raj thakrey and udhhav thakrey
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राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने अलग-अलग मंचों से एक साथ काम करने की इच्छा जताई है

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक होने में क्या-क्या अड़चनें हैं?

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों के बयानों ने इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। लेकिन क्या वाकई ठाकरे ब्रदर्स कभी एक हो सकते हैं?


साल 2009 के अक्टूबर महीने की बात है। तब महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। उसमें कांग्रेस-एनसीपी की सरकार रिपीट हुई थी, लेकिन उस चुनाव नतीजों के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में आए थे राज ठाकरे। जिनकी नई-नवेली पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने पहले ही चुनाव में खलबली मचा दी थी।

राज ठाकरे की पार्टी के 13 उम्मीदवार उस विधानसभा चुनाव में जीत गए थे, जबकि 12 सीटों पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। उन्होंने अपने चाचा बाला साहेब ठाकरे की बनाई पार्टी शिवसेना के सत्ता में आने के अरमान चूर-चूर कर दिए थे।

"एक मारा लेकिन सॉलिड मारा"

राज ठाकरे को तब शिवसेना से अलग हुए बहुत ज्यादा समय भी नहीं हुआ था, लेकिन पहले ही विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के इस धमाकेदार प्रदर्शन से राज ठाकरे का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था।

उन्होंने चुनाव नतीजों के दिन एक प्रेस कॉ़न्फ्रेंस में एक फिल्मी डायलॉग कहा था, "एक मारा, लेकिन सॉलिड मारा कि नहीं?" उनका इशारा शिवसेना की तरफ था जिनकी सत्ता में वापसी की राह में राज ठाकरे की पार्टी सबसे बड़ा रोड़ा बन गई थी।

उस बात को आज लगभग सोलह साल हो गए हैं। राज ठाकरे को भी शिवसेना छोड़े हुए करीब दो दशक होने वाले हैं। बहुत समय बीत चुका है, लेकिन एक बार फिर समय का चक्र घूमा है। तब 'एक मारा लेकिन सॉलिड मारा' वाले उत्साह से लबरेज राज ठाकरे की पार्टी की राजनीतिक हैसियत लगभग मिट्टी में मिल चुकी है।

खुद राज ठाकरे अपना सियासी वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं क्योंकि चुनावी कामयाबियों के लिहाज से राज ठाकरे का खाता अब एकदम खाली है। वो बीते साल महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में अपने बेटे तक को नहीं जिता पाए थे। लेकिन चर्चा में रहने की कला राज ठाकरे को आती है।

राज ठाकरे का नया दांव

इसका सबूत है राज ठाकरे का चला एक नया दांव, जिसकी चर्चा इन दिनों महाराष्ट्र की सियासत में जोरों पर है। राज ठाकरे ने अपने चचेरे भाई और शिवसेना (UBT) के साथ मिलकर काम करने की इच्छा सार्वजनिक तौर पर जताई है।

सबसे दिलचस्प बात ये है कि राज ठाकरे के बयान पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और वो भी उसी दिन जिस दिन राज ठाकरे का इंटरव्यू सामने आया। हालांकि उद्धव ने उसमें शर्तें भी जोड़ी हैं।

राज ठाकरे ने क्या कहा था?

राज ठाकरे ने फिल्मकार और अपने मित्र महेश मांजरेकर को एक इंटरव्यू दिया। जिसमें उन्होंने उद्धव के साथ मिलकर काम करने के बारे में कहा, "किसी भी बड़ी बात के लिए, हमारे विवाद और झगड़े बहुत छोटे और मामूली हैं. महाराष्ट्र बहुत बड़ा है. इस महाराष्ट्र के अस्तित्व के लिए, मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए, ये विवाद और झगड़े बहुत महत्वहीन हैं. इस वजह से, मुझे नहीं लगता कि एक साथ आना और एक साथ रहना बहुत मुश्किल है."

