क्या बांग्लादेश भी पाकिस्तान के रास्ते, भारत की चिंता क्यों बढ़ी
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क्या बांग्लादेश भी पाकिस्तान के रास्ते, भारत की चिंता क्यों बढ़ी

बांग्लादेश में अनिश्चितता का माहौल है। आर्मी चीफ वकार उज जमा ने अंतरिम सरकार बनाने की बात कर रहे हैं। लेकिन हालात भारत के लिए अच्छे क्यों नहीं उसे समझने की जरूत है।


Bangladesh News: रविवार के दिन बांग्लादेश की पीएम रहीं शेख हसीना ने अपना वतन छोड़ दिया। पहले वो हेलिकॉप्टर के जरिए अगरतला पहुंची और उसके बाद सी 130 हरक्यूलिस विमान से दिल्ली के करीब हिंडन एयरबेस पर उतरीं और फिलहाल वो सेफ हाउस में है। आगे उनका ठिकाना क्या होगा अभी कयास लगाए जा रहे हैं। सरकारी नौकरियों में 30 फीसद कोटे का मसला इतना भारी पड़ा कि छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत तो हुआ। लेकिन चिंगारी फिर भड़की। यहां पर सवाल यह है कि शेख हसीना को क्या बांग्लादेश छोड़ने के लिए दबाव बनाया गया। अब उनके बेटे की सजीब वजीब जॉय की मानें तो सेना की तरफ से दबाव बनाया गया था।

मौजूदा हालात भारत के लिए ठीक नहीं
बांग्लादेश सेना के प्रमुख वकार उज जमां के मुताबिक उनकी सभी दलों से अंतरिम सरकार बनाने की व्यस्था पर बातचीत चल रही है। लेकिन इस बीच बांग्लादेश के राष्ट्रपति का पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया की रिहाई का आदेश चर्चा में हैं। बता दें कि शेख हसीना से पहले वो अपने मुल्क की अगुवाई कर रही थीं और उन्हें कट्टरपंथी संगठन जमात-ए- इस्लामी का समर्थन भी हासिल था। बेगम खालिदा जिया को जहां चीन का समर्थक माना जाता था। वहीं जमाती इस्लामी का पाकिस्तान से मोहब्बत छिपी नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि जमात और आईएसआई के बीच गहरे संबंध हैं और उसकी बदौलत बांग्लादेश की जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए दोबारा शुरू हो सकता है।
एनएसए अजीत डोभाल ने हिंडन एयरबेस पर हसीना से मुलाकात की, लेकिन भारत की ओर से सोमवार देर शाम तक ढाका में हुए घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई, जिसने हसीना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को आंतरिक मामला बताया था। ढाका से मिली रिपोर्टों से पता चलता है कि हसीना की अवामी लीग को सेना द्वारा गठित की जा रही अंतरिम सरकार से बाहर रखा जाएगा जबकि विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। बीएनपी, जिसने इस साल की शुरुआत में चुनाव नहीं लड़ा था क्योंकि यह एक कार्यवाहक सरकार के तहत नहीं हुआ था। उसने भी भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने का कभी कोई मौका नहीं गंवाया।

भारत की चिंता की चार मूल वजह
भारत को उम्मीद होगी कि सेना नई सरकार पर नरम प्रभाव डालेगी, फिर भी उसे कई बातों की चिंता होगी। हसीना की अगुवाई में बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता ने भारत को देश में आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दी, जिसे सरकार अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में भी देखती है। ऊर्जा और कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करने वाली विकास साझेदारी फली-फूली। इसने भारत को बांग्लादेश के साथ 4000 किलोमीटर की सीमा पर सहकारी और शांतिपूर्ण सीमा प्रबंधन तंत्र बनाने और नशीली दवाओं और मानव तस्करी और नकली नोटों से संबंधित मुद्दों को हल का मौका मिला। भारत इस बात को लेकर चिंतित होगा कि ढाका में नई सरकार के आने के बाद इस तरह की पहल कैसे प्रभावित होती है।

दूसरा, भारत को क्षेत्रीय अशांति को बढ़ावा देने के किसी भी प्रयास से सावधान रहने की जरूरत होगी, जिसमें विदेशी तत्वों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों के लिए बांग्लादेश की धरती का उपयोग करना शामिल है, जिन्होंने हसीना को पीछे देखने के लिए लंबे समय तक इंतजार किया है।भारत को अफ़गानिस्तान में भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा, जिससे पाकिस्तान बहुत खुश है, क्योंकि 2021 में तालिबान की वापसी हुई है और हालांकि काबुल में शासन अब तक भारत की चिंताओं के प्रति ग्रहणशील रहा है, लेकिन नई दिल्ली अफ़गानिस्तान में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों की गतिविधियों के बारे में रिपोर्टों पर सतर्कता से नजर रखता है।

तीसरा, भारत को इस बात को लेकर परेशानी होगी कि ढाका के साथ आतंकवाद और रक्षा सहयोग पर क्या असर पड़ सकता है। हसीना के साथ अपनी बैठकों में मोदी आतंकवाद और कट्टरपंथ से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों पर जोर दे रहे थे और जून में अपने अंतिम शिखर सम्मेलन में दोनों पक्षों ने बांग्लादेशी सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए रक्षा औद्योगिक सहयोग की संभावना तलाशने पर सहमति जताई थी।

बांग्लादेश में बदली राजनीतिक स्थिति में चीन की भूमिका पर बारीकी से नजर रखनी होगी। जनवरी में हुए चुनावों के बाद चीन के समर्थन से चीन के साथ मजबूत आर्थिक संबंध बनाए रखते हुए हसीना ने यह सुनिश्चित किया था कि चीनी निवेश भारत के सुरक्षा हितों पर असर न डालें। तीस्ता विकास परियोजना में चीन की रुचि के बावजूद हसीना चाहती थीं कि भारत इस परियोजना को क्रियान्वित करे और मोदी के साथ उनकी पिछली बैठक में भारतीय पक्ष ने नदी जल के प्रबंधन और संरक्षण के प्रस्ताव की जांच करने के लिए बांग्लादेश में एक तकनीकी टीम भेजने पर सहमति जताई थी। हसीना के बाद भारत इस बात को लेकर चिंतित होगा कि नई सरकार उन मुद्दों को कैसे संभालेगी जिन्हें दोनों पक्ष अब तक साझा रणनीतिक चिंताओं और हितों के रूप में देखते रहे हैं।

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