अपने ही अफसरों से लड़ रही है ‘सरकार’? क्या मजबूर हैं योगी के मंत्री ?
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मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शिकायत की है।

अपने ही अफसरों से लड़ रही है ‘सरकार’? क्या मजबूर हैं योगी के मंत्री ?

योगी सरकार में मंत्री अपने ही अफसरों से असहाय दिख रहे हैं। प्रशासनिक टकराव से सरकार भीतर ही भीतर संघर्षरत नजर आ रही है, हालात चिंताजनक हैं।


राजनीति में हमेशा सत्तारूढ दल विपक्ष से और विपक्ष सत्ता पक्ष से लड़ कर कदम आगे बढ़ाते हैं।मगर उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक नया ट्रेंड चल पड़ा है।सरकार के कैबिनेट मंत्री अपने ही विभाग के अधिकारियों से लड़ते नज़र आ रहे हैं।एक महीने के अंतराल में चार मंत्रियों ने अपने विभागीय अधिकारियों से परेशान होकर आवाज़ उठाई।मंत्रियों ने अफसरों पर बात न सुनने, कामकाज में नीतियों का पालन न करने और अपनी अनदेखी करने का आरोप लगा दिया।इससे ऐसा लग रहा है कि यूपी में मंत्री मजबूर हैं और उनके अफ़सर तक उनकी बात नहीं सुन रहे हैं।

यूपी में क्या सरकार के दो पहिए मंत्री और अफसर साथ चलकर सरकार को आगे बढ़ाने के बजाय आपस में उलझ गए हैं? यूपी सरकार के मंत्रियों की माने तो ऐसा ही है।एक के बाद एक मंत्री अपने ही विभाग के अधिकारियों पर बात न मानने, नियमों को ताक पर रखकर कामकाज करने का आरोप लगा रहे हैं।जून में ट्रांसफर सीजन में शुरू हुआ ये सिलसिला लगातार जारी है।जिसमें मंत्री अपने ही महकमे के अधिकारियों के साथ लड़ते नज़र आ रहे हैं।उनकी यह ‘मजबूरी’ मुख्यमंत्री तक भी पहुँच रही है।पिछले एक महीने के दौरान चार मंत्रियों ने अपने विभाग के अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुखर होकर शिकायत की है।उन्होंने अपने अधिकारियों पर बात न सुनने, नीतियों का पालन न करने का आरोप लगाया है।कुछ मंत्रियों ने तो विभागों में ट्रांसफर को लेकर ही अधिकारियों पर सवाल उठा दिया जो विभागों में भ्रष्टाचार और लेन देन की ओर सीधा इशारा कर रहा है।यानि भ्रष्टाचार के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की बात पर भी सवाल उठ रहे हैं।

औद्योगिक विकास मंत्री की मजबूरी: अफ़सर फाइल नहीं दिखा रहे

पिछले कुछ दिनों में अलग अलग मंत्रियों ने अपनी शिकायत खुलकर की है पर औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जो पत्र लिखा है उसमें कई गंभीर बातें हैं।अपने पत्र में उन्होंने अधिकारियों से माँगने पर भी फाइल (पत्रावली)नहीं देने का आरोप लगाया है।नंदी ने लिखा है कि फाइल मांगे जाने के बावजूद उनको फाइल नहीं दिखाई गई।यही नहीं नंदी ने ये भी आरोप लगाया है कि कई पत्रावलियां विभाग से गायब भी कर दी गयीं । मंत्री नंदी ने यह गंभीर आरोप भी लगाया कि अधिकारी फाइल्स डंप कर रहे हैं ताकि योजनाएं आगे न बढ़ सकें।अगर इन आरोपों पर गौर किया जाए तो यह एक ऐसा सनसनीखेज आरोप है जो ये बताने के लिए काफ़ी है कि विभागीय कामकाज में मंत्री की कोई भूमिका नहीं है।नंद गोपाल गुप्ता नंदी को एक ऐसा मंत्री माना जाता है जो योगी के गुडबुक्स में हैं और उन्हें शीर्ष नेतृत्व का भी समर्थन प्राप्त है।

इतना ज़रूर है कि यूपी के एक उप मुख्यमंत्री से उनके राजनीतक विरोध है।हाल ही में नंदी के विभाग पर ट्रांसफर में गड़बड़ियों के आरोप लगे थे।ज़ाहिर है औद्योगिक विकास जैसे अहम विभाग के मंत्री का ये आरोप लगाना यह भी बता रहा है कि विभाग में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा तो वहीं सरकार में भी टकराव की स्थिति है।वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरन कहती हैं ‘ ये बात सच है कि कहीं न कहीं ब्यूरोक्रेसी हावी है।पहले कार्यकाल में कम हावी थे पर योगी-2.0 में नौकरशाह ज़्यादा हावी है।सरकार को इन चीज़ों को स्पष्ट करना चाहिए।यूपी में औद्योगिक विकास को लेकर काफ़ी बात हुई है। अभिषेक प्रकाश (इन्वेस्ट यूपी के सीईओ) जैसे अधिकारी पर कार्रवाई हुई और अब मंत्री आरोप लगा रहे हैं तो इस बात को सरकार को स्पष्ट करना चाहिए।’

ट्रांसफर सीज़न में मंत्रियों और अफसरों का टकराव खुल कर सामने आया था

वैसे देखा जाए तो नौकरशाही और राजनेताओं में टकराव कोई नयी बात नहीं है।मंत्रियों के अपने विभागीय अधिकारियों के साथ खुलकर टकराव की बात सामने आने पर कई बार विपक्ष भी चुटकी ले चुका है।अखिलेश यादव तो यहाँ तक कह चुके हैं कि ‘ डबल इंजन’ और उनके समर्थक आपस में ही टकरा रहे हैं। फ़िलहाल नंदी के इस पत्र की चर्चा सामने आने के बाद बीजेपी के प्रवक्ताओं ने खामोशी ओढ़ ली है और उस मामले कर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।ये कोई इकलौती घटना नहीं है।जून में ट्रांसफर सीज़न में मंत्रियों और उनके अधिकारियों में टकराव को बात खुल कर सामने आ गयी थी।

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से आने वाले स्टाम्प और पंजीयन विभाग के मंत्री रवीन्द्र जायसवाल ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस बात की शिकायत की थी कि उनके विभाग के आला अधिकारी न सिर्फ अपने मर्जी से ट्रांसफर कर रहे हैं बल्कि उनसे ट्रांसफर सूची पर कोई चर्चा भी नहीं की गयी है।उन्होंने मुख्यमंत्री से माँग की थी कि उस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जाँच की जाए।हालांकि मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद सभी ट्रांसफर निरस्त कर दिए गए थे।पर मामले में एसआईटी गठित कर जाँच करवाने के संकेत के बाद भी न तो कोई SIT बनी न ही कोई जाँच शुरू हुई।

ट्रांसफ़र सीज़न में ही उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अपने अधीन स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग को लेकर कुछ ऐसी ही शिकायत की थी।उन्होंने अधिकारियों पर बिना उनको बताए ट्रांसफर सूची तैयार करने का आरोप लगाया।यही नहीं अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाए।उसके बाद नाराज होकर तबादला सत्र को ही शून्य कर दिया।हालाँकि उनकी नाराज़गी के बाद निदेशक, स्वास्थ्य प्रशासन भवानी सिंह खंगारौत को विभाग से हटाकर प्रतीक्षारत कर दिया गया।मामले की उच्चस्तरीय जाँच के संकेत दिए गए पर किसी तरह की जाँच और कार्रवाई होना तो दूर प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को यूपी के सबसे क्रीम माने जाने वाले विभागों में से एक चीनी-गन्ना उद्योग और चीनी निर्यात का अतिरिक्त कार्यभार भी दे दिया गया।अभी दो दिन पहले ही बीजेपी की सहयोगी अपना दल कोटे से मंत्री आशीष पटेल ने तो 1700 करोड़ के सरकारी बजट से अपनी पार्टी तोड़ने का आरोप लगाते हुए अधिकारियों को कटघरे में खड़ा कर दिया।इस मामले पर भी अब तक सब चुप्पी साधे हैं।

देखा जाए तो मंत्रियों की शिकायत सरकार के रिपोर्ट कार्ड और छवि के लिए भी ठीक नहीं है।इससे पहले सत्तारूढ़ बीजेपी के कार्यकर्ता लंबे समय से अधिकारियों की कार्यशैली को लेकर शिकायत करते रहे हैं।जिले के अधिकारियों के बात न सुनने और विधायकों को किसी मीटिंग में महत्व न देने और क्षेत्र के काम में अनदेखी करने की बात कई बात सामने आ चुकी है।लेकिन अब स्थिति अलग है क्योंकि ख़ुद विभाग को लीड करने वाले मंत्रियों को भी अपने ही अधिकारियों से उलझना पड़ रहा है।मंत्री अधिकारियों के सामने मजबूर नज़र आ रहे हैं।ज़ाहिर है यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले मामला तूल पकड़ा तो इसका ख़ामियाजा पार्टी को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।

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