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Modi-Trump meeting: ट्रंप के एजेंडे पर भारी मोदी की रणनीति?
द फेडरल के प्रधान संपादक एस श्रीनिवासन और विदेशी मामलों के विशेषज्ञ श्रीधर कृष्णस्वामी ने वाशिंगटन में ट्रंप -मोदी बैठक का विस्तार से विश्लेषण किया.
PM Modi US visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वॉशिंगटन डीसी दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात को एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक वार्ता के रूप में पेश किया जा रहा है. क्योंकि इस बैठक में व्यापार, रक्षा, इमिग्रेशन और ऊर्जा सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई. वहीं, दोनों नेताओं ने शुल्क और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसे जटिल मुद्दों को सुलझाते हुए संबंधों को मजबूत करने की भी कोशिश की. ऐसे में विदेश नीति के विशेषज्ञ श्रीधर कृष्णस्वामी और द फेडरल के प्रधान संपादक एस श्रीनिवासन पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे के महत्व और भारत-अमेरिका संबंधों पर इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की.
व्यापार वार्ता: संतुलन साधने की कोशिश
इस दौरे का एक प्रमुख बिंदु व्यापार था. ट्रंप अपने लेन-देन के दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने भारत की आर्थिक वृद्धि की सराहना की, साथ ही अमेरिकी-भारत व्यापार घाटे को कम करने का दबाव भी डाला. वर्तमान में, दोनों देश 157 अरब डॉलर के व्यापार में शामिल हैं. लेकिन अमेरिका भारत के खिलाफ घाटा चला रहा है.
श्रीनिवासन ने बताया कि ट्रंप की शुल्क रणनीति उनके व्यापक वार्ता रणनीतिक का हिस्सा है. जब मोदी पहुंचे, तब ट्रंप ने भारत पर नए शुल्क लगाने की धमकी दी. लेकिन भारतीय अधिकारी तैयार थे, उन्हें ट्रंप की शैली का पहले से ही अंदाजा था.
कृष्णस्वामी ने कहा कि ट्रंप भारत से अधिक अमेरिकी सामान, विशेष रूप से रक्षा उपकरण और ऊर्जा उत्पाद खरीदने के लिए कह रहे हैं. हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि एक बार की खरीदारी से व्यापार असंतुलन का समाधान नहीं होगा. अमेरिका ने 80 के दशक में जापान के साथ यही तरीका अपनाया था और वह विफल हो गया था. व्यापार में संरचनात्मक मुद्दों को सिर्फ अधिक लड़ाकू विमान या गैस आपूर्ति बेचने से नहीं सुलझाया जा सकता है.
रक्षा सौदे: F-35 का संकट
एक और बड़ा मुद्दा था भारत द्वारा लॉकहीड मार्टिन से F-35 लड़ाकू विमानों की खरीद. जबकि अमेरिका इसे बेचने के लिए तैयार है, भारत को विशेष रूप से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (ToT) और लंबे समय के मेंटेनेंस लागत जैसे चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. कृष्णस्वामी ने चेतावनी दी कि अमेरिकी रक्षा उपकरण खरीदने के साथ कई शर्तें जुड़ी होती हैं. स्पेयर पार्ट्स, संचालन संबंधी प्रतिबंध और अमेरिकी कानून निर्माताओं से विधायी अड़चन का जोखिम. उन्होंने यह भी कहा कि रूस, अमेरिका के विपरीत टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए अधिक लचीला रहा है, जिससे भारत की रक्षा रणनीति के लिए SU-57 को एक अधिक आकर्षक विकल्प बनाता है.
इमिग्रेशन : H-1B वीज़ा का मुद्दा
एक और महत्वपूर्ण मुद्दा था अमेरिकी इमिग्रेशन नीति, खासकर H-1B वीजा धारकों की स्थिति और अवैध भारतीय अप्रवासी की निर्वासन की प्रक्रिया. मोदी ने ट्रंप को आश्वस्त किया कि भारत अपने अवैध नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है. जो दोनों नेताओं के लिए राजनीतिक रूप से फायदेमंद कदम है. हालांकि, जैसा कि कृष्णस्वामी ने बताया, यह प्रक्रिया जटिल है. 800,000 अवैध भारतीयों में से केवल 18,000 को अंतिम निर्वासन आदेश मिले हैं और अब तक केवल 104 को वापस भेजा गया है. यह प्रक्रिया वर्षों तक चल सकती है. इस बीच भारतीय पेशेवर H-1B वीजा आवंटन और ग्रीन कार्ड कोटा के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. लेकिन इस मामले में कोई तात्कालिक breakthrough की घोषणा नहीं की गई.
ऊर्जा और व्यापार: भारत का टेस्ला अवसर
ऊर्जा सहयोग और व्यापार निवेश भी मोदी के एजेंडे का हिस्सा थे. टेस्ला के सीईओ एलोन मस्क से मुलाकात ने विशेष रूप से भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) निर्माण में रुचि जगाई. श्रीनिवासन ने टिप्पणी की कि मस्क भारत में टेस्ला की एंट्री को लेकर दबाव डाल रहे हैं. लेकिन भारतीय सरकार स्थानीय निर्माण चाहती है. यह एक जारी बातचीत है. भारत की ऊर्जा आयात विविधीकरण पर भी चर्चा हुई, जिसमें अमेरिका से अधिक प्राकृतिक गैस आयात करने की संभावना थी. लेकिन मूल्य निर्धारण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.
तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण: मोदी की कूटनीतिक जीत
एक प्रमुख कूटनीतिक निष्कर्ष था 26/11 के आतंकवादी आरोपी तहव्वुर राणा राणा का प्रत्यर्पण. यह मोदी के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है, जो आतंकवाद के खिलाफ उनकी कड़ी स्थिति के अनुरूप है. श्रीनिवासन ने कहा कि मोदी के लिए राणा को वापस लाना एक प्रतीकात्मक जीत है. यह आतंकवाद से निपटने पर उनके दृष्टिकोण को मजबूत करता है और उनके शासन को पिछले शासन से अलग करता है.
लेन-देन आधारित संबंध?
हालांकि, दोनों नेताओं ने अमेरिका और भारत के बीच एक “महाक्रांति साझेदारी” का दावा किया, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह संबंध लेन-देन आधारित रहता है. कृष्णस्वामी ने कहा कि ट्रंप पहले एक व्यापारी हैं. वह बेहतर व्यापार सौदे, सैन्य बिक्री और घाटे को कम करना चाहते हैं. वहीं, भारत को अपनी रणनीतिक हितों की रक्षा करनी होगी. चूंकि शुल्क, रक्षा खरीद और आप्रवासन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं. इस यात्रा का वास्तविक प्रभाव आने वाले महीनों में अधिक स्पष्ट होगा.
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