भारत-ईरान रिश्ते में चाबहार ने दी मजबूती,क्यों चिढ़ रहा है अमेरिका ?
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भारत-ईरान रिश्ते में 'चाबहार' ने दी मजबूती,क्यों चिढ़ रहा है अमेरिका ?

चाबहार पोर्ट ईरान में है और यह पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से महज 79 किमी दूर है. चीन के लिहाज से भारत के लिए चाबहार पोर्ट का रणनीतिक महत्व है.


Chabahar Port News: चाबहार पोर्ट के मुद्दे पर अमेरिका गरम है. भारत और ईरान के बीच 10 साल तक इस पोर्ट के जरिए व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करने का समझौता हो चुका है. लेकिन अमेरिका को यह रास नहीं आ रहा. जो बाइडेन प्रशासन का कहना है कि जो कोई भी ईरान के साथ समझौता करेगा उसके खिलाफ हम सैंक्शन लगाएंगे. जो कोई में किसी देश का नाम तो नहीं था. लेकिन इशारा साफ था. इस विषय पर विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर से सवाल पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि अमेरिका का नजरिया सीमित नहीं होना चाहिए. यही नहीं अमेरिका तो वही देश है जिसने चाबहार को ना सिर्फ क्षेत्रीय सहयोग के लिए बेहतर बताया बल्कि वैश्विक स्तर इसकी उपयोगिता को सराहा.

चाबहार और 10 साल का समझौता

यह पहला मौका है कि जब भारत किसी विदेशी बंदरगाह का संचालन करेगा. इसके जरिए भारत की पहुंच अफगानिस्तान के साथ मध्य एशिया के देशों तक हो जाएगा. सबसे पहले समझने की जरूरत है कि यह पोर्ट भौगोलिक तौर पर कहां है. गल्फ ऑफ ओमान पर यह बंदरगाह है कि 2023 में इसके विकास का प्रस्ताव भारत सरकार की तरफ से दिया गया. भारत का मकसद था कि पाकिस्तान के बगैर भी वो अफगानिस्तान के साथ साथ सेंट्रल एशिया तक पहुंच बना सके. दरअसल वन बेल्ट वन रोड के तहत चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का विकास कर रहा था. पाकिस्तान में चीन की मौजूदगी का मतलब साफ है कि भारत के रास्ते में चुनौतियां अधिक आतीं.

  • चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान के पोर्ट एंड मैरिटाइम के बीच दस्तखत.
  • पैक्ट के तहत भारत को चाबहार के शाहिद बेहेश्की टर्मिनल(245 हेक्टअर टोटल एरिया) के संचालन का मौका मिला है.
  • 16 हेक्टेअर में ओपेन स्टोरेज एरिया है.
  • इसके साथ ही 30 हजार वर्ग मीटर में वेयरहाउस है.

अमेरिका इस वजह से हो रहा है खफा

होरमुज स्ट्रेट और हिंद महासागर के करीब होने की वजह से इस पोर्ट का महत्व बढ़ गया है. अगर मध्य एशिया के देशों की बात करें तो उनकी ख्वाहिश रही है कि एक ऐसा वैकल्पिक रास्ता उपलब्ध हो जिसके जरिए वो भारतीय बाजारों तक और भारत भी उन तक पहुंच सके. इसका अर्थ यह हुआ कि आने वाले दशकों में जितना अधिक व्यापार मध्य एशिया के देशों से बढ़ेगा भारत के साथ रिश्ते प्रगाढ़ होंगे और उसका असर यह होगा कि वैश्विक स्तर पर भारत की धाक बढ़ेगी. यह बड़ी वजह है कि अमेरिका, भारत से चिढ़ रहा है.

जानकार कहते हैं कि चाबहार के जरिए भारत, चीन पर करीबी नजर रख सकेगा. अभी तक का रिकॉर्ड यह है कि अमेरिका की अपनी समझ यह है कि चीन के खिलाफ किसी एक्शन में दूसरे देश उसके पीछे पीछे चलें. कल की तारीख में भारत जितना मजबूत होगा स्वाभाविक बात है कि अमेरिका की बात को शायद उतनी तवज्जो ना मिले. भारत की ताकत में इतना अधिक इजाफा हो कि नेगोशियन जैसी स्थिति में इंडिया खुद इनिशिएटिव ले.

यूक्रेन- रूस के मुद्दे पर, इजरायल-हमास के मुद्दे पर, हाल ही में ईरान द्वारा इजरायल पर ड्रोन-मिसाइल अटैक के बाद भारत की सधी प्रतिक्रिया आई. अमेरिका चाहता था कि भारत खुलकर अमेरिका और उसके सहयोगियों के पक्ष में बोले. इसके साथ ही कनाडा के हरदीप सिंह निज्जर प्रकरण के साथ साथ गुरपतवंत सिंह पन्नू मामले में भारत का रुख अमेरिका को रास नहीं आ रहा है. यही वजह है कि अमेरिका मौका ढूंढ रहता है कि कोई ऐसा मौका आए जब वो भारत की बांह मरोड़े. लेकिन अब भारत की प्रतिक्रिया आती है कि हम अपनी नीति से ही आगे बढ़ेंगे.

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