सिर्फ एक मुलाकात से चीन क्यों भड़का, दलाई लामा पर बिफरने की वजह समझिए
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धर्मशाला में नैंसी पेलोसी ने दलाई लामा से मुलाकात की थी.

सिर्फ एक मुलाकात से चीन क्यों भड़का, दलाई लामा पर बिफरने की वजह समझिए

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में अमेरिकी डेलीगेट्स ने दलाई लामा से मुलाकात की थी. उस मुलाकात के बाद शी जिनपिंग प्नशासन ने कहा कि वो चीन विरोधी लोगों से दूर रहे.


China on Dalai Lama: दुनिया में चीन अकेला ऐसा मुल्क है जिसका अपने सभी पड़ोसियों से विवाद है. तिब्बत को वो अपना हिस्सा मानता है.भारत के साथ तनातनी की वजह सीमा विवाद के साथ साथ दलाई लामा के प्रति भारत का लगाव भी है. चीन एक बार फिर गरम है क्योंकि उसे यह अच्छा नहीं लगा कि अमेरिकी के एक डेलीगेशन (हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की पूर्व स्पीकर नैंसी पेलोसी) ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुलाकात क्यों की.चीन ने तो अमेरिका के साथ ऐतराज जताते हुए कहा कि आप किसी भी उस संगठन या शख्सियत से दूर रहें जो चीन के खिलाफ काम करता हो. सवाल ये कि आखिर चीन इतना भड़कता क्यों है.

नैंसी पेलोसी ने की थी मुलाकात
तिब्बत और दलाई लामा के मुद्दे पर भारत की स्थित स्पष्ट है. भारत के मुताबिक तिब्बती लोगों को अपने धर्म और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार है. तिब्बत एक आजाद मुल्क है और चीन को कब्जा करने की जगह या अपना हिस्सा समझने की जगह आजाद मुल्क का दर्जा देना चाहिए. वहीं अमेरिका ने भी कहा कि जिस तरह से तिब्बत में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है उस पर चिंतित होना लाजिमी है. इसी महीने अमेरिकी संसद में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स ने एक बिल पारित कर कहा कि तिब्बती नेताओं से चीन को बात करनी चाहिए जो 2010 से रुकी हुई है. चीन को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए ताकि तिब्बती लोगों की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक,धार्मिक और भाषाई पहचान बनी रहे. चीन को दिक्कत इसलिए भी हो रही है क्योंकि अमेरिका ने जो दो प्रस्ताव पारित किए थे उसका टाइटल (तिब्बत चाइना डिस्पूयट एक्ट या द रिजाल्व तिब्बत एक्ट) चीन को चिढ़ा रहा है.

कौन हैं दलाई लामा
1935 का वो साल था. तिब्बत में लामो थोंडुप नाम के एक बच्चे का जन्म होता है. 2 साल बाद यानी 1937 में उस बच्चे को पिछले दलाई लामा का अवतार माना गया. 1940 में तिब्बत की राजधानी ल्हासा में औपचारिक तौर पर उन्हें 14वां दलाई लामा माना गया. चीन ने जब 1950 में तिब्बत पर हमला किया तो दलाई लाम 1959 में भारत चले आए, भारत ने मानवीय आधार पर उन्हें शरण दी और हिमाचल के धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है.1989 में दलाई लामा को नोबल पुरस्कार भी दिया गया था.

इसने चीन को ऐसे समय में नाराज कर दिया है जब बीजिंग और वाशिंगटन संबंधों को सुधारने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और भारत के चीन के साथ संबंध भी तनावपूर्ण हैं क्योंकि 2020 में उनके हिमालयी सीमा पर सैन्य गतिरोध में 24 सैनिक मारे गए थे.अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन विवाद का समाधान खोजने के लिए जल्द ही रिज़ॉल्व तिब्बत अधिनियम पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद कर रहे हैं. हालांकि वाशिंगटन तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र को चीन का हिस्सा मानता है.अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख और बिल के एक लेखक माइकल मैककॉल ने शुक्रवार को वाशिंगटन से रवाना होने से पहले कहा इस यात्रा से अमेरिकी कांग्रेस में तिब्बत को अपने भविष्य में अपनी बात कहने का अधिकार देने के लिए द्विदलीय समर्थन पर प्रकाश डाला जाना चाहिए.

चीन की आपत्ति क्या है
चीन दलाई लामा पर "विभाजनकारी" या अलगाववादी होने का आरोप लगाता है, लेकिन उनका कहना है कि वह अपने सुदूर हिमालयी गृहभूमि के लिए वास्तविक स्वायत्तता चाहते हैं. हालांकि बीजिंग ने हमेशा विदेशी नेताओं के साथ उनकी बैठकों पर आपत्ति जताई है, लेकिन इसने दलाई लामा को अमेरिकी राष्ट्रपतियों सहित उनसे मिलने से नहीं रोका है, हालांकि बिडेन ने अभी तक उनसे मुलाकात नहीं की है. हालांकि, सबसे विवादास्पद मुद्दा उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति का कार्य है. चीन के मुताबिक अगला दलाई लामा कौन होगा उसे चुनने का अधिकार है. हालांकि मौजूदा दलाई लामा भारत से हो सकता है. इस बयान पर चीन आगबबूला हो चुका है क्योंकि उसे लगता है कि भारत भड़काने वाला काम कर रहा है.

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