क्या कमर्शियल प्लेन बना सकता है भारत, C 295 से यूं ही नहीं बढ़ी उम्मीद
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क्या कमर्शियल प्लेन बना सकता है भारत, C 295 से यूं ही नहीं बढ़ी उम्मीद

C 295 मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट का निर्माण अब भारत में होगा। गुजरात के वडोदरा में भारत और स्पेन के पीएम ने संयुक्त रूप से मैन्यूफैक्चरिंग सेंटर का उद्घाटन किया था।


C 295 Aircraft: महाकाव्य रामायण में उड़ने वाले पुष्पक विमान की कहानी हम सभी को पता है। और उसे सुनकर हम रोमांचित भी होते हैं। लेकिन मॉडर्न दौर में ऐसा कमाल, भारत अभी तक नहीं कर पाया है। लेकिन लगता है कि अब यह सपना पूरा हो सकता है। सही सुना आपने भारत भी अपना कमर्शियल प्लेन बना सकता है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि भारत में टाटा और एयरबस मिलकर मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट बनाने जा रहे हैं। प्राइवेट सेक्टर में यह पहली डील है, और यह इसलिए मायने रखती है क्योंकि टाटा के साथ एयरबस( TATA Airbus Agreement) ने समझौता किया है।

एयरबस वही कंपनी है जिसकी दुनिया के कमर्शियल प्लेन बाजार में 60 फीसदी हिस्सेदारी है। यानी दुनिया का हर दूसरा प्लेन यह कंपनी बनाती है। इस डील के तहत भारत में 40 एयरबस सी-295 विमान बनाए जाएंगे। टाटा की इस ‘जहाज फैक्‍टरी’ से पहला सी-295 विमान दो साल बाद यानी साल 2026 में बनकर निकलेगा। डील से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतने उत्साहित नजर आए कि उन्होंने कहा कि वह दिन दूर नहीं है जब भारत अपना सिविल एयरक्रॉफ्ट बनाएगा।

भारत के लिए अहम डील
भारत के लिए यह डील कितनी अहम है, यह इसी से समझा जा सकता है कि वडोदरा में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड कैंपस(TATA Advanced Systems Limited) उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्पेन सरकार के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज़ खुद मौजूद थे। इस कैंपस में भारत की पहली निजी एयरोस्पेस असेंबली लाइन है। जो न केवल मैन्युफैक्चरिंग बल्कि असेंबली, टेस्टिंग और डिलीवरी के पूरे सायकिल को भारत में ही संचालित करेगी। और प्लेन निर्माण में इस्‍तेमाल होने वाले 18,000 से अधिक पुर्जों का उत्‍पादन भारत में ही होगा।

चुनिंदा देश ही बनाते हैं कमर्शियल प्लेन
भारत रक्षा क्षेत्र में तेजस जैसे स्वेदशी फाइटर प्लेन बना रहा है। लेकिन यात्रियों को लेकर उड़ने वाले जंबो जेट बनाने की तकनीकी अभी तक विकसित नहीं कर पाया है। स्वदेशी यात्री विमान बनाना कितना कठिन है, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि दुनिया के गिने-चुने देश ऐसा करने में सक्षम है। इसमें अमेरिका, फ्रांस,कनाडा, ब्राजील, रूस, चीन का नाम भले ही शामिल हो, लेकिन दुनिया की दो कंपनियों का ही पूरे बाजार पर कब्जा है। दुनिया के 80-90 फीसदी बाजार पर एयरबस और बोइंग(Airbus Boing Market) का कब्जा है। जिसे देखते हुए टाटा के साथ एयरबस की इंडिया में एंट्री भारत के सपने को पूरा कर सकती है।

भारत में 19 सीटर प्लेन पर चल रहा काम
भारत में अभी तक एचएएल कंपनी (HAL) ही इस दिशा में कदम बढ़ा पाई है। और वह 19 यात्रियों वाले प्लेन को विकसित कर रही है। लेकिन 200-250 यात्रियों का प्लेन निर्माण करना एक बेहद जटिल प्रक्रिया है। इस काम में कितना समय लगता है, इसे चीन के उदाहरण से समझा जा सकता है। चीन दशकों की मशक्कत के बाद साल 2023 में अपना पहला यात्री विमान बना पाया था। हालांकि उसका प्लेन 168 यात्रियों क्षमता वाला ही है। और उसे अभी तक इंटरनेशल सर्टिफिकेट नहीं मिल पाया है ।ऐसे में भारत के लिए यह काम करना इतना आसान नही है। लेकिन इसके बावजूद भारत के लिए यह सपना पूरा करने का बेहतरीन समय है।

भारत में पिछले एक साल में एयरोस्पेस इंडस्ट्री(India Aerospace Industry) के लिए पूरा इकोसिस्टम विकसित हो रहा है। मसलन पिछले साल जनवरी में अमेरिकी दिग्गज बोइंग ने बंगलुरू में अमेरिका के बाहर अपना सबसे बड़ा टेक्नोलॉजी सेंटर खोला है। और भारत एविएशन इंडस्ट्री के लिए छोटे ही सही लेकिन कंपोनेंट बनाने लगा है। और उसकी दुनिया के सप्लाई चेन में हिस्सेदारी 5 फीसदी तक पहुंच गई है। इसके अलावा प्रयागराज में एक स्टिक होल्डिंग डिपो और आगरा में एक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना भी की गई है। भारत की बढ़ती आर्थिक विकास दर को देखते हुए एयरबस की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत में पैसेंजर ट्रैफिक 6 फीसदी की ज्यादा की दर से, 2040 तक बढ़ता रहेगा। खुद सरकार का अनुमान है कि भारतीय एविएशन बाजार 2026 तक करीब 63 अरब डॉलर का हो जाएगा। बड़ती डिमांड को देखते हुए भारतीय कंपनियों ने अगले 20 साल में 1200 प्लेन के ऑर्डर दिए हैं। उसके बावजूद उसे करीब 1000 विमान की कमी रहेगी।

ऐसे में अगर भारत इस सपने को पूरा कर पाता है तो न केवल वह घरेलू जरूरतों को पूरा कर सकेगा। बल्कि दुनिया में भी बड़ा प्लेयर बनेगा। क्योंकि बोइंग और एयरबस इस समय डिमांड के अनुसार सप्लाई नहीं कर पा रही हैं। हाल ही में एयरबस ने तो एक साल में 800 विमान डिलिवर करने के अपने टारगेट को भी घटाकर 770 कर दिया है। क्योंकि उसे पर्याप्त इंजन और दूसरे कंपोनेंट की सप्लाई नहीं मिल पा रही है। ऐसे में भारत के पास एक सुनहरा मौका है, और टाटा-एयरबस डील(Tata Airbus Deal) उस दिशा में उठा एक बड़ा कदम है

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