ढाका की सियासी उथल-पुथल का असर, भारत में बढ़ी नकली करेंसी की तस्करी
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ढाका की सियासी उथल-पुथल का असर, भारत में बढ़ी नकली करेंसी की तस्करी

ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत–बांग्लादेश सीमा से हाई-क्वालिटी नकली भारतीय मुद्रा की तस्करी तेज हुई है, जिसे सुरक्षा एजेंसियां गंभीर खतरा मान रही हैं।


Fake Indian Currency: भारत–बांग्लादेश सीमा के रास्ते उच्च गुणवत्ता वाली नकली भारतीय मुद्रा (एफआईसीएन) की तस्करी और उसके प्रसार में आई तेजी, अगस्त 2024 में ढाका में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद सामने आया अब तक का सबसे स्पष्ट और प्रत्यक्ष सुरक्षा प्रभाव बनकर उभरी है। पुलिस और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा हाल में की गई जब्तियों के आंकड़े इस समस्या की गंभीरता की तरफ इशारा करते हैं।

दिसंबर में ही 50 लाख रुपये से अधिक की नकली करेंसी बरामद

केवल दिसंबर महीने में ही पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले की पुलिस ने सीमा क्षेत्रों से करीब 50 लाख रुपये मूल्य की नकली भारतीय मुद्रा बरामद की और चार लोगों को गिरफ्तार किया। इसके अलावा ज़िले के बखराबाद इलाके में एक अलग अभियान के दौरान इस महीने 500 रुपये के नकली नोटों के रूप में अतिरिक्त 8 लाख रुपये जब्त किए गए। वहीं, मुर्शिदाबाद ज़िले में बीएसएफ ने हाल ही में 16 लाख रुपये की नकली मुद्रा पकड़ी है।

ऐसी ही बरामदगियों की खबरें पश्चिम बंगाल के अन्य हिस्सों के अलावा असम, त्रिपुरा और यहां तक कि दिल्ली से भी सामने आई हैं। मालदा के पुलिस अधीक्षक अभिजीत बंद्योपाध्याय ने मीडिया के सामने स्वीकार किया कि तस्करी की घटनाओं में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।

दिल्ली तक पहुंचा बांग्लादेश से तस्करी का नेटवर्क

इससे पहले जून में, जब दिल्ली पुलिस ने इस वर्ष नकली मुद्रा की पहली बड़ी बरामदगी की, तो जांच में पाया गया कि 500 रुपये के सभी नकली नोट जिनका कुल अंकित मूल्य 4 लाख रुपये था बांग्लादेश से तस्करी के जरिए लाए गए थे। दिल्ली में हुई इस बरामदगी ने यह संकेत दिया कि देशव्यापी नकली मुद्रा तस्करी नेटवर्क एक बार फिर सक्रिय हो चुके हैं।

सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि ये बरामदगियां वास्तविक तस्करी के कुल पैमाने का केवल एक छोटा सा हिस्सा हैं। अधिकारियों के मुताबिक अगस्त 2024 के बाद दोनों देशों के बीच संस्थागत सहयोग में आई गिरावट का सीधा संबंध नकली मुद्रा के नए सिरे से बढ़े प्रवाह से है।

संयुक्त टास्क फोर्स लगभग निष्क्रिय

शेख़ हसीना की अवामी लीग सरकार के कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश ने नकली मुद्रा और आतंक वित्तपोषण से निपटने के लिए एक संयुक्त टास्क फोर्स बनाई थी, जिसके तहत रियल-टाइम खुफिया जानकारी साझा की जाती थी और सीमा पार नेटवर्क के खिलाफ समन्वित कार्रवाई होती थी। भारतीय अधिकारियों के अनुसार, ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद यह टास्क फोर्स लगभग निष्क्रिय हो गई है।

भारतीय सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि नियमित समन्वय बैठकें बंद हो चुकी हैं, खुफिया सूचनाओं का आदान–प्रदान धीमा पड़ गया है और सीमा पर संयुक्त अभियानों में भी गिरावट आई है। बीएसएफ के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ज़मीन पर फर्क साफ दिखाई देता है। वर्षों में बना संस्थागत अनुभव और व्यक्तिगत स्तर का तालमेल अब खत्म हो गया है।”

उनका कहना है कि नकली मुद्रा के नेटवर्क ऐसे खालीपन का तुरंत फायदा उठाते हैं। जब सहयोग सक्रिय था, तब बड़े खेप सीमा पार करने से पहले ही पकड़ ली जाती थीं। अब फिर से नोट स्थानीय हैंडलरों तक पहुंचने लगे हैं।

सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा

भारत में बांग्लादेश के रास्ते लाई जाने वाली नकली भारतीय मुद्रा को ऐतिहासिक रूप से केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा खतरा माना गया है। संयुक्त टास्क फोर्स के गठन से पहले उच्च गुणवत्ता वाले नकली नोट संगठित आपराधिक गिरोहों और कुछ मामलों में आतंक से जुड़े नेटवर्कों के लिए फंडिंग का बड़ा स्रोत रहे हैं।

हालिया मामलों में सीधे तौर पर आतंक से जुड़े संबंध सार्वजनिक रूप से स्थापित नहीं किए गए हैं, लेकिन अधिकारी चेतावनी देते हैं कि नकली मुद्रा अब भी कम लागत में बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला हथियार है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर कर सकता है और अन्य अवैध गतिविधियों को वित्तपोषित कर सकता है।

चिंता की बात यह भी है कि जब्त किए गए नकली नोटों की गुणवत्ता काफी ऊंची बताई जा रही है। हालिया अभियानों में शामिल अधिकारियों के अनुसार, 500 रुपये के कई नकली नोट सामान्य जांच में आसानी से पकड़ में नहीं आते, जो खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में खतरनाक है, जहां नकद लेन-देन अब भी व्यापक है।

भारत के सामने जटिल नीतिगत चुनौती

भारतीय अधिकारी बताते हैं कि बीएसएफ, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), राज्य पुलिस और खुफिया इकाइयों के बीच घरेलू स्तर पर समन्वय मजबूत करने के कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन नई दिल्ली के सामने यह एक जटिल नीतिगत दुविधा है।सीमा पर घरेलू प्रवर्तन को सख़्त करने से तस्करी के कुछ रास्ते ज़रूर रोके जा सकते हैं, लेकिन अधिकारी निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि ढाका के साथ सहयोग दोबारा बहाल किए बिना इस समस्या पर पूरी तरह काबू पाना मुश्किल होगा।

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