अपने ही हुक्मरानों से बलूची लोगों को क्यों है इतनी नफरत, इनसाइड स्टोरी
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अपने ही हुक्मरानों से बलूची लोगों को क्यों है इतनी नफरत, इनसाइड स्टोरी

बलूचिस्तान में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है। इसके बावजूद वहां के लोग मुफलिसी में जी रहे है। बलोची लोग कहते हैं कि पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना रखा है।


Baluch Protest Reason: बलूचिस्तान में जाफर एक्सप्रेस के हाईजैक होने के बाद पाकिस्तान सेना में हड़कंप मचा हुआ है। अभी तक की जो रिपोर्ट हैं उसके मुताबिक बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी यानी बीएलए ने अपनी मांग पूरी करने के लिए समय सीमा घटाकर 24 घंटे कर दी है। बीएलए का कहना है कि पाकिस्तानी सेना के रुख को देखते हुए उसे ऐसा लगता है कि वह बंधकों को नहीं छुड़ाना चाहती। समय सीमा बीत जाने पर वह अपनी अदालत में इन्हें सजा सुनाएगा और हर घंटे पांच सैन्यकर्मियों को मार देगा। मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अयूब मर्जा ने कहा है कि क्वेटा रेलवे स्टेशन पर 200 से ज्यादा ताबूत लाए गए हैं। यह बताता है कि पाकिस्तानी सेना बंधकों को छुड़ाने के लिए बातचीत नहीं करना चाहती। उधर, पाकिस्तानी सेना का कहना है कि हाईजैक हुई जाफर एक्सप्रेस को अपने कब्जे में ले लिया गया है और वहां मौजूद 33 आतंकवादियों को उसने मार गिराया है।

बीएलए के कब्जे में जो करीब 200 बंधक सैन्यकर्मी हैं, उनका भविष्य कैसा होगा यह बहुत कुछ पाकिस्तानी सेना के रुख पर निर्भर करता है। पाकिस्तान की सेना और हुकूमत अगर उनकी बात मान लेती है तो संभव है कि इन सैन्यकर्मियों की जिंदगी बच जाए। दरअसल, बलोच की नई मांग नहीं कर रहे हैं, वे वर्षों से अपने लापता और जेलों में कथित रूप से बंद लोगों को रिहा करने की मांग करते आए हैं लेकिन इस बार उन्होंने अपनी मांग मनवाने के लिए सैन्यकर्मियों को ले जा रही ट्रेन को अगवा कर लिया। दरअसल, 1948 में बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा होने के बाद से ही बलोच लोगों पर जुर्म और अत्याचार हो रहे हैं। पाकिस्तानी सेना तरह-तरह से इन्हें प्रताड़ित और इन पर अत्याचार करती आई है।

बलूचिस्तान की अगर बात करें तो यह प्रांत पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा है। यहां बलूच लोगों की आबादी करीब डेढ़ करोड़ है। पाकिस्तान का लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा बलूचिस्तान का ही है। यह प्रांत प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है। दुर्लभ खनिज तत्व और गैस होने के बावजूद बलूचिस्तान के लोग गरीबी और पिछड़ेपन में जी रहे हैं। इनके यहां न अच्छी सड़कें हैं, न स्कूल हैं, न अस्पताल। यहां तक कि पीने के लिए साफ पानी भी नहीं है। कई इलाकों में तो मोबाइल फोन और संचार के साधन तक नहीं हैं। इनकी यह हालत तब है जब इन्हीं के खनिज तत्वों को बेचकर पाकिस्तानी हुकूमत अपना खजाना भर रही है। अपने इस प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और लूट से बलोच लोगों में काफी नाराजगी है। इसके खिलाफ वह पाकिस्तानी सेना और यहां खनिज उत्खनन का काम करने वाली चीनी कंपनियों के कर्मचारियों पर वे हमले करते आए हैं।

बलोच आज भी खुद को पाकिस्तानी नहीं मानते। वे अपने लिए एक स्वतंत्र देश की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह बात पाकिस्तानी हुकूमत को पसंद नहीं आती है और वह अपने खिलाफ सशस्त्र आंदोलन और आवाज को दबाती आई है। रिपोर्टों की मानें तो बीते दशकों में पूछताछ के नाम पर पाकिस्तानी सेना ने हजारों की संख्या में युवा बलोचों को उनके घर से उठाया। वर्षों बीत गए लेकिन इनका कुछ अता-पता नहीं है। पीड़ित परिवार न्याय की गुहार के लिए दर-दर भटकते हैं लेकिन कहीं पर उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। ये पीड़ित परिवार बस इतना चाहते हैं कि पाकिस्तानी सेना केवल इतना बता दे कि वे किस जेल में बंद हैं। जेल में बंद हैं तो वे उनसे मिल लेंगे और अगर मार दिया है तो उस दफनाई हुई जगह के बारे में बता दें जहां जाकर वे नमाजे जनाजा पढ़ लें।

बलूचिस्तान में जिन घरों के युवा लापता हैं, उनके परिजनों का दावा है कि पाकिस्तानी सेना ने उन्हें उठाया, उन्हें प्रताड़ित किया और फिर उन्हें मार दिया। हालांकि, पाकिस्तान सेना इन आरोपों को खारिज करती है। बलोच लोगों का कहना है कि बीते दो दशकों में हजारों लोग लापता या गायब हुए हैं। बलूचिस्तान के ही गैर सरकारी संगठन वॉयस फॉर बलोच मिसिंग पर्सन्स का दावा है कि साल 2004 के बाद लोगों के लापता या गायब होने के करीब 7,000 मामले दर्ज हुए हैं। लोगों के लापता होने की शिकायतें बढ़ने पर पाकिस्तान की संसद ने 2021 में एक कानून पारित किया लेकिन यह आज तक लागू नहीं हो पाया है। बलोच लोगों के लापता होने के खिलाफ व्यापक स्तर पर मुहिम चलाने वालीं और सामाजिक कार्यकर्ता महरंग बलोच का कहना है कि साल 2009 में उनके पिता अब्दुल गफ्फार लांगोव को पाकिस्तानी सेक्युरिटी सर्विस के लोगों ने उठा लिया और दो साल बाद उनका शव मिला। उनके शरीर पर प्रताड़ना के निशान मिले थे। यही नहीं 2017 में उनके भाई को तीन महीने तक हिरासत में रखा गया।

पाकिस्तानी सेना के इसी जुर्म, अत्याचार और प्रताड़ना के डर से हजारों की संख्या में बलोच अफगानिस्तान और अन्य देशों में शरण लिए हुए हैं और अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। इन्हें पाकिस्तान की सरकार से कोई उम्मीद नहीं है। ये मानते हैं कि अपनी अस्मिता, जातीय पहचान, अपनी विरासत बचाने के लिए इन्हें अपने लिए एक आजाद मुल्क चाहिए। इसकी लड़ाई वे जारी रखेंगे। जाफर एक्सप्रेस पर हमला पाकिस्तानी सेना और सरकार को सीधा संदेश है कि बहुत हो चुका। वे अब और जुर्म-अत्याचार बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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