राज ठाकरे ने कहा, "लेकिन, यह इच्छा का मामला है. यह केवल मेरी इच्छा का मामला नहीं है. हमें महाराष्ट्र की पूरी तस्वीर को देखना होगा. मुझे लगता है कि सभी पार्टियों के मराठी लोगों को एक साथ आकर एक पार्टी बनानी चाहिए."

उद्धव ठाकरे का जवाब

उद्धव ठाकरे ने भी राज ठाकरे के बयान पर प्रतिक्रिया देने में देरी नहीं की। उद्धव ने कहा, "मैं छोटे-मोटे झगड़ों को किनारे रखने को तैयार हूं. मैं सभी मराठी लोगों से महाराष्ट्र की भलाई के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं. लेकिन, एक तरफ उनका (बीजेपी का) समर्थन करना और बाद में समझौता करना और उनका विरोध करना, इससे काम नहीं चलेगा."

शनिवार 19 अप्रैल को कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एक कार्यक्रम में उद्धव ने कहा, "पहले ये तय कर लें कि आप महाराष्ट्र के रास्ते में आने वाले किसी भी व्यक्ति का स्वागत नहीं करेंगे और उनके जैसा व्यवहार नहीं करेंगे. मैंने मेरे स्तर पर मतभेदों को सुलझा लिया है, लेकिन पहले इस मामले पर निर्णय किया जाना चाहिए."

उद्धव ने कहा, "मराठी लोगों को यह तय करना चाहिए कि हिंदुत्व के हित में मेरे साथ रहना है या बीजेपी के साथ. हमें सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने शपथ लेनी चाहिए कि हम चोरों से नहीं मिलेंगे और जाने-अनजाने उन्हें बढ़ावा नहीं देंगे. इसके बाद हमें ख़ुशी जाहिर करनी चाहिए."

क्या राज-उद्धव साथ आएंगे?

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों के बयानों के सामने आने के बाद ये चर्चाएं होने लगीं कि क्या वास्तव में दोनों भाई फिर से साथ आ सकते हैं? क्या दोनों भाई कोई चुनावी गठबंधन कर सकते हैं?

शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत ने तो फिलहाल गठबंधन की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया है। राउत ने कहा, "कोई गठबंधन नहीं है, केवल इमोशनल बातचीत चल रही है।"

लेकिन क्या ये वाकई सिर्फ इमोशनल बातचीत है, जैसी बताई जा रही है, या इसके पीछे कुछ और भी खेल है? यह समझने के लिए 'द फेडरल देश' ने मुंबई में स्थित वरिष्ठ पत्रकार राकेश त्रिवेदी से बात की। त्रिवेदी ने कहा, "दरअसल उद्धव के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताकर राज ठाकरे बीजेपी के सामने अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ाने की फिराक में हैं। वो इस जुगत में होंगे कि खुद के पास उद्धव के साथ मिलने का विकल्प होने की बात कहकर वो बीजेपी से आने वाले बीएमसी चुनाव के लिए कुछ सौदेबाजी कर सकें।"

क्या ये राज ठाकरे का शिगूफा है?

तो क्या उद्धव के साथ काम करने की ख्वाहिश जताकर राज ठाकरे ने सिर्फ एक शिगूफा छोड़ा है? क्या वाकई राज ठाकरे बीजेपी से किसी डील की प्रत्याशा में हैं? और क्या उद्धव ठाकरे को भी इसका इल्म है? इसका जवाब भी उद्धव ठाकरे के राज ठाकरे के बयान पर दी गई प्रतिक्रिया में छिपा है।

उद्धव ने राज ठाकरे का नाम लिए बगैर कहा, "एक तरफ उनका (बीजेपी का) समर्थन करना और बाद में समझौता करना और उनका विरोधकरना, इससे काम नहीं चलेगा।"

पत्रकार राकेश त्रिवेदी कहते हैं,"दरअसल राज ठाकरे ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। उन्होंने मराठी हित के नाम पर उद्धव के साथ मिलकर काम करने की इच्छा इसलिए जताई ताकि उद्धव को अपने जाल में फांस सकें। अगर उद्धव का सीधा जवाब ना होता तो राज ठाकरे उसे भी प्रचारित करते कि उद्धव के लिए मराठी हित से ज्यादा निजी हित अहम हैं। लेकिन उद्धव ने सशर्त प्रतिक्रिया के जरिये फिलहाल वो मंसूबे कामयाब नहीं होने दिए।"

राज ठाकरे का गेम प्लान क्या है?

अब सवाल ये आता है कि राज ठाकरे करना क्या चाहते हैं? उनका गेम प्लान क्या है? और वो क्या वाकई किसी और के बुने गए खेल का हिस्सा हैं? तो पहला सीधा जवाब ये है कि फिलहाल मुंबई में बीएमसी चुनाव पहला बड़ा और तात्कालिक मोर्चा है।

ऐसा माना जाता है कि बीएमसी में उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना (UBT) अभी भी बहुत ताकतवर है। बीजेपी के लिए भी यहां सबसे बड़ा चैलेंज कांग्रेस या शरद पवार वाली एनसीपी नहीं है, बल्कि उद्धव वाली शिवसेना ही है। इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए बीजेपी को भी शिंदे और राज ठाकरे की जरूरत पड़ेगी।

'बीजेपी से जख्म भी और दवा भी'

लेकिन समीकरण उतने सीधे भी नहीं हैं, जितने दिख रहे हैं। राज ठाकरे अपने सियासी वजूद की जंग लड़ रहे हैं और वो हर हाल में प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं। इसीलिए महाराष्ट्र में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य किए जाने देवेंद्र फडणवीस सरकार के फैसले के खिलाफ राज ठाकरे सबसे मुखर दिखे।

लेकिन राज ठाकरे तो कुछ महीनों पहले हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन दे चुके थे, ऐसे में राज ठाकरे फडणवीस सरकार के फैसले के खिलाफ क्यों खड़े हैं? 'द फेडरल देश' इसका रहस्य मुंबई स्थित वरिष्ठ पत्रकार राकेश त्रिवेदी से जानना चाहा।

त्रिवेदी ने कहा, "दरअसल पूरा गेम दिख रहा है कि राज ठाकरे को इतना बड़ा बनाओ कि वो राजनीतिक ताकत के तौर पर उद्धव ठाकरे के बराबर नजर आएं। महाराष्ट्र में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी की अनिवार्यता का विरोध भी ऐसा ही मसला है। अगर कल को फडणवीस सरकार इस फैसले को वापस ले लेती है, इसका क्रेडिट राज ठाकरे लूट लेंगे।"

राकेश त्रिवेदी आगे कहते हैं,"दरअसल सिचुएशन कुछ ऐसी है कि जख्म भी बीजेपी दे रही है और दवा भी बीजेपी ही दे रही है। ऐसे में बीएमसी चुनाव तक राज ठाकरे आगे और भी पॉलिटिकल स्टंट करते हुए दिख सकते हैं।"

राज-उद्धव का साथ आना नामुमकिन?

वैसे महाराष्ट्र की राजनीति में हाल के वर्षों में जिस तरह से फिल्मी अंदाज के रहस्य-रोमांच वाले एपिसोड देखने को मिले हैं, उसे देखते हुए तो आगे के बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना खतरे से खाली नहीं है।

हो सकता है कि अपने-अपने अस्तित्व बचाए रखने की चिंता में सभी धड़े एका की तरफ बढ़ जाएं। वो एका गठबंधन के तौर पर भी हो सकती है, लेकिन उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे, इन तीन हिस्सों में बंटी 'सेना' कभी एक हो पाएगी, इसको लेकर राजनीतिक हलकों में अभी भी बहुत सारे संशय हैं।

हां, लेकिन हाल के राजनीतिक अनुभवों के आधार पर आखिर में ये डिस्क्लेमर देना जरूरी लगता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में कभी भी, कुछ भी हो सकता है।

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