
क्या ख़त्म होगा सियासी वनवास ? बसपा की रैली से आगे की राजनीति के मिलेंगे संकेत
रैली में जुटी भीड़ से पार्टी को संजीवनी मिल सकती है तो वहीं मायावती के संबोधन से बीएसपी की आगे की राजनीति के संकेत मिलेंगे।पार्टी दलित+मुस्लिम समीकरण को ही आधार बनाएगी या सर्वजन हिताय के फार्मूले पर आगे बढ़ेगी, रैली से इस बात के स्पष्ट संकेत मिल जाएँगे।
यूपी की राजनीति में करिश्माई उदय करने वाली बहुजन समाज पार्टी( BSP) इस समय हाशिए पर है। पिछले लोकसभा चुनाव में दलित वोट को जोड़कर जिस तरह समाजवादी पार्टी ने पीडीए कॉम्बिनेशन (PDA ) बनाया है उसकी चुनौती बसपा को आगामी चुनाव में मिलना तय है। साथ ही बीजेपी भी केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं का सबसे ज़्यादा लाभ मिलने की बात कहकर दलित वोट को साधने को कोशिश करती रही है।ऐसे में 9 अक्टूबर को बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ में मायावती एक बार फिर शक्ति प्रदर्शन करेंगी।इसीलिए बसपा की इस रैली को और भी ख़ास माना जा रहा है।
रैली में 5 लाख लोगों को जुटाने का टारगेट
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ में दलित स्वाभिमान के नाम पर बनाए स्मारक कांशीराम स्थल पर जिस रैली का आह्वान किया है वो कई मायनों में ख़ास रहने वाला है।2012 में बसपा का जो तिलिस्म टूटा वो अब तक बिखरा हुआ है।इसे फिर से वापस पाने के लिए बीएसपी अध्यक्ष ने अब तक कोई कोशिश नहीं की है।इस बीच सपा और कांग्रेस ने बीएसपी को बीजेपी को ‘ बी टीम’ साबित करने की कोशिश की है।
पार्टी के लिए ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में 9 अक्टूबर को रैली कर मायावती भावी राजनीति का संकेत देंगी। कहा जा रहा है कि इस रैली में 5 लाख लोगों को जुटाने का टारगेट दिया गया है।ज़ाहिर है सियासी संकट के बीच होने वाली सबसे बड़ी रैली को ‘कमबैक’ का संकेत माना जा रहा है। माना जा रहा है कि यह रैली यूपी विधानसभा चुनावों से पहले दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा बनेगी।
बीएसपी ने इस रैली को घोषणा के बाद से पार्टी के सभी काम, अभियान को रोक कर सभी पदाधिकारियों को इसी रैली के लिए जुटने का निर्देश दिया है।पार्टी के एक पदाधिकारी के अनुसार पूरे प्रदेश में कार्यकर्ता घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं।लखनऊ सहित कई जिलों में पुराने स्टाइल में नीले रंग से दीवारें रंग कर लोगों को लखनऊ पहुँचने के लिए कहा गया है। कई जगह ‘9 अक्टूबर-लखनऊ चलो’ के बैनर और पोस्टर दिखाई पड़ रहे हैं। पार्टी ने रैली के लिए विशेष संपर्क नंबर जारी किए हैं।
लखनऊ में रैली के लिए लगाए गए होर्डिंग्स, बैनर
दलित+ मुस्लिम फार्मूला या सर्वजन हिताय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रैली में मायावती के संबोधन से बीएसपी की आगे की राजनीति के साफ़ संकेत मिल जाएँगे। बीएसपी क्या दलित+ मुस्लिम फार्मूले के साथ आगे बढ़ेगी या ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ के सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चलेगी मायावती इस बात का संदेश अपने वोटरों को देंगी।2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था और एकमात्र सीट उमाशंकर सिंह ने जीती थी।वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी सबसे ख़राब स्थिति में पहुँच गई।पार्टी का वोट प्रतिशत 19. 43 से घटकर 9.35 रह गया।साफ़ है कि दलित वोटों पर कभी अपना कॉपीराइट समझने वाली बीएसपी की पकड़ कमजोर हो गई और सपा के पीडीए के नारे पर दलित वर्ग ने भरोसा किया । मायावती को बीजेपी की ‘बी टीम ‘ कहे जाने के प्रचार से भी बीएसपी को निकालना होगा।रैली में मायावती का संबोधन इस लिहाज से भी अहम होगा।हाल ही में भतीजे आकाश आनंद को दी ज़िम्मेदारी पर भी मायावती स्थिति साफ़ कर सकती हैं।
पीडीए से चंद्रशेखर तक… हर ओर चुनौती
लोकसभा चुनाव में सपा ने 37 सीटें जीतकर दलित वोट पर नया दावा ठोंका जबकि आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर ने नगीना सीट पर जीत दर्ज की जिसे दलित राजनीति में एक नए चेहरे के उदय का माना गया।चंद्रशेखर की आक्रामक शैली और सपा-कांग्रेस की संविधान को बदलने के नैरेटिव ने पारंपरिक दलित मतदाताओं को प्रभावित किया जिससे बसपा का आधार कमजोर हुआ।मायावती इन मुद्दों पर क्या रूख अपनाती हैं या कितनी आक्रामक होती हैं इस बात से भी आगे की राजनीति के संकेत मिलेंगे।