
कनाडा में मार्क कार्नी सरकार, जानें- भारत के लिए क्या है इसके मायने
कनाडा में मार्क कार्नी एक बार फिर सरकार बनाने जा रहे हैं। ऐसे में भारत- कनाडा के बीच तल्खी में कमी आने की उम्मीद बढ़ गई है। बता दें कि निज्जर प्रकरण के बाद संबंध खराब हो गए थे।
Mark Carney News: कनाडा के संघीय चुनावों में मार्क कार्नी और लिबरल पार्टी की जीत ने भारत और कनाडा के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण रहे संबंधों में सुधार की उम्मीदें जगा दी हैं। कार्नी ने चुनाव प्रचार के दौरान खुद को “संकट के समय सबसे उपयोगी” बताया था, और अब उनकी जीत द्विपक्षीय संबंधों में एक नई शुरुआत का संकेत देती है खासकर उस पृष्ठभूमि में जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Justine Trudeau) के कार्यकाल में रिश्ते बेहद खराब हो चुके थे।
भारत को व्यापारिक साझेदार बनाने पर जोर
चुनावी प्रचार के दौरान मार्क कार्नी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत के साथ संबंधों की बहाली उनकी प्राथमिकता होगी।उन्होंने कहा था “कनाडा समान विचारधारा वाले देशों के साथ व्यापारिक संबंधों का विविधीकरण करना चाहता है, और भारत के साथ रिश्तों को फिर से बनाने के मौके हैं। इस रिश्ते के लिए साझा मूल्यों की ज़रूरत है। अगर मैं प्रधानमंत्री बनता हूं, तो मैं इस दिशा में प्रयास करूंगा।”
2023 की कूटनीतिक दरार
भारत-कनाडा संबंध 2023 में तब सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे जब ट्रूडो सरकार ने यह आरोप लगाया था कि भारतीय एजेंटों ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भूमिका निभाई थी। निज्जर की हत्या जून 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया के सरे शहर में एक गुरुद्वारे के बाहर हुई थी। इसके बाद अक्टूबर 2024 में हालात और बिगड़ गए जब कनाडा ने छह भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। भारत ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया और कूटनीतिक बदले के तहत शीर्ष कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया।
इस विवाद के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ताएं ठप हो गईं, आधिकारिक दौरों पर रोक लग गई और माहौल बेहद तल्ख हो गया। भारत का आरोप रहा है कि कनाडा ने सिख समुदाय में उग्रवाद को नजरअंदाज किया और ट्रूडो सरकार भारत विरोधी गतिविधियों को लेकर ढुलमुल रवैया अपनाती रही।
कार्नी की विदेश नीति
60 वर्षीय मार्क कार्नी, जो पहले बैंक ऑफ कनाडा और बैंक ऑफ इंग्लैंड के प्रमुख रह चुके हैं, उन्होंने अपनी नीति में कहा है कि अमेरिका के टैरिफ खतरों के चलते कनाडा को अपने विदेशी संबंधों को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है।उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कनाडा की संप्रभुता के लिए खतरा बताया और कहा:“ट्रंप हमें तोड़ना चाहते हैं ताकि अमेरिका हम पर कब्जा कर सके।”
इसके जवाब में कार्नी ने भारत को प्राथमिक व्यापारिक साझेदार के रूप में चिह्नित किया और कहा कि कनाडा को लोकतांत्रिक मूल्यों वाले देशों के साथ साझेदारी बढ़ानी चाहिए और भारत, भले ही हाल में मतभेद रहे हों, एक जरूरी सहयोगी है।
उन्होंने टोरंटो स्टार को फरवरी में दिए इंटरव्यू में कहा था “व्यक्ति बदला है, नीतियां बदली हैं, अब सरकार चलाने का तरीका भी बदलेगा।
प्रवासी भारतीयों की भूमिका
भारत सरकार का हमेशा से यह मानना रहा है कि उसका प्रमुख सरोकार संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा है। भारत के लिए कनाडा में खालिस्तानी तत्वों द्वारा आयोजित रैलियां, सोशल मीडिया प्रचार और कथित फंडिंग नेटवर्क, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माने जाते हैं। ट्रूडो के नेतृत्व में भारतीय मंदिरों पर हमले जैसी घटनाओं पर सख्त प्रतिक्रिया की कमी को लेकर भारत में असंतोष रहा।
कनाडा में भारतीय प्रवासियों की संख्या करीब 28 लाख है, जिनमें अस्थायी श्रमिक, छात्र और स्थायी निवासी शामिल हैं। अकेले भारतीय छात्रों की संख्या 4.27 लाख से अधिक है जो कनाडा की शिक्षा व्यवस्था और श्रम बाजार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। हालांकि ट्रूडो सरकार में राजनयिक संबंध बिगड़ते गए, पर भारतीयों का आव्रजन मजबूत बना रहा। उम्मीद है कि कार्नी भी इस नीति को बनाए रखेंगे, खासकर कुशल पेशेवरों, तकनीकी कर्मचारियों और छात्रों के लिए।
व्यापारिक समझौते की बहाली की उम्मीद
भारत और कनाडा के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) वर्षों से वार्ता में था, लेकिन निज्जर हत्याकांड और राजनयिक टकराव के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।मार्क कार्नी के हालिया बयानों से संकेत मिलता है कि वे इस व्यापार समझौते को फिर से शुरू करने के लिए इच्छुक हैं।2023 में भारत-कनाडा के बीच सेवा क्षेत्र में व्यापार 13.49 अरब कनाडाई डॉलर तक पहुंच गया था।
दोनों सरकारें पहले AI, फिनटेक, हरित ऊर्जा और उच्च शिक्षा में सहयोग के रास्ते तलाश रही थीं। कार्नी के नेतृत्व में इन क्षेत्रों में फिर से गति आने की संभावना है, खासकर जब दोनों देश चीन और अमेरिका पर निर्भरता कम करना चाहते हैं।