सत्ता, संघर्ष और विवाद: खालिदा जिया की विरासत पर क्यों बनी रहेगी बहस
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80 साल की उम्र में ढाका के प्राइवेट अस्पताल में पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया ने अंतिम सांस ली।

सत्ता, संघर्ष और विवाद: खालिदा जिया की विरासत पर क्यों बनी रहेगी बहस

बांग्लादेश की पूर्व पीएम खालिदा जिया के निधन के साथ बांग्लादेश की राजनीति का एक निर्णायक अध्याय समाप्त हुआ, जिसकी विरासत पर बहस लंबे समय तक जारी रहेगी।


Khaleda Zia New: बांग्लादेश की सियासत में खालिदा जिया ( मूल नाम खालिदा खानम पुतुल) एक विचार के तौर पर जानी जाती रही हैं। बांग्लादेश को आजाद हुए करीब 10 साल बीते थे। लेकिन उसको भी वही रोग लगा जिससे आज का पाकिस्तान पीड़ित है। खालिदा जिया के पति जियाउर्ररहमान (Ziaur Rahman) की तख्ता पलट में हत्या होती है और वो घटना खालिदा जिया की जिंदगी को पूरी तरह बदल देती है।

घर की देहरी से बाहर नहीं निकलने वालीं खालिदा पूरी तरह सियासत में सक्रिय होती हैं और सैन्य शासन को उखाड़ कर फेंक देती हैं। लेकिन ऐसा नहीं था कि खालिदा की राजनीतिक यात्रा विवादों से अछूती रही हो। खालिदा को आमतौर पाकिस्तान का पैरोकार माना जाता रहा है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी से साल 2013 में ढाका दौरे पर मिलने से इनकार कर दिया था। लेकिन अब 80 वर्ष की उम्र में निधन के साथ ही खालिदा जिया की राजनीति का एक लंबा, निर्णायक और विवादों से भरा अध्याय समाप्त हो गया है।

खालिदा जिया न केवल बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, बल्कि उन्होंने तीन बार देश की सरकार का नेतृत्व किया और दशकों तक राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय की। उनके निधन से बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है, खासकर ऐसे समय में जब देश अगले वर्ष चुनाव की तैयारी कर रहा है।

साधारण पृष्ठभूमि से सत्ता के शिखर तक

बेगम खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को बांग्लादेश के दीनाजपुर जिले में हुआ था। उनका राजनीति में प्रवेश किसी पूर्व योजना का हिस्सा नहीं था। 30 मई 1981 को उनके पति और तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान की हत्या के बाद परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में धकेल दिया।

पति की हत्या के बाद संकट में फंसी BNP की कमान उन्होंने संभाली। राजनीति में बिल्कुल नई होने के बावजूद, उन्होंने जल्द ही खुद को एक मजबूत और निर्णायक नेता के रूप में स्थापित किया। 1991 में वे पहली बार प्रधानमंत्री बनीं और इसके साथ ही बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का इतिहास रचा।

सत्ता, संघर्ष और विवाद

खालिदा जिया का तीसरा कार्यकाल 2001 से 2006 के बीच रहा। इस दौर में उनकी सरकार ने मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था, निजीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा दिया। लेकिन इसी अवधि में उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा, प्रशासनिक कमजोरियों और कट्टरपंथी तत्वों को संरक्षण देने जैसे गंभीर आरोप भी लगे।

इस दौर में शेख हसीना के साथ उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और अधिक तीखी होती चली गई। दोनों नेताओं के बीच टकराव बांग्लादेशी राजनीति का स्थायी स्वरूप बन गया। सत्ता से बाहर होने के बाद खालिदा जिया पर भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज हुए और 2018 में उन्हें जेल भेज दिया गया।

बीमारी, जेल और सियासत

जेल के दौरान खालिदा जिया का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया। उनकी पार्टी और परिवार ने बार-बार बेहतर इलाज के लिए उन्हें विदेश भेजने की मांग की, लेकिन शेख हसीना सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। गंभीर बीमारी के चलते वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गईं और धीरे-धीरे BNP को भी मुख्यधारा की राजनीति से हाशिये पर धकेल दिया गया। अब, जब शेख हसीना की सरकार का पतन हो चुका है और फरवरी में आम चुनाव प्रस्तावित हैं, ऐसे समय में खालिदा जिया का निधन राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

पारिवारिक जीवन और राजनीतिक विरासत

खालिदा जिया ने 1960 में जियाउर रहमान से विवाह किया, जो उस समय पाकिस्तान सेना में कैप्टन थे। शादी के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। 1971 के मुक्ति संग्राम में जियाउर रहमान ने पाकिस्तान सेना के खिलाफ विद्रोह किया और बांग्लादेश की आज़ादी में अहम भूमिका निभाई।

उनके बड़े बेटे तारिक रहमान 17 वर्षों के निर्वासन के बाद हाल ही में बांग्लादेश लौटे हैं, जबकि उनके छोटे बेटे अराफात रहमान कोको की कुछ वर्ष पहले मलेशिया में मृत्यु हो गई थी।

भारत के साथ संबंध: अविश्वास और दूरी

खालिदा जिया को आमतौर पर पाकिस्तान समर्थक नेता के रूप में देखा गया। उनके कार्यकाल के दौरान भारत–बांग्लादेश संबंधों में विशेष गर्मजोशी नहीं दिखी। भारत में यह धारणा बनी कि उनके शासनकाल में पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय उग्रवादी संगठनों को बांग्लादेशी धरती का इस्तेमाल करने की छूट मिली।

उनके कार्यकाल के दौरान घुसपैठ और हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई, जिससे दोनों देशों के बीच अविश्वास गहराया। हालांकि खालिदा जिया ने इन आरोपों से हमेशा इनकार किया, लेकिन भारत में यह छवि लंबे समय तक बनी रही।

प्रभावशाली लेकिन विवादास्पद विरासत

बेगम खालिदा जिया का राजनीतिक जीवन संघर्ष, सत्ता, टकराव और विवादों से भरा रहा। वे समर्थकों के लिए साहसी नेता थीं, तो आलोचकों के लिए विवादों की प्रतीक। उनके निधन के साथ बांग्लादेश ने एक ऐसी नेता को खो दिया है, जिसने देश की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया।उनकी विरासत पर बहस आने वाले वर्षों तक जारी रहेगी, लेकिन यह तय है कि खालिदा जिया का नाम बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगा।

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