कोई कहता है बाहुबली, किसी की नजर में नेता, कौन हैं धनंजय सिंह ?
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कोई कहता है बाहुबली, किसी की नजर में नेता, कौन हैं धनंजय सिंह ?

लोग मुझे बाहुबली मानते हैं. लेकिन गुनाह नहीं किया है. धनजंय सिंह से जब सवाल होता है तो वो इस बात को जरूर कहते हैं. आखिर जौनपुर की राजनीति में वो अनिवार्य हिस्सा क्यों हैं.,


Dhananjay Singh News: उत्तर प्रदेश में चुनाव हो और बाहुबली नेताओं की बात न हो तो ये कुछ नागवार सा लगता है. दरअसल उत्तर प्रदेश में खासतौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश की बात करें तो सत्ता और अपराध के बीच तालमेल चलता रहा है. यही वजह भी है कि उत्तर प्रदेश में कई ऐसे नेता है जो बाहुबली के तौर पर जाने जाते हैं और उनके किस्से भी ऐसे हैं जो किसी फ़िल्मी की कहानी से कम नहीं.हम बात करते हैं उत्तर प्रदेश के ऐसे ही एक बाहुबली की, जो इस लोकसभा चुनाव में भी काफी चर्चाओं में. चर्चा का विषय है मैदान से पीछे हटना. इस बाहुबली नेता का नाम है धनंजय सिंह, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर से आता है और उस इलाके में अच्चा खासा प्रभाव भी रखता है.

फिलहाल की बात करें तो एमपी-एमएलए कोर्ट ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह व उसके सहयोगी संतोष विक्रम को दोषी ठहराते हुए 7 साल की सजा सुनाई है. यही वजह है कि वो चुनाव नहीं लड़ सकता है. धनंजय सिंह ने अपनी तीसरी पत्नी को लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया और बसपा ने अपना टिकट भी दे दिया लेकिन फिर अचानक धनंजय सिंह की पत्नी की उम्मीदवारी वापस ले ली और बीजेपी को समर्थन देने की घोषणा की है .

धनंजय सिंह के किस्से हैरतंगेज हैं. पहले बात करते हैं धनजय सिंह के अपराध में आने की कहानी की.

धनंजय सिंह और जौनपुर एक दुसरे के पर्यायवाची बन चुके हैं. लेकिन शायद ही जायदातर लोगों को ये पता हो कि धनंजय सिंह का जन्म जौनपुर में नहीं बल्कि कोलकोता में हुआ था. 1975 में जन्में धनंजय सिंह 80 के दशक में परिवार के साथ जौनपुर आये और तभी से यहाँ का होकर रह गया. आज की बात करें तो धनंजय सिंह का जौनपुर में प्रभाव इस कदर है कि चुनाव में राजनितिक पार्टियाँ उससे समर्थन पाने का प्रयास जरुर करती है.

15 साल की उम्र में लगा स्कूल टीचर की हत्या का आरोप

धंनजय सिंह जब 15 साल का था और 10वीं कक्षा में था, तो उसके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया. आरोप था अपने ही स्कूल के एक टीचर की हत्या का. इस हत्याकांड से जौनपुर जिले में सनसनी फ़ैल गयी. 15 साल के बच्चे द्वारा टीचर की हत्या की खबर सुर्ख़ियों में आ गयी और पुरे जिले में धनंजय सिंह नाम की चर्चा शुरू हो गयी. हालाँकि पुलिस को इस मामले में कोई ठोस सबूत नहीं मिला. इसके लगभग 2 साल बाद एक बार फिर धनंजय सिंह पर हत्या का आरोप लगा. इस समय वो 12वीं कक्षा में थे. धनंजय सिंह ने जेल से ही 12वीं की परीक्षा दी. इस मामल एमी भी पुलिस को कोई ठोस सबूत नहीं मिला. लेकिन अब धनंजय सिंह का नाम जिले में दबंग की तरह जाना जाने लगा.

छात्र राजनीति में रखा कदम लेकिन अपराधिक मामलों में आता रहा नाम

12वीं पास करने के बाद धनंजय सिंह यूनिवर्सिटी पहुंचा. इस समय तक धनंजय का दबदबा जौनपुर में जम चुका था. लखनऊ यूनिवर्सिटी में पहुँच कर धनंजय सिंह के दबंग तेवर जारी रहे. वो एक राजपूत परिवार से आता है. छात्र राजनीती में दिलचस्पी रखने वाले धनंजय सिंह ने अपनी ही जाति के छात्रों के बीच पकड़ बनानी शुरू कर दी. उसने ठाकुरों का एक गुट बनाया और सहजाति के अन्य बाहुबली छात्र जैसे अभय सिंह, बबलू सिंह को भी साथ लिया. इस गुट ने यूनिवर्सिटी में अपना दबदबा बनाना शुरू किया और इस क्रम में धनंजय सिंह पर अपराधिक मामले भी दर्ज हुए. मामले दर्ज होने के साथ ही धनंजय सिंह जौनपुर का डॉन बन गया.

रेलवे की ठेकेदारी में रखा कदम

छात्र जीवन में दबंगई करने के बाद धनंजय सिंह ने पैसा कमाने के लिए रेलवे की ठेकेदारी का रास्ता चुना. ऐसा करने के पीछे सिर्फ पैसा कमाना ही मकसद नहीं था, बल्कि अपने वर्चस्व को भी बढ़ाना था. दरअसल उन दिनों रेलवे की ठेकेदारी उसी के हाथ लगती जिसका दबदबा होता. उसके साथ इस काम में उसका दोस्त अभय सिंह भी शामिल रहा. दोनों की दोस्ती एक जमाने में काफी मशहूर थी. दोनों ने मिलकर रेलवे के ठेके लेने शुरू किये. लेकिन उस समय अजीत सिंह नाम पूर्वांचल में माफिया के तौर पर बड़ा नाम था. लेकिन धनंजय और अभय सिंह की जोड़ी ने अजीत सिंह के नाम को रेलवे की ठेकेदारी में फीका कर दिया.

अभय सिंह से दोस्ती दुश्मनी में बदली

पुरानी कहावत है सांझे की हंडिया चौराहे पर फूटती है मतलब पार्टरनरशिप ज्यादा समय तक नहीं चलती. एक न एक दिन टूट जाति है. कुछ ऐसा ही धनंजय सिंह और अभय सिंह के बीच भी हुआ. 1997 तक धनंजय सिंह और अभय सिंह की जोड़ी टेंडर के धंधे में काफी मजबूत हो चुकी थी. लेकिन उसी दौरान पीडब्लूडी के एक इंजिनियर गोपाल शरण श्रीवास्त की दिन दहाड़े हत्या कर दी जाती है. नाम धनंजय सिंह का आता है. मामला तूल पकड़ता है और धनंजय सिंह फरार हो जाता है. पुलिस धनंजय की गिरफ़्तारी पर 50 हजार का इनाम घोषित करती है. इसके बाद से रुपयों के लेन देन को लेकर धनंजय सिंह और अभय सिंह के बीच तलवारें खींच जाति है. दोनों के बीच २००२ में गोलीबारी भी होती है. इसमें धनंजय सिंह का गनर गोली लगने से घायल भी होता है. धनंजय की शिकायत पर पुलिस अभय सिंह के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करती है.

मर कर जिंदा लौटे धनंजय सिंह

गोपाल शरण हत्याकांड में पुलिस हाथ धो कर धनंजय सिंह की तलाश में जुटी थी. इसी बीच पुलिस ने एक सूचना के आधार पर एक पेट्रोल पम्प पर नाकाबंदी की. पुलिस की मुठभेड़ हुई जिसमें 4 लोग मारे गए. पुलिस ने दावा किया कि धनंजय सिंह मारा गया. पुलिस ने अपनी पीठ थपथपाई लेकिन पुलिस की ये ख़ुशी ज्यादा दिन तक कायम नहीं रह पायी. लगभग 4 महीने बाद धनंजय सिंह जिंदा वापस लौट आया. ये देख पुलिस के होश फाख्ता हो गए क्योंकि 4 महीने पहले हुए एनकाउंटर पर सवाल उठे और गाज पुलिस वालों पर गिरी. वहीँ धनंजय सिंह अब अपराध की दुनिया में और भी बड़ा नाम बन गया.

अपराध से राजनीति में रखा कदम

धनंजय सिंह जो अपराध में बहुत बड़ा नाम बन चुका था और न केवल जौनपुर बल्कि पूर्वी उत्तरप्रदेश में भी उसके नाम की चर्चा होने लगी थी. उसने अब अपने कदम राजनीती में रखने की ठानी.

2002 में धनंजय सिंह पहली बार रारी विधानसभ से निर्दलीय विधायक चुने गए.

- 2007 के विधानसभा चुनाव में धनंजय सिंह ने नितीश कुमार की पार्टी जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गया.

- अब उत्तर प्रदेश की राजनीती में भी धनंजय सिंह का नाम चर्चा में आ चुका था. यही वजह रही कि 2008 में उसे बहुजन समाज पार्टी में शामिल कर लिया और 2009 में बसपा ने धनंजय को जौनपुर से लोकसभा प्रत्याशी बनाया, धनंजय सिंह ने जीत दर्ज की और संसद पहुँच गया. लेकिन 2 साल बाद बसपा ने धनंजय के खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगते हुए उसे पार्टी से बहार कर दिया.

2014 से शुरू हुआ हार का सिलसिला

धनंजय सिंह ने 2014 में जौनोपुर से ही लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन मोदी लहर में हार गया. इससे पहले उसने 2012 में अपनी पत्नी(अब तलाक हो चुका है ) डॉ जाग्रति सिंह को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ाया लेकिन वो हार गयी. 2017 में उसने मल्हनी सीट से निषाद पार्टी से विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता हाथ नहीं आई.

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