बॉर्डर पेट्रोलिंग पर अब चीन ने भी भरी हामी, आखिर शी जिनपिंग कैसे हुए तैयार
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बॉर्डर पेट्रोलिंग पर अब चीन ने भी भरी हामी, आखिर शी जिनपिंग कैसे हुए तैयार

ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक चीन के विदेश मंत्रालय ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के साथ गश्त के संबंध में पुष्टि की है। साल 2020 से पूर्वी लद्दाख में गतिरोध कायम था।


India China Relation: रूस के कजान शहर में ब्रिक्स के 16वें सम्मेलन का आगाज हो रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी सम्मेलन में शिरकत करने के लिए पहुंच चुके हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि वो आज ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलेंगे। उससे ठीक पहले एक और बड़ी खबर आई। चीन के विदेश मंत्रालय ने देपसांग और डेमचोक इलाके में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएससी पर गश्त पर हुए समझौते की पुष्टि कर दी है। लेकिन यह कवायद एक या दो दिन की नहीं है। हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि 2020 की गलवान घटना के चार साल बाद चीन का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया।

21 अक्टूबर को भारत ने दी थी जानकारी
आर्मी और ब्यूरोक्रेसी लेवल पर चार साल 4 महीने में 38 राउंड मीटिंग के बाद चीन की भारत के सामने हेकड़ी निकल गई है। ड्रैगन पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में भारत के आगे झुक गया है। नए डेवलपमेंट में भारतीय सेना अब देपसांग प्लेन और डेमचोक क्षेत्र में पेट्रोलिंग कर सकेगी। जो दोनों देशों के बीच LAC के साथ तनाव के दो प्रमुख बिंदु रहे हैं। सोमवार को विदेश सचिव विक्रम मिस्री द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर सैनिकों की पेट्रोलिंग को लेकर भारत और चीन एक समझौते पर पहुंच गए हैं।

इस समझौते का मतलब है कि चीन ने भारत की वह शर्त मान ली है, कि साल 2020 से पहले की जो स्थिति सीमा पर थी, उसे बहाल करने के बाद ही रिश्तों में जमी बर्फ पिघलेगी। 4 साल 4 महीने की इस लंबी कूटनीतिक वार्ता की नतीजा भारत के पक्ष में क्यों और कैसे आया, और सबको आंख दिखाने वाला चीन भारत के सामने कैसे मजबूर हुआ, इसकी हम आपको पूरी इनसाइड स्टोरी बताएंगे। लेकिन उससे पहले यह जान लीजिए कि यह समझौता भारत के लिए कितनी बड़ी जीत है..और इससे भारत को क्या फायदा मिलेगा

किन इलाकों में होगी पेट्रोलिंग
समझौते के मुताबिक 2020 से पहले जिन इलाकों में गश्त होती थी वह बहाल की जाएगी। देपसांग के साथ साथ PP 10 और PP 13 तक का इलाका शामिल है। महीने में दो बार पेट्रोलिंग होगी यही नहीं गलवान जैसी झड़प ना हो इसके लिए इसके लिए सैनिकों की संख्या 15 तक सीमित की गई है। गश्त से पहले एक दूसरे को जानकारी देने पर भी दोनों पक्षों में सहमति बनी है। हर महीने एक बार कमांडिंग अफ़सरों के स्तर पर वार्ता होगी। जिससे कोई अप्रिय स्थिति न बने।
देपसांग प्लेन और डेमचोक क्षेत्र पर चीन को झुकाना आसान नहीं था। क्योंकि ये दोनों प्वाइंट भारत और चीन के बीच लीगेसी इश्यू रहे हैं। और चीन पिछले 4 साल में देपसांग प्लेन और डेमचोक पर झुकने के लिए तैयार नहीं था। क्योंकि ये दोनों प्वाइंट सेनाओं के लिए रणनीतिक रुप से बेहद अहम हैं। इसीलिए चीन इन दोनों प्वाइंट पर बात करने के लिए भी राजी नहीं था। लेकिन अब भारत ने चीन को 1976 के समझौते के अनुसार, झुकने के लिए मजबूर कर दिया है, जिसमें भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख के 65 प्वाइंट्स तक पेट्रोलिंग कर सकती है।
असल में देपसांग प्लेन काराकोरम दर्रे के पास रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी पोस्ट से 30 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है। पहाड़ी इलाकों के बीच में यह एक सपाट मैदान है। जिसका इस्तेमाल कोई भी सेना आक्रमण के लिए कर सकती है। ऐसे में यहां से चीनी सैनिकों का हटना और पेट्रोलिंग राइट मिलना भारत के लिए बड़ी रणनीतिक जीत है। क्योंकि अब चीनी सैनिक पहले की स्थिति में लौट जाएंगे और ‘Y’ जंक्शन पर भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग से नहीं रोकेंगे।
चीन क्यों समझौते के लिए तैयार हुआ
असल में जब, मई 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद जब 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 40-50 चीनी सैनिक मारे गए तभी से भारत ने चीन के साथ सख्ती शुरू कर दी थी। इसके तहत सैन्य सख्ती तो थी ही साथ ही आर्थिक पाबंदियां भी बड़े पैमाने पर लागू कर दी। सबसे पहले उसने 60 चाइनीज ऐप पर प्रतिबंध लगाया। इसके अलावा कलर टीवी का आयात फ्री से रेस्ट्रिक्टेड कर दिया था। इसके अलावा 2020 में चीन से आने वाले FDI के लिए अप्रूवल अनिवार्य कर दिया । इसकी वजह से चीनी कंपनियों के लिए निवेश जुटाना मुश्किल हुआ। शाओमी और ओप्पो जैसी चीनी कंपनियां ईडी के रडार पर रही। जिससे उनका बिजनेस भारत में बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
इसी तरह चीन से एप्पल, बोइंग, जैसी अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों ने चीन की जगह भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाना शुरू कर दिया है। जिसका भी असर चीन की बिगड़ती इकोनॉमी पर पड़ा है। हालांकि इस दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 136 अरब डॉलर के करीब ही रहा है। लेकिन जो व्यापार तेजी से बढ़ सकता था, वह ठहर सा गया। ऐसे में चीन की इकोनॉमी को भारतीय बाजार की जरूरत है। क्योंकि उसके रिश्ते अमेरिका से सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। वहीं यूक्रेन युद्ध में रूस का खुलकर साथ देने से यूरोपीय देश भी उससे दूरी बना रहे है। इसकी वजह से चीन में बेरोजगारी बढ़ी है और शी जिनपिंग के खिलाफ असंतोष बढ़ा है।
व्यापार में भारत को मिल सकता है फायदा
दूसरी तरफ अगर दोनों देशों के बीच सामान्य रिश्ते का फायदा भारत को मिल सकता है। क्योंकि भारत को ग्रोथ के लिए विदेशी निवेश की जरूरत है और चीन के निवेशक इसके लिए तैयार बैठे हैं। साथ ही इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी या रेयर अर्थ मटीरियल जैसे चीजें भारत को चीन से आसानी से मिल सकते हैं। कुल मिलाकर चीन से अगर सीमा विवाद सुलझता है तो निश्चित तौर इसका फायदा दोनों इकोनॉमी को मिलेगा। लेकिन चीन की फितरत ऐसी है कि उस पर भरोसा करना आसान नहीं रहा है।
लेकिन सतर्क रहने की जरूरत
2017 में डोकलाम संकट भी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले हल हो गया था और इसने पीएम मोदी के चीन दौरे का रास्ता बनाया था। लेकिन उसके बाद गलवान में क्या हुआ सभी को पता है। इस वजह से कई एक्सपर्ट ने भारत को सतर्क रहने की सलाह दी है। वैसे भी अभी तक इस समझौते पर चीन का बयान नहीं आया है। लेकिन अगर ब्रिक्स सम्मेलन में मोदी और शीन जिनपिंग की द्विपक्षीय मुलाकात होती है और कोई बयान आता है तो वह एक बड़ी पहल होगी।
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