजेडी को सिर्फ परिवारवाद के आरोपों पर ही घेर सकती थी लेकिन लालू प्रसाद यादव के एक फैसले ने भाजपा का वो चुनावी हथियार भी छीन लिया। अब भाजपा लालू पर परिवारवाद का आरोप नहीं लगा सकती क्योंकि अब लालू के पास ये कहने के लिए है कि हमारे परिवार का कोई सदस्य गलत करता है तो हम उसे कड़ी सज़ा भी देते हैं।"
आरजेडी पर कितना असर?
चूंकि ये मामला आरजेडी के संस्थापक और पार्टी के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार के भीतर का मामला है, इसलिए लालू के सामने दो तरह की स्थितियां थीं। वो एक पिता की भूमिका में भी हैं और पार्टी अध्यक्ष की भूमिका में भी। लेकिन ऐसा लगता है कि बड़े बेटे को पार्टी से छह साल के लिए निकालने का फैसला उन्होंने पार्टी हित को ध्यान में रखते हुए लिया।
ये मामला जिस तरह से सुर्खियों में आया है, उससे आरजेडी पर कितना असर पड़ सकता है? 'द फेडरल देश' के इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं, "देखिए, चुनाव एक अलग टेंपरामेंट का मामला होता है। आरजेडी पर इसका असर तभी पड़ेगा जब तेज प्रताप यादव किसी विरोधी पार्टी में चले जाएं या बीजेपी में चले जाएं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि तेज प्रताप ऐसा कोई कदम उठा सकते हैं। यह भी हो सकता है कि वह चुनाव ही न लड़ें। तेज प्रताप खुद कानूनी जाल में फंस चुके हैं। अभी चुनौती ये है कि वो इससे बाहर कैसे निकलेंगे या लालू प्रसाद यादव उन्हें इस संकट से कैसे बाहर निकालेंगे।"
तेज प्रताप यादव प्रकरण के चुनावी असर के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा ने 'द फेडरल देश' से कहा, "तेज प्रताप वाले मामले का बिहार के चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा और न ही आरजेडी की सेहत पर ही कोई फर्क पड़ेगा। आरजेडी की सेहत पर तो तब भी कोई असर नहीं पड़ा था जब उसके सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जेल में थे।"
क्या यह सियासी स्टंट है?
तो क्या तेज प्रताप यादव के खिलाफ की गई कार्रवाई पॉलिटिकल स्टंट हो सकती है? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं,"लालू प्रसाद यादव ने तेज प्रताप यादव को परिवार से बेदखल करने की जो बात कही है, वो कानूनी तौर पर तो नहीं कही। ये भी नहीं कहा कि उन्हें प्रॉपर्टी से भी बेदखल कर रहे हैं। विधानसभा में पार्टी के नेता तेजस्वी यादव ने भी अभी तक स्पीकर को चिट्ठी नहीं लिखी कि तेज प्रताप यादव अब हमारी पार्टी के विधायक नहीं रहे। तो इसे स्टंट ही माना जाएगा और बहुत मुमकिन है कि बिहार चुनाव से पहले ये मामला ही खत्म हो जाए।"
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे लालू प्रसाद यादव की घोषणा को बेहद कड़ा और सख्त फैसला बता रहे हैं। 'द फेडरल देश' से उन्होंने कहा, "लालू यादव का यह आज तक का सबसे बड़ा फैसला है। अपने ही बड़े बेटे को बाहर का रास्ता दिखा दिया। हालांकि मुझे लगता है कि तेज प्रताप ने जो 12 साल से रिलेशनशिप में होने की बात सार्वजनिक तौर पर कही, उसने लालू प्रसाद यादव को बहुत असहज किया होगा। इसीलिए बेटे को पार्टी से निकालना उनके लिए जरूरी हो गया होगा।"
बहरहाल, तेज प्रताप यादव आरजेडी के विधायक जरूर हैं, लेकिन वो इतने हैवीवेट नेता नहीं हैं और न ही ऐसे जनाधार वाले नेता हैं कि आरजेडी के लिए आगे परेशानी पैदा कर सकें। लेकिन उनको निष्कासित करके लालू यादव ने जरूर बड़ा दांव चला है, इसमें कोई शक नहीं है।