
यूएस की चीन पर नजर या तालिबान पर दबाव? बगराम एयरबेस क्यों है अहम
अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस को लेकर ट्रंप और तालिबान आमने-सामने है। ट्रंप ने दोबारा कब्ज़े की चेतावनी दी है। लेकिन तालिबान ने झुकने से इनकार किया है। ।
30 अगस्त 2021 की वो तारीख थी जब अमेरिकी फौज ने पूरी तरह से अफगानिस्तान को खाली कर दिया। मौके का फायदा तालिबान ने उठाया और सत्ता पर काबिज हो गया। खास बात यह है कि काबुल के करीब बगराम एयरबेस जिसका इस्तेमाल अमेरिकी सेना कर रही थी उसे भी कब्जे में कर लिया। चार साल बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तालिबान से कहा है कि वो बगराम एयरबेस को उसके हवाले कर दे। अगर तालिबान ने ऐसा नहीं किया तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। सवाल यह है कि यह एयरबेस इतना महत्वपूर्ण क्यों है।
तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा ने शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस प्रयास की निंदा की जिसमें वे बगराम एयरबेस को दोबारा हासिल करना चाहते हैं। यह वही रणनीतिक सैन्य ठिकाना है जिसे अफगानिस्तान से अमेरिका की अराजक वापसी (2021) के बाद तालिबान के कब्जे में आ गया था।ट्रंप ने एक बार फिर इस विशालकाय सैन्य केंद्र को वापस लेने की मुहिम तेज़ की है।
तालिबान का रुख और अंतरराष्ट्रीय मान्यता
भले ही तालिबान को औपचारिक अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है, लेकिन उसने चीन और रूस जैसे देशों से राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं और व्यापक वैश्विक जुड़ाव की मांग जारी रखी है।अफगान रक्षा मंत्रालय के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ फ़सीहुद्दीन फ़ित्रत ने ट्रंप की टिप्पणी पर कहा “हमारी ज़मीन का एक इंच भी किसी को देना सवाल से बाहर है और असंभव है।”
पिछले साल अगस्त में तालिबान ने बगराम में अमेरिकी छोड़े गए सैन्य उपकरणों के साथ अपनी सत्ता-ग्रहण की तीसरी सालगिरह मनाई थी, जिसने व्हाइट हाउस का ध्यान खींचा।
ट्रंप का आरोप और पृष्ठभूमि
ट्रंप लगातार अपने पूर्ववर्ती जो बाइडेन पर अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी को लेकर गंभीर अयोग्यता का आरोप लगाते रहे हैं। ध्यान रहे कि 2020 में ट्रंप के कार्यकाल के दौरान ही दोहा समझौता हुआ था जिसमें यह तय हुआ था कि अमेरिका 2021 तक अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं हटा लेगा, बदले में तालिबान सुरक्षा गारंटी देगा।हालांकि अंतिम वापसी बाइडेन के कार्यकाल में हुई, जिसे बेहद अराजक और कुप्रबंधित माना गया।
पिछले हफ्ते ब्रिटेन की यात्रा के दौरान ट्रंप ने संकेत दिया कि तालिबान आर्थिक संकट, अंतरराष्ट्रीय मान्यता की कमी, आंतरिक मतभेद और प्रतिद्वंद्वी आतंकी समूहों से जूझ रहा है, इसलिए वह अमेरिकी वापसी पर राज़ी हो सकता है। ट्रंप ने कहा “हम इसे वापस लेने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें हमसे चीज़ें चाहिए।
बगराम एयरबेस का महत्व
बगराम एयरबेस, जो काबुल के उत्तर में स्थित है, लंबे समय से रणनीतिक महत्व रखता है।1950 के दशक में सोवियत संघ ने इसे बनाया और 1979 में अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद यह उसका प्रमुख सैन्य अड्डा बन गया।इसमें दो रनवे, 100 से अधिक सुरक्षित विमान पार्किंग बे, 50-बेड का अस्पताल और विशाल लॉजिस्टिक्स ढांचा मौजूद है। यह चीन से लगभग 400 मील और ईरान से 500 मील की दूरी पर स्थित है, जिससे यह खुफिया जानकारी, वायु शक्ति और आतंकवाद-रोधी अभियानों के लिए अत्यधिक उपयोगी साबित होता रहा।इसकी जेल परिसर भी बदनाम रही, जिसे 2012 में अफगान प्रशासन को सौंपा गया।
क्यों चाहता है ट्रंप बगराम एयरबेस?
2025 में ट्रंप ने तर्क दिया कि बगराम चीन के परमाणु हथियार उत्पादन केंद्र से सिर्फ़ एक घंटे की दूरी पर है। रिपोर्टों के अनुसार, यह अमेरिका को बीजिंग के विस्तारवाद पर नकेल कसने का सामरिक साधन बन सकता है। ओरियन इंस्टीट्यूट पॉलिसी की रिपोर्ट कहती है कि लोपू नूर (चीन का परमाणु परीक्षण स्थल) जैसे केंद्रों के पास होने से बगराम की सामरिक क्षमता और भी बढ़ जाती है।हालांकि तालिबान ने किसी भी तरह की रियायत से इनकार कर दिया है, लेकिन “आतंकवाद-रोधी समन्वय” के ज़रिये कभी-कभार अमेरिकी पहुंच की संभावना को कूटनीतिक समझौते के रूप में देखा जा रहा है।
चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति
इस बीच, चीन अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट रखता है। 2025 की विजय परेड में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, चीन को कोई रोक नहीं सकता। मानवता फिर से एक ऐसे मोड़ पर है जहां उसे शांति या युद्ध, संवाद या टकराव, और साझी जीत या ज़ीरो-सम खेल में से चुनना होगा। इस परेड में JL-3 पनडुब्बी से छोड़े जाने वाले बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) का प्रदर्शन किया गया, जो परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम है।
इस विषय पर द फेडरल देश ने भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे विवेक काटजू से पूछा कि ट्रंप के इस बयान के मतलब क्या हैं। वो अपने जवाब में कहते हैं कि ट्रंप को जो कहना था उन्होंने कहा। लेकिन अफगानिस्तान में अमेरिकी सरकार ने जो कुछ पहले किया उसे पूरी दुनिया ने देखा। गोली और बन की बरसात वो पहले भी करते रहे हैं। क्या एक बार फिर वैसा ही करेंगे। खास बात यह है कि ट्रंप ने अभी मौखिक तौर पर भले ही तालिबान को धमकाया हो। आधिकारिक तौर किस तरह से अमेरिका आगे बढ़ेगा। यह देखने वाली बात होगी। अभी इस विषय पर कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बगराम का महत्व नहीं है।