
गुजरात में महिला नेतृत्व को नहीं मिल रही उड़ान, बीजेपी की नीति पर सवाल
भले ही भाजपा ने तीन महिला विधायकों को मंत्री बनाया हो, लेकिन प्रमुख विभाग अब भी पुरुषों के पास हैं। सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब तक महिलाओं को असली शक्ति और स्वतंत्र विभाग नहीं दिए जाते, तब तक यह "महिला सशक्तिकरण" केवल नाम मात्र का रहेगा।
गुजरात में हाल ही में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में कुल 26 मंत्रियों को शामिल किया गया, जिनमें तीन महिलाएं भी हैं। हालांकि, यह बदलाव महिलाओं को समान प्रतिनिधित्व देने में विफल रहा, क्योंकि सभी महिला नेताओं को केवल कनिष्ठ मंत्री (MoS) के पद ही दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाले नए मंत्रिमंडल में तीन महिला विधायक शामिल की गई हैं —
1. रिवाबा जडेजा (जामनगर उत्तर)
2. दर्शन वघेला (आसारवा, अहमदाबाद)
3. मनीषा वकील (वडोदरा शहर)
लेकिन इनमें से किसी को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं दिया गया। रिवाबा को प्राथमिक, माध्यमिक और वयस्क शिक्षा की राज्य मंत्री (MoS) बनाया गया। दर्शन वघेला को शहरी विकास और आवास विभाग का राज्य मंत्री (MoS) नियुक्त किया गया। मनीषा वकील को महिला एवं बाल विकास (स्वतंत्र प्रभार), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता की राज्य मंत्री (MoS) नियुक्त किया गया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने अब तक महिला नेताओं को कैबिनेट में लाने के मामले में बहुत सीमित दृष्टिकोण अपनाया है — आमतौर पर उन्हें महिला और बाल कल्याण विभाग तक ही सीमित रखा जाता है।
आनंदीबेन पटेल: एकमात्र अपवाद
राज्य में महिलाओं को स्वतंत्र और ताकतवर विभाग देने का अपवाद रहीं हैं आनंदीबेन पटेल, जो गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं। उन्होंने राजस्व और शहरी विकास जैसे बड़े मंत्रालयों को संभाला था। समाजशास्त्री इंदिरा हिरवे कहती हैं कि आनंदीबेन के अलावा न बीजेपी और न ही कांग्रेस ने किसी महिला नेता को राज्य की सत्ता की ऊंचाइयों तक पहुंचने का अवसर दिया।
रिवाबा जडेजा
35 वर्षीय रिवाबा जडेजा भारतीय क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी हैं। 2018 में उन्होंने करणी सेना की महिला शाखा की अध्यक्षता की और पद्मावत फिल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। 2019 में भाजपा में शामिल होने के बाद 2022 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बनीं। जामनगर और आसपास के क्षेत्रों में 'मातृशक्ति ट्रस्ट' के माध्यम से बालिका शिक्षा को बढ़ावा दे रही हैं। 2023 में चक्रवात बिपरजॉय और 2024–25 की बाढ़ राहत कार्यों में उनकी भूमिका की सराहना मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। रिवाबा कहती हैं कि मुझे शिक्षा का विभाग मिला है, जो मेरे सामाजिक कार्यों से जुड़ा हुआ है। मैं हमेशा काम को प्राथमिकता देती हूं, प्रचार को नहीं।
दर्शन वघेला
53 वर्षीय दर्शन वघेला, अहमदाबाद के आसारवा क्षेत्र से पहली बार विधायक बनी हैं। वे दलित समुदाय की वाल्मीकि जाति से आती हैं, जिन्हें आज भी सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। पूर्व स्कूल प्रिंसिपल और दो बार की अहमदाबाद नगर निगम की मेयर रहीं वघेला, सफाई कामदार संघ से जुड़ी रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक मनीषी जानी के अनुसार, वघेला का मंत्रिमंडल में शामिल होना न केवल उनके महिला होने के कारण महत्वपूर्ण है, बल्कि इसलिए भी कि वह सबसे वंचित वर्ग से आती हैं।
मनीषा वकील
50 वर्षीय मनीषा वकील, वडोदरा से तीन बार की विधायक हैं। शिक्षिका से नेता बनीं मनीषा को पहली बार 2012 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा में भेजा गया था। वे COVID-19 की दूसरी लहर, वडोदरा की बाढ़ और विश्वामित्री नदी की समस्या के दौरान सक्रिय रहीं। उनका पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, विशेष रूप से अमित शाह से करीबी संबंध माना जाता है। वकील कहती हैं कि भाजपा में महिला या पुरुष होने से फर्क नहीं पड़ता। जो काम नहीं करेगा, वो बाहर होगा। मैं वही कर रही हूं जो हर भाजपा कार्यकर्ता से अपेक्षित होता है।
महिला नेताओं की अनदेखी और असम्मानजनक विदाई
हालांकि, इन महिला नेताओं ने अच्छा प्रदर्शन किया, फिर भी भाजपा पर आरोप लगते रहे हैं कि पार्टी अपने प्रदर्शनकारी महिला नेताओं को अचानक हटा देती है। रंजनबेन भट्ट, जिन्होंने 2014 में पीएम मोदी के वडोदरा छोड़ने के बाद उपचुनाव जीता और 2019 में अमित शाह से भी ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की — उन्हें 2024 में हटा दिया गया। दर्शना जरदोश, 2009 से सूरत की सांसद रहीं और 2019 में देश की सबसे बड़ी जीतों में से एक दर्ज की — उन्हें भी 2024 में टिकट नहीं दिया गया।
अब भी पुरुषप्रधान राजनीति का बोलबाला
इंदिरा हिरवे कहती हैं कि गुजरात की राजनीति अब भी पुरुष प्रधान है। आनंदीबेन पटेल को भी अपनी सीटें पुरुष नेताओं के लिए छोड़नी पड़ी थीं। अधिकतर महिला नेता या तो राजनीतिक परिवार से आती हैं या किसी पुरुष नेता की जगह पर बिठाई जाती हैं — उनकी भूमिका अक्सर ‘टोकन’ जैसी होती है। यह देखना बाकी है कि क्या रिवाबा, वघेला और वकील भाजपा सरकार में अपनी स्वतंत्र पहचान बना पाती हैं या नहीं, वह जोड़ती हैं